भारत अपनी जड़ों की तरफ लौट रहा है। लोगों में योग, आध्यात्म, आयुर्वेद के प्रति आस्था बढ़ रही है। दुनियाभर से लोग स्वास्थ्य, मानसिक शान्ति की तलाश में भारत आ रहे हैं। आयुर्वेद चिकित्सा से युवाओं, किसानों को रोजगार भी मिल रहा है और आत्म सम्मान भी। वैद्य सनातन मिश्रा पूरी निष्ठा के साथ आयुर्वेद चिकित्सा को समर्पित हैं। सनातन मिश्रा का परिवार पिछले 80 वर्षों से आयुर्वेद चिकित्सा के जरिए मानव सेवा कर रहा है। सनातन मिश्रा का संकल्प है कि आयुर्वेद चिकित्सा को विश्व पटल पर फैलाया जाए। सनातन मिश्रा से आयुर्वेद चिकित्सा और उसके विभिन्न पहलुओं के विषय में आउटलुक से मनीष पाण्डेय ने बातचीत की।
आज के इस आधुनिक समय में आयुर्वेद की क्या स्थिति है, आयुर्वेद कितना डिजिटल, कितना मॉडर्न, कितना ग्लोबल हो चुका है ?
आयुर्वेद त्रिकाल और शाश्वत है । आज के समय में जहां लोगो का डिजिटल अटेंशन दस सेकंड, से ज्यादा नहीं है, वहां पर आज आयुर्वेद को लोगो ने बेहद इज्जत दी है। पहले जिसे लोग 'स्लो ' बोल कर नकार रहे थे, आज वहीं पर साइड इफेक्ट और कोविड काल से मार खाए करोड़ों लोग, दुनिया के कोने कोने से आयुर्वेद को दोनो हाथों से अपना रहे हैं । दुनिया में भारत का पर्यायवाची आयुर्वेद और योग बन चुका है । भारत एपीसेंटर के रूप में उभार चुका है और अन्य देशों से लगातार हेल्थ टूरिज्म के जरिए अच्छे और सस्ते स्वास्थ्य केंद्रों का बिंदु बन गया है।
हमारे खानपान में ऐसी कौन सी चीजें हैं, जिनका सेवन करने से हम मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग से ग्रसित हो रहे हैं?
दुनिया की सबसे खतरनाक बीमारी कैंसर,मधुमेह और हाइपरटेंशन है। मधुमेह और हाइपरटेंशन से लोगों ने दोस्ती कर ली है। ऐसा मान लिया है कि 40 के बाद तो मधुमेह होना ही है ।हमारा 1970 से 1990 का दशक स्वास्थ्य की दृष्टि से बेहद मजबूत रहा है। मगर आज स्थिति खराब है। फास्ट फूड, पैक्ड फूड सेहत को बहुत नुकसान पहुंचा रहा है। शराब, सिगरेट, पान मसाला, मांसाहार हमें रोगी बना रहा है। आज लोगो के पास पैसा तो आया पर है स्वास्थ्य छिन गया है। मेरी दो सलाह है। पहला तो शरीर से काम लेना सीखें , इसे थोड़ा सा सताना सीखें । शरीर जितनी तपस्या करता है, प्रकृति उसे उतना तृप्त करती है। दूसरी बात यह है कि एसी की आदत से बचें , नंगे पाव घास पर चलें और गाय के घी से बैर न करें । सैकड़ों सालों से देसी गाय और भारतीयों का अनोखा संबंध रहा है . भैंस के घी से ज्यादा कारगर है देसी गाय का घी ।
आम आदमी को यदि आयुर्वेद से जुड़ी कोई सलाह देना चाहेंगे तो वह क्या होगी?
एक आम आदमी बचपन से अगर सिर्फ तीन चीजों से दोस्ती करे तो उसके स्वास्थ्य में वाकई परिवर्तन देखने मिलेगा।वो तीन चीजें हैं मूंग की दाल , लाल चावल और देसी गाय का घी । खाना ताजा ही बना के खाएं और लोकल सब्जियों, फलों से दोस्ती करें।
आयुर्वेद चिकित्सा से जुड़ी कुछ लोकप्रिय भ्रांतियों के बारे में बताएं?
यह बेहद जरूरी प्रश्न है । एक सज्जन से मिला तो उनका कहना था कि आयुर्वेद तो बहुत धीमा काम करता है इसलिए मैं आयुर्वेदिक औषधियां नही लेता । एक दिन उनका अचानक फोन आया और उन्होंने कहा कि गलती से उन्होंने जमालघोटा ले लिया और दस्त लग गए हैं। मैने उन्हे तब समझाया कि जितनी जल्दी उन्हें दस्त लगे हैं,वह आयुर्वेद की दवाओं से ही हुआ है। यानी आयुर्वेद धीमा है, यह भ्रांति है। हर द्रव एकदम अलग अलग और अपनी गति से ही काम करते हैं।हम उनकी प्रवृति से खिलवाड़ नही कर सकते।
आयुर्वेद से स्वरोजगार के अवसर किस तरह तलाशे जा सकते हैं?
हर एक वैद्य अपने आप में एक ' इंडस्ट्री ' की तरह काम कर सकता है । हर वैद्य अगर स्वयं से कुछ शुरू करना चाहे तो न केवल वो रोजगार पैदा करेगा बल्कि इकोनॉमी में भी अपना बड़ा योगदान देगा। सफलता की सबसे बड़ी जरूरत ज्ञान , हुनर और भूख है । ये तीनों अगर ठीक अनुपात में हैं तो समाज में अच्छे रोजगार जैसे नर्स स्टाफ , अकाउंट स्टाफ , मैनेजमेंट और ह्यूमन रिसोर्स जैसे ढेर सारे स्थान की डिमांड बढ़ेगी ।
भारत के सामान्य किसान कैसे आयुर्वेद से जुड़कर अपनी आर्थिक स्थिति बेहतर कर सकते हैं?
किसान और वैद्य का सीधा संबंध हैं । आयुर्वेद की नींव है शुद्धता और गुणवान औषधियां । जिनके पास अवसर है, वह वैद्य अपनी एकल औषधियां स्वयं ही उगाते हैं या किसान से संपर्क कर उगवाते हैं । किसान का हाथ लगने मात्र से ही शुद्ध और गुणवान औषधियां अपने संस्कार की बाद रोगियों के रोग का नाश करती हैं । वैद्य को शरीर का जितना अच्छा ज्ञान होता है अक्सर जमीन या उसकी जरूरतों का नहीं होता।किसान ही इस जरूरत की पूर्ति करता है या कर सकता है। इसलिए किसानों के लिए आयुर्वेद क्षेत्र में अवसर ही अवसर हैं।
आपकी आयुर्वेद की यात्रा कितनी चुनौतीपूर्ण रही है ?
जिस वस्तु से आप प्रेम करते हैं, वहां चुनौती की चिंता नहीं करते। मेरे लिए आयुर्वेद चुनौती से ज्यादा नित्य नई सीख के जैसे रहा है। बचपन में ही आयुर्वेद का माहौल देखा , शिखर पर देखा इसलिए दिलचस्पी रही। लेकिन जब कॉलेज की पढ़ाई और प्रैक्टिस की दुनिया देखी तो अपने विचारो पर मंथन किया । अभिव्यक्ति का तरीका बदला , सिर्फ एक क्षेत्र तक नहीं बल्कि देश के बाहर भी लोगो को कैसे समझाया जाए , इन सभी मुद्दों पर काम किया । चुनौती के रूप में आज भी जिससे हर वैद्य जूझ रहा है, वह है घरवालों से स्वीकृति।आयुर्वेद , उस बूढ़ी बुआ की तरह है भारत में, जिसकी इज्जत तो सब करते हैं पर बात कोई भी नही मानता।
युवाओं में आयुर्वेद को लेकर कितना उत्साह है, सरकार की तरफ से किस तरह का सहयोग मिल रहा है ?
सोशल मीडिया के माध्यम से आज युवाओं में अपने स्वास्थ्य को लेकर, आयुर्वेद के सिद्धांतो को लेकर बेहद रुचि है । उनके सवाल अब तार्किक हो रहे हैं , वह किसी भी तरह के पूर्वाग्रह से पीड़ित नही हैं । वह आजमाना चाहते हैं अपनी विरासत को , देखना चाहते हैं इसके परिणाम और तब निर्णय लेना चाहते हैं।सरकार के प्रयास कोविड के दौरान और उससे पहले भी हमेशा आयुर्वेद के पक्ष में ही रहे हैं । मिनिस्ट्री द्वारा बेहद सराहनीय कदम लिए गए जहां पंचकर्म , स्वर्ण प्राशन को लोगो तक पहुंचाया गया है, पहुंचाया जा रहा है।