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पोषण के मामले में पति की इतनी अहमियत क्यों

पतियों की भागीदारी से गर्भवती महिला और शिशु का बेहतर पोषण और स्वास्थ्य सुनिश्चित करना आसान अनुष्का...
पोषण के मामले में पति की इतनी अहमियत क्यों

पतियों की भागीदारी से गर्भवती महिला और शिशु का बेहतर पोषण और स्वास्थ्य सुनिश्चित करना आसान

अनुष्का श्रीवास्तव

एक स्वस्थ बच्चा देश की मजबूती के लिए नींव होता है। जन्म के बाद शुरूआती 1000 दिनों में यह तय होता है कि बच्चे के शारीरिक और मानसिक विकास की नींव कितनी मजबूत है। स्वस्थ बच्चे का जन्म सुनिश्चित करने के लिए मां के स्वास्थ्य और गर्भावस्था और बच्चे के जन्म के बाद पोषण पर फोकस करना जरूरी होता है।

अगस्त 2018 में जर्नल ऑफ न्यूट्रीशन में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार मां के पौष्टिकता कार्यक्रम में पतियों का जुड़ाव सबसे महत्वपूर्ण हो सकता है। विकासशील देशों में इससे गर्भावस्था के समय माइक्रोन्यूट्रिएंट सप्लीमेंट और भोजन की विविधता बढ़ाने में मदद मिलती है और मां के अल्प पोषण की समस्या और बच्चों की मृत्यु होने की दर में कमी आती है।  

मां का पोषण सुधारने के लिए इस साल हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स, नीति नियंताओं, पतियों और सास के साथ महिलाओं के साथ मेरी बातचीत हुई तो इस बात का अहसास हुआ कि पति अथवा परिवार के पुरुष सदस्य की अहमियत महिला के स्वास्थ्य के मामले में खासकर जन्म और गर्भावस्था के दौरान बहुत ज्यादा है।

एसआरएस की रिपोर्ट के अनुसार भारत में मैटरनल मोर्टेलिटी रेट (एमएमआर) 2014-2016 में घटकर प्रति एक लाख जन्मे बच्चों पर 130 की रह गई। जबकि 2011-2013 में यह दर 167 पर थी। महिलाओं को गर्भावस्था के समय कुशल स्टाफ द्वारा देखरेख और डिलीवरी अस्पतालों में करवाने से मृत्यु दर में कमी आई।

हालांकि माताओं में कुपोषण की दूसरी समस्याएं (जैसे जन्म के समय बच्चे के वजन, गर्भाधान की अवधि) दूर करने की प्रगति धीमी रही। फील्ड विशेषज्ञ जोर देते हैं कि उनके पतियों को उनकी गर्भवती महिलाओं के साथ प्रसव पूर्व जांच, गर्भधारण पूर्व की देखभाल और सरकारी सुविधाएं लेने में पतियों की भूमिका पर परामर्श दिया जाना चाहिए।

भारत में इस समय करीब एक चौथाई विवाहित महिलाएं परिवार और अपने स्वास्थ्य के बारे में फैसलों में शामिल नहीं होती हैं। करीब 60 फीसदी महिलाएं इस तरह के फैसले अपने पति के परामर्श के बाद लेती हैं (एनएफएचएस रिपोर्ट 2015-2016)।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपनी सबसे ताजा सिफारिशों में महिलाओं के उचित गर्भावस्था के बारे में पतियों को शिक्षित और जागरूक बनाने की जरूरत पर जोर दिया है। उसने मातृत्व देखभाल में पतियों को शामिल करने के लिए बुकलेट और ऑडियो कैसेट के इस्तेमाल जैसी रणनीति अपनाने का भी सुझाव दिया है।

एक जिम्मेदारी पति और भावी पिता के नाते वे अपनी पत्नियों को उचित पोषण लेने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं ताकि स्वस्थ बच्चे का जन्म सुनिश्चित किया जा सके। पतियों का सहयोग तभी फायदेमंद हो सकता है जब उन्हें गर्भावस्था से संबंधित जानकारी और जागरूकता हो।

पतियों के लिए आवश्यक

- अपनी पत्नी के गर्भावस्था के समय उसका पंजीकरण सुनिश्चित करें और प्रसव पूर्व देखभाल केंद्रों पर जाने की तिथियां याद रखें

- स्थानीय आशा और एंबुलेंस सर्विस का फोन नंबर संभालकर रखें ताकि पत्नी की गर्भावस्था के दौरान गाइडेंस ले सकें।

- अपनी पत्नी के लिए पौष्टिक आहार खरीदें

- अपनी पत्नी को परेशान न करें बल्कि उसे सहानुभूति रखें क्योंकि वह भावनात्मक उतार-चढ़ाव में हो सकती है। गर्भावस्था के दौरान यह सामान्य होता है।

मेरी रिसर्च से पता चलता ह कि महिला का स्वास्थ्य सबसे ज्यादा जटिल सामाजिक मुद्दा है। यह सिर्फ महिला के स्वास्थ्य से संबंधित नहीं है बल्कि लैंगिक समानता, सामाजिक विचारधारा, राजनीतिक और मानवाधिकार से संबंधित है। महिलाओं के स्वास्थ्य की मौजूदा स्थिति आदर्श स्थिति से अभी बहुत दूर है। महिलाओं खासकर गर्भवती और बच्चे को दुग्धपान कराने वाली महिलाओं की देखभाल में सुधार सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है कि हम उनकी शारीरिक और मानसिक सुदृढ़ता के लिए मजबूत रुख अपनाएं।  उन्हें अपने घर से ही बेहतर देखभाल सुनिश्चित करने के लिए बुनियादी सधार पर फोकस करने की आवश्यकता है।

(लेखक नेशनल सेंटर ऑफ एक्सीलेंस एंड एडवांस्ड रिसर्च ऑन डाइट, लेडी इरविन कॉलेज, दिल्ली यूनीवर्सिटी के साथ मैटरनल न्यूट्रीशन पर यूनीसेफ प्रोजेक्ट के लिए काम करती हैं)

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