आधुनिकीकरण, औद्योगीकरण और बढ़ती आमदनी ने हमारी थाली का स्वरूप ही बदल दिया
बिपाशा दास
पिछले 50 साल के दौरान देश में लोगों की खानपान की आदतों में भारी बदलाव आया है। इस दौरान देश की आबादी भी दोगुनी से ज्यादा हो गई। इसके साथ ही अर्थव्यवस्था में भी बदलाव आया। इससे राष्ट्र के आहार पर प्रभाव पड़ा है। लोगों की आय, खाद्य वस्तुओं की कीमतें, व्यक्तिगत रुचि और मान्यताओं, सांस्कृतिक परंपराओं के साथ भौगोलिक, पर्यावरणीय, सामाजिक और आर्थिक कारकों से आम भारतीयों का आहार प्रभावित हुआ है।
एक दौर था जब हमारे पास धीमी कुकिंग के लिए समय होता था। हम जो भोजन करते थे, वह संतुलित स्वास्थवर्धक फैट, कॉर्बोहाइड्रेट और फाइबर से भरपूर होता था, जबकि आज हम जो खाते हैं, वह ऐसा नहीं है। पारंपरिक खाद्य वस्तुएं पोषण से भरपूर होती थीं जिससे हमारे शरीर और स्वास्थ्य को मजबूती मिलती थी। आज पश्चिमी उत्पादों का हमारे भोजन पर खासा असर हुआ है। सनक भरी खानपान की आदत तेजी से बढ़ी। खाद्य वस्तुओं की उत्पादन प्रक्रिया के आधुनिकिकरण एवं औद्योगीकरण का भी असर पड़ा।
आज की पश्चिमी आहार के मुकाबले पारंपरिक भोजन में प्रोसेस्ड खाद्य वस्तुओं पर कम और प्राकृतिक वस्तुओं पर ज्यादा जोर होता था। पहले परिवार और मित्रों के साथ बैठकर आराम से खाना खाने की आदत होती थी जबकि आज चलते-फिरते जल्दी में खाना निगलने की स्थिति आ गई है।
वास्तव में, पहले खाना बनाने की अच्छी पारंपरिक पद्धतियां अपनाई जाती थीं जिनमें धीमी कुकिंग, कैनिंग और फर्मेंटिंग (खमीर उठाना) आदि शामिल थीं। मौजूदा गैस ओवन की तेज लौ में कुकिंग की पद्धति पारंपरिक विधि के विपरीत है। आधुनिक कुकिंग विधि में जल्दी प्रोसेसिंग के लिए तेज आग पर खाना पकाना, कलर तथा अतिरिक्त फ्लेवर मिलाना और प्रिजर्वेटिव मिलाना शामिल है। इससे भोजन की खूबियों को नुकसान होता है और पौष्टिक तत्व नष्ट हो जाते हैं। इनमें से कई कुकिंग प्रोसेसिंग मानव स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक हैं। उदारण के लिए, तेज आग पर तलने से प्रोटीन नष्ट हो जाते हैं। कलर बनाए रखने के लिए ऑक्सीडाइज्ड ब्लीचिंग इस्तेमाल करने से भी भोजन के तत्व नष्ट होते हैं।
कभी-कभी इनमें से कई प्रोसेस्ड फूड सिर्फ दिखने में पारंपरिक आहार की तरह होते हैं। स्वाद में भी वैसे लग सकते हैं। लेकिन पौष्टिक तत्वों खासकर सूक्ष्म पौष्टिक तत्व पारंपरिक भोजन की तरह नहीं होते हैं। इसी स्थिति में कृत्रिम विटामिन और मिनरल मिलाए जाते हैं जो प्राकृतिक पौष्टिक तत्वों की तुलना में फायदेमंद नहीं होते हैं। उदाहरण के लिए, अनाज में आयरन के मामले में मेगनेट से प्राप्त इनऑर्गेनिक आयरन को अनाज में मिलाया जा सकता है। ये तकनीक लंबे समय तक खराब होने से बचाने के लिए भी अपनाई जाती है।
अचार और पापड़ जैसे अनेक प्रोसेस्ड और आरामदायक खाद्य उत्पादों की मांग तेजी से बढ़ रही है, ये बाजार में आसानी से उपलब्ध हैं। इनके साथ, पिज्जा (पारंपरिक तौर पर रोटी के साथ सब्जी और घी), बर्गर और फ्राइज जैसे पश्चिमी खाद्य उत्पादों की भी खूब मांग होती है। आम भारतीयों में फैट और शुगर की मात्रा बढ़ाने में ये सबसे बड़े कारक हैं। जीवनशैली में बदलाव लाने वाले शहरीकरण के कारण निष्क्रिय जिंदगी और जैविक खेती का क्षेत्र घटने से ज्यादा नुकसान हो रहा है।
पारंपरिक आहार की ओर आगे बढ़ने के नुस्खे
संतुलित भोजन करें
आमतौर पर हेल्दी फैट, कॉर्बोहाइड्रेट्स और फाइबर के अच्छे अनुपात वाले पारंपरिक खाद्य पदार्थ संतुलित भोजन होते हैं। इसलिए उन्हें आज खाए जाने वाले भोजन के मुकाबले कहीं ज्यादा पौष्टिक माना जाता है।
धीमे और ज्यादा चबाकर खाएं
चलते-फिरते जल्दी में खाना खत्म करने की प्रवृत्ति के विपरीत पारंपरिक तौर पर परिवार और मित्रों के साथ बैठकर खाना खाने को प्राथमिकता दी जाती रही है। धीमी आग पर खाना पकाओ, धीमे खाओ और ज्यादा चबाओ। इस तरह कम खाओ।
आसपास उपलब्ध वस्तुएं खाओ
आपके क्षेत्र में उगने वाले और कम से कम दूरी से लाए जाने वाले खाद्य पदार्थ आसानी से उपलब्ध होते हैं। उनके प्रिजर्वेशन और प्रोसेसिंग की भी कम जरूरत होती है। स्थानीय स्थानीय खाद्य वस्तुएं आपके बेहतर होती हैं।
खाओ जो टिकाऊ हो
हजारों वर्षों से पारंपरिक भोजन में कॉर्बोहाइड्रेट (चावल या गेहूं), सब्जियां और फैट (घी या तेल) और कुछ प्रोटीन शामिल रहे हैं। आपके लिए यही टिकाऊ है। आप स्टार्च, फ्राइड फूड और डेजर्ट कम कर सकते हैं। प्रोटीन बढ़ाइए और यह आप अपने पारंपरिक भोजन से प्राप्त कीजिए।