अक्सर ये कहा जाता है कि कुछ सीखने या पढ़ने की कभी कोई उम्र नहीं होती और यह सही भी है। अगर आपके दिल में कुछ सीखने की लगन है, तो कोई चाह कर भी आपके इस जज्बे के बीच नहीं आ सकता। दरअसल उम्र के जिस पड़ाव में अधिकतर लोग जीने की चाह छोड़ देते हैं उस उम्र में आकर एक बुजुर्ग ने एक ऐसी मिसाल पेश की,जो चर्चा का विषय बना हुआ है।
98 वर्षीय राजकुमार वैश्य नाम के इस शख्स ने इस उम्र में न केवल अपनी पढ़ाई पूरी की बल्कि सामान्य छात्रों के साथ बैठकर परीक्षा भी दी और एमए का कोर्स भी पूरा किया।
उम्र से पढ़ाई का कोई लेना-देना नहीं है
राजकुमार ने नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी (एनओयू) से एमए (इकोनॉमिक्स) में अपना नामांकन कराया था और आज इन्होंने द्वितीय श्रेणी से परीक्षा पास कर मिसाल कायम की है। दरअसल, इस उम्र में आकर राजकुमार ने अपनी पढ़ाई पूरी करके ना सिर्फ एक मिसाल कायम की है बल्कि यह नौजवानों और ऐसे लोगों को भी प्रेरित करने वाला है जो किसी कारणवश अपनी पढ़ाई पूरी करने में सफल नहीं हुए। 98 वर्षीय इस बुजुर्ग ने हमेशा से कहे जाने वाली कहावत को सही साबित कर दिया कि सीखने और पढ़ने की कोई उम्र नहीं होती, बस उसके प्रति ललक होनी चाहिए।
प्रवेश-पत्र पाकर फूले नहीं समाए थे
नामांकन के बाद प्रवेश-पत्र दिए जाने पर वैश्य ने खुशी जाहिर करते हुए कहा था कि 96 वर्ष की उम्र में उन्होंने पहली बार देखा है कि किसी शिक्षण संस्थान ने नामांकन के दिन ही साल भर बाद होने वाली परीक्षा की तिथि, समय एवं स्थान से परिचय करवाया है।
‘मैं सभी लोगों के लिए उदाहरण हूं’
NDTV की रिपोर्ट के मुताबक, आज परीक्षा पास करने के बाद एक बार फिर राजकुमार की खुशी का ठिकाना नहीं रहा और उन्होंने कहा, ‘आखिरकार, आज मैंने अपने सपने को पूरा कर लिया है, अब मैं पोस्टग्रेजुएट हो गया हूं’। उन्होंने कहा, ‘मैंने दो साल पहले इस सपने को पूरा करने का फैसला किया था कि इस उम्र में आकर भी कोई व्यक्ति अपने सपने को पूरा कर सकता है और कुछ हासिल कर सकता है, मैं उन सभी लोगों के लिए उदाहरण हूं’।
‘कभी उदास और परेशान नहीं खोना चाहिए’
वैश्य ने एक बार फिर दोहराया कि वह युवाओं को एक संदेश देने का प्रयास कर रहे हैं कि हार कभी स्वीकार नहीं करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि कभी उदास और परेशान नहीं खोना चाहिए, मौका और अवसर हर वक्त रहता है, केवल खुद पर विश्वास होना चाहिए।
राजकुमार ने यह स्वीकारते हुए कहा कि इस उम्र में उनके लिए एक छात्र की तरह रूटीन का पालन करना आसान नहीं था, उन्होंने कहा कि परीक्षा की तैयारी के लिए जागना उनके लिए वाकई काफी मुश्किल था।
अपने पोते-पोतियों से भी छोटे छात्रों के साथ दी परीक्षा
एनओयू के अधिकारियों के मुताबिक, वैश्य में एमए की उपाधि प्राप्त करने का ऐसा जज्बा था कि उन्होंने 2016 में एमए की प्रथम वर्ष की परीक्षा और 2017 में अंतिम वर्ष की परीक्षा अन्य छात्रों की तरह बहुत ही अनुशासित तरीके से तीन घंटे बैठकर दी। साथ ही, उन्होंने अपने पोते-पोतियों से भी कम उम्र के छात्रों के साथ बैठकर यह परीक्षा दी है। प्रत्येक परीक्षा में वैश्य ने अंग्रेजी माध्यम उपयोग करते हुए, हर परीक्षा में लगभग दो दर्जन शीट का इस्तेमाल किया।
1938 में पूरी की ग्रेजुएशन की पढ़ाई
वैश्य जो मूलत: उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के निवासी हैं इनका जन्म 1 अप्रैल, 1920 में हुआ था। इन्होंने मैट्रिक की परीक्षा वर्ष 1934 में, गवर्नमेंट हाई स्कूल, बरेली से द्वितीय श्रेणी से पास की थी। वैश्य ने 1938 में अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की। बैचलर ऑफ लॉ की परीक्षा, आगरा विश्वविद्यालय से पास की थी। इनके तीनों पुत्र जो भारत सरकार के बड़े पदों से सेवानिवृत्त हो चुके हैं।