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छठी शताब्दी में आचार्य सुश्रुत ने काव्य के जरिये बताई थी पोषण की महत्ता

उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने पोषण का गीत लांच किया तो इसके अभियान में ऊर्जा का नया संचार उपासना...
छठी शताब्दी में आचार्य सुश्रुत ने काव्य के जरिये बताई थी पोषण की महत्ता

उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने पोषण का गीत लांच किया तो इसके अभियान में ऊर्जा का नया संचार

उपासना सिंह

“हे, तुम एक सुंदर चेहरे के साथ बच्चे का पालन-पोषण अपना दूध पिलाकर सकती हो, वैसे ही लंबा जीवन दे सकती हो जैसे भगवान ने अमृतपान करवाकर अमर बना दिया।”

छठी-सातवीं शताब्दी ईसा पूर्व में जन्मे प्रसिद्ध ऋषि और भारतीय चिकित्सा प्रणाली आयुर्वेद के प्रणेता कहे जाने वाले आचार्य सुश्रुत ने यह बात कही थी। प्राचीन भारत के चिकित्सक और भारतीय चिकित्सा के जनक कहलाने वाले आचार्य सुश्रुत ने काव्य पंक्तियों में दुग्धपान यानी ब्रेस्टफीडिंग की महत्ता का उल्लेख सहस्राब्दियों पहले इस प्रकार किया था।

दुग्धपान यानी ब्रेस्टफीडिंग नवजात शिशु के लिए आदर्श पोषण प्रदान करता है। स्वस्थ शिशु के लिए दुग्धपान के बारे में जागरूकता बढ़ाने का कोई प्रयास इतना छोटा नहीं होता है। मां का दूध न सिर्फ विटामिन, प्रोटीन और फैट का बेहतरी मिश्रण होता है, बल्कि इससे वायरस और बैक्टीरिया से लड़ने में भी मदद मिलती है। इसके अलावा मां और बच्चे के बीच दोनों की त्वचा और आंखों में संपर्क होने से दोनों के बीच लगाव बढ़ता है।

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उप राष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने हाल में पोषण गीत लांच करते हुए कहा, किशोर लड़कियां कुपोषण से लड़ने के लिए महत्मपूर्ण कारक हैं। जल्दी विवाह रोककर, स्कूल से पढ़ाई छोड़ने वाली लड़कियों की दर घटाकर, पहले गर्भाधान में देरी करके और बच्चों के जन्म में पर्याप्त अंतर रखकर शिशुओं को बेहतरीन पोषण दिया जा सकता है। शिशु का जन्म होने के एक घंटे भीतर दुग्धपालन कराने से नवजात रुग्णता पर अंकुश लगता है और बच्चे की नाल अलग होने के बाद उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में मदद मिलती है।

नायडू ने कहा कि देश में सिर्फ 41 फीसदी माताएं बच्चे के जन्म के एक घंटे के भीतर दुग्धपान करवा पाती हैं। उन्होंने कहा कि हमें दुग्धपान को प्रोत्साहित करना चाहिए ताकि शिशुओं को उचित पोषण मिल सके और बीमारियों का खतरा कम किया जा सके। हमें सुनिश्चित करना होगा कि समग्र बाल विकास सेवा कार्यक्रम के तहत दो साल तक के बच्चों, दुग्धपान कराने वाली माताओं और गर्भवती महिलाओं को पूरक आहार ठीक तरीके से मिले। आंगनवाड़ी केंद्रों को पोषण, स्वास्थ्य और खाद्य सुरक्षा सेवाओं के लिए केंद्र के तौर पर विकसित किया जाना चाहिए।

समय आ गया है जब हमें कुपोषण को सामाजिक समस्या के तौर मानकर सोचना होगा और स्वस्थ बच्चों और माताओं के लिए हाथ मिलाना होगा। इस दिशा में स्तनपान के लिए जागरूकता और प्रोत्साहन अभियान महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। शैशवकाल के पहले आधे समय में सिर्फ दुग्धपान और समुचित पूरक आहार देना जरूरी है।

पूरी दुनिया में विशेषज्ञ बच्चे को एक साल तक दुग्धपान की सलाह देते हैं। शुरू के छह महीने बच्चे को सिर्फ दुग्धपान और बाद के छह महीनों में दुग्धपान के साथ सब्जी, अन्न, फल, प्रोटीन वगैरह दिया जाना चाहिए। इससे बच्चे का जीवन अच्छे स्वास्थ्य के साथ शुरू करने में मदद मिलती है क्योंकि 60 फीसदी से ज्यादा बच्चे कुपोषण के कारण मर जाते हैं।

माता में कुपोषण के कारण जन्म के समय बच्चे का वजन कम होता है और उनका समुचित विकास प्रभावित होता है। यह चिंताजनक है कि पांच साल तक की आयु के 38.4 फीसदी बच्चे अल्पविकसित रह जाते हैं। नायडू ने कहा कि अच्छा पोषण अब विकल्प नहीं रह गया है, बल्कि यह न्यू इंडिया के उज्ज्वल भविष्य के लिए अनिवार्य है। पोषण क्रांति गांव के स्तर पर महिलाओं को पोषण योद्धा या फिर बदलाव के अग्रणी के तौर पर विकसित करके लाई जा सकती है।

यह कथन महिलाओं की अहमियत बताता है। आज बहुत सी महिलाएं बच्चों को दुग्धपान कराने से बचती हैं क्योंकि उन्हें बच्चे के लिए इसके फायदों की जानकारी नहीं होती है। यह गलत धारणा है कि दुग्धपान कराने से उनके स्तनों के आकार और शारीरिक सुंदरता पर प्रभाव पड़ता है। यह सही नहीं है। यह भी महत्वपूर्ण है कि दुग्धपान कराने वाली माताओं को समुचित और संतुलित स्वास्थ्यवर्धक आहार लेना चाहिए क्योंकि उनके दुग्ध की गुणवत्ता माता के खाने की आदत और स्वास्थ्य पर निर्भर होती है।

 आचार्य सुश्रुत के कथन का निष्कर्ष है कि स्पर्श करने, देखने और वात्सल्य से माता का दूध निकलता है। माता का दूध पूर्णतः शुद्ध और जीवाणु रहित होता है। यह बच्चे को संक्रमण और बीमारियों से बचाता है। यह तमाम तरह के बैक्टीरिया से बच्चे को प्रतिरोधक क्षमता देता है और की तरह की बीमारियों से बचाता है।

(कुपोषण, भुखमरी और महिला सशक्तिकरण के लिए प्रतिबद्ध डॉ. उपासना सिंह इतिहासकार, सामाजिक कार्यकर्ता और पर्यावरणविद हैं।

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