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पहली बार रियल टाइम डाटा के साथ कुपोषण के खिलाफ भारत का हमला

चारुपद्मा पति भारत कुपोषण की समस्या से कई दशकों से झेल रहा है। हर समय हमें यह सुनाई देता है कि देश में...
पहली बार रियल टाइम डाटा के साथ कुपोषण के खिलाफ भारत का हमला

चारुपद्मा पति

भारत कुपोषण की समस्या से कई दशकों से झेल रहा है। हर समय हमें यह सुनाई देता है कि देश में लाखों बच्चें भयंकर भुखमरी से ग्रसित हैं और समुचित पोषण का अभाव झेल रहे हैं। ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 117 देशों की सूची में भारत 102वें स्थान पर है जो गंभीर कैटागरी में आता है। अपने नागरिकों की पौष्टिकता की आवश्यकताएं पूरी करने के मामले में भारत अपने पड़ोसी देशों नेपाल, बांग्लादेश और पाकिस्तान से भी पीछे है। इस गंभीर समस्या, खासकर बच्चों में पोषण की कमी के बारे में हर कोई जानता है लेकिन किया क्या जाना चाहिए।

इस पर चर्चा करने से पहले समस्या के पहलुओं के बारे मे समझना आवश्यक है। इस समस्या से निजात पाने के लिए हैदराबाद के नेशनल इंस्टीट्यूटफ न्यूट्रीशन (एनआइएन) ने न्यूट्रीशन सर्विलांस प्रोग्राम (एनएसपी) लागू किया है। इसका उद्देश्य कुपोषण के शिकार हुए अथवा इसके शिकार होने वाले लोगों की जल्दी से जल्दी पहचान करना है।

राष्ट्रीय पोषण की नीतियों के विकास में योगदान करने वाले इस 100 साल पुराने संगठन ने महाराष्ट्र, ओडिशा, मेघालय, केरल, मध्य प्रदेश और तेलंगाना में यह प्रोग्राम शुरू किया है प्रोग्राम के तहत पोषण संबंधी समस्याओं की रियल टाइम निगरानी और आकलन के अलावा विश्लेषण किया जाता है और उनके कारण समझने का प्रयास होता है ताकि कुपोषण को खत्म करने के लिए कदम उठाया जा सके।

बच्चों के विकास संबंधी संकेतकों का रियल टाइम डाटा जुटाना इस परियोजना का प्रमुख हिस्सा है। इस तकनीक से यह सुनिश्चित होता है कि समग्र बाल विकास सेवाओं (आइसीडीएस) से संबंधित महत्वपूर्ण आंकड़े सही समय पर एकत्रित हों। एनएसपी न सिर्फ बच्चों का पोषण स्तर सुधारने पर ध्यान दे रहा है बल्कि गर्भवती महिलाओं और दुग्धपान कराने वाली महिलाओं पर भी ध्यान दे रहा है।

इंस्टीट्यूट की डायरेक्टर डॉ. एन. हेमलता कहती हैं, “रियल टाइम निगरानी के जरिये एनएसपी का मुख्य उद्देश्य स्वास्थ्य और कुपोषण के जोखिम से घिरे लोगों की पहचान करना और उन कारकों का आकलन करना है जो यह जोखिम बढ़ाते हैं, ताकि सही समय पर उपाय किए जा सकें।” वह कहती हैं कि यह प्रोजेक्ट पायलट आधार पर 6 राज्यों में चलाया जा रहा है और इसे मिशन मोड में आगे बढ़ाने की संभावना है।

कार्यक्रम का उद्देश्य महिलाओं और बच्चों के में पौष्टिकता का स्तर सही बनाए रखना है ताकि वे स्वस्थ जीवन जी सकें। इंस्टीट्यूट कुपोषण खत्म करने के लिए काम कर रहा है, वह उन लोगों तक पहुंच रहा है जो इस समस्या से अनभिज्ञ हैं। उन्हें पोषण और परिवार नियोजन की अहमियत समझाने के व्यापक प्रयास किए जा रहे हैं। उन्हें आईसीडीएस द्वारा उपलब्ध कराई जा रही सेवाओं के बारे में सलाह दी जा रही है।

हेमलता कहती हैं, “कई नियामकीय संगठन, केंद्र सरकार और कई राज्य सरकारें एनआईएन के डाटा पर निर्भर हैं। इंस्टीट्यूट की बड़ी उपलब्धि 1970 के दशक में आईसीडीएस द्वारा चलाया गया देश का सबसे बड़ा न्यूट्रीशन सप्लीमेंट्री प्रोग्राम था। इंस्टीट्यूट के प्रभावी और अनूठे अनुसंधान में कार्यक्रम शुरू करने का रास्ता खोला। इसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों और शहरी झुग्गी बस्तियों में रहने वाले बच्चों में पौष्टिकता का स्तर सुधारकर प्रतिदिन 300 केसीएल तक पहुंचाना है।

आईसीडीएस के कामकाज को सुनिश्चित करने और लाभार्थियों में पौष्टिकता बढ़ाने के लिए एनआईएन ने ट्रिपल अप्रोच अपनाया गया है। इसके तहत जमीनी  स्तर के कार्यकर्ताओं से लेकर सुपरवाइजरी स्तर तक के समूचे आईसीडीएस तंत्र को शामिल करके असेसमेंट, एनालिसिस और एक्शन का अप्रोच अपनाया जा रहा है।

इंस्टीट्यूट का मुख्य उद्देश्यों में से एक गर्भधारण की योजना बना रहे जोड़ों को परामर्श देना है। इंस्टीट्यूट उनके पौष्टिकता के स्तर का आंकलन करता है और गर्भधारण से पहले सुधारने का प्रयास करता है जिससे महिला स्वस्थ बच्चे को जन्म दे। वह यह भी भी सुनिश्चित करता है कि भावी पीढ़ी कुपोषण और अन्य स्वास्थ्य संंबधी समस्याओं से मुक्त हो।

भारत में जन सामान्य द्वारा खाई जाने वाली वस्तुओं के पौष्टिकता आंकलन का इस्तेमाल नीति निर्धारक और सरकारी थिंक टैंक व्यापक स्तर पर कर रहे हैं। एनआईएन ने खाद्य विषाक्तता पर सघन अध्ययन किया है और खाद्य तेलों में आरजीमोन, खतरनाक ड्रॉप्सी, न्यूरोलेथिरिज्म, एफ्लाटोक्सिकोसिस और एरूसिस एसिड की समस्या पर ध्यान दिया है। उसने विषाक्तता कारकों की पहचान और इसकी रोकथाम के लिए समाधान देने में अहम योगदान दिया है।

आयोडीन और आयरन की कमी दूर करने के लिए आयोडीन और आयरन मिलाकर नमक का डबल फोर्टिफिकेशन इंस्टीट्यूट की सबसे बड़ी पहल रही है। इसके लिए एक फॉर्मूला बनाया गया ताकि नमक में आयोडीन की उपलब्धता सुनिश्चित हो, उसके रंग में कोई अंतर न हो और खाने में इस्तेमाल करते समय भोजन के सूक्ष्म पौष्टिक तत्वों की जैविक सुलभता सुनिश्चत हो सके।

एनआईएन की रणनीति और अनुसंधान ने गरीब बच्चों के स्वास्थ्य सुधार और उनके विकास में योगदान किया है। माइक्रोन्यूट्रिएंट फोर्टिफिकेशन के लिए बालामृतम (बच्चों का दूध छुड़ाने के लिए वैकल्पिक भोजन) विकसित किया गया जो तेलंगाना में 30 लाख बच्चों की माताओं और संरक्षकों को उपलब्ध कराया जा रहा है।

फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एफएसएसएआई) जैसी नियामकीय सरकारी संस्थाओं ने नियामकीय मानक लागू करने के लिए एनआईएन के साथ समझौता किया है। परबॉयल्ड मिल्ड चावल पर उसके अध्ययन से आंध्र प्रदेश के पूर्व तटीय क्षेत्र में चावल खाने वालों में बेरीबेरी (विटामिन बी1 की कमी की बीमारी) के मामलों को समझने में मदद मिली। इस क्षेत्र में अधिकांश लोग मिल्ड राइस का इस्तेमाल करते हैं। इंस्टीट्यूट ने यह स्पष्ट किया कि चेन्नई में इस बीमारी के मामले क्यों नहीं मिलते हैं, जहां परबॉयल्ड राइस का इस्तेमाल किया जाता है।

आउटलुक पोषण अवार्ड्स 2019 की साइंस एंड टेक्नोलॉजी कैटागरी में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हैदराबाद विजेता रही है। एनआइएन कुपोषण और गरीबी पर जागरूकता बढ़ाने के लिए काम करती है।

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