रसगुल्ला पर एकाधिकार को लेकर पिछले ढाई सालों से जारी कोलकाता और ओड़िशा के बीच जंग अब खत्म हो गई है। मंगलवार को बंगाल सरकार ने रसगुल्ला का जीआई टैग अपने नाम कर लिया। दोनों राज्यों की दलीलें सुनने के बाद ओड़िशा सरकार के दावों को खारिज करते हुए यह टैग बंगाल सरकार को दिया गया।
इस लंबी लड़ाई के बाद रसगुल्ला नाम पर पूरी दुनिया में बंगाल का एकाधिकार हो गया है। रसगुल्ले को जीआई टैग मिलने पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बधाई दी है। उन्होंने ट्वीट किया, 'सभी के लिए अच्छी खबर है। पश्चिम बंगाल को रसगुल्ले के लिए जीआई टैग मिलने पर हम बेहद खुश और गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं।'
Sweet news for us all. We are very happy and proud that #Bengal has been granted GI ( Geographical Indication) status for Rosogolla
— Mamata Banerjee (@MamataOfficial) November 14, 2017
पिछले काफी समय से रसगुल्ले के आविष्कार को लेकर पश्चिम बंगाल तथा ओडिशा के बीच वर्षों से कानूनी लड़ाई चल रही थी। दोनों ही इसके अविष्कारक मान रहे थे। अंततः जीआई ने ओडिशा के आवेदन को खारिज कर दिया। इसके बाद रसगुल्ला नाम पर बंगाल का एकाधिकार हो गया। अधिकतर लोगों को यही पता है कि रसगुल्ला पश्चिम बंगाल का है जबकि कुछ का मानना है कि यह मूलतः ओडिशा का है। रसगुल्ले पर ओडिशा और पश्चिम बंगाल अपना-अपना दावा जताने के लिए सरकारी समितियां तक गठित कर दी थी।
पश्चिम बंगाल के खाद्य प्रसंस्करण मंत्री अब्दुर्रज्जाक मोल्ला का कहना था कि बंगाल रसगुल्ले का आविष्कारक है। मोल्ला ने ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर यह बताया था कि बंगाल रसगुल्ले का जनक है। उन्होंने बताया कि बंगाल के विख्यात मिठाई निर्माता नवीन चंद्र दास ने वर्ष 1868 से पूर्व रसगुल्ले का आविष्कार किया था। यह मामला तब सुर्खियों में आया जब ओडिशा सरकार ने रसगुल्ले के लिए भौगोलिक पहचान (जीआइ) टैग लेने की बात कही।
ओडिशा के विज्ञान व तकनीकी मंत्री प्रदीप कुमार पाणिग्रही ने 2015 में मीडिया के समक्ष दावा किया था कि 600 वर्ष पहले से उनके यहां रसगुल्ला मौजूद है। उन्होंने इसका आधार बताते हुए भगवान जगन्नाथ के भोग खीर मोहन से भी जोड़ा था। ओडिशा के इस दावे के खिलाफ पश्चिम बंगाल सरकार ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की बात कही थी।
इस पूरे मामले को लेकर भौगोलिक संकेत (जीआइ टैग) के साल्टलेक स्थित पेटेंट्स डिजाइंस एंड ट्रेडमार्क्स के कार्यालय में पेटेंट्स डिजाइंस एंड ट्रेडमार्क्स के कंट्रोलर जनरल ओपी गुप्ता के नेतृत्व में 10 सदस्यीय टीम के समक्ष बंगाल सरकार के विभिन्न विभाग के प्रतिनिधियों, पश्चिम बंगाल मिष्ठान व्यवसायी समिति के पदाधिकारियों, रसगुल्ला का अविष्कार करने का दावा करने वाले केसी दास के संस्थापक नवीनचंद्र दास के वंशज धीमान चंद्रदास व अन्य ने अपना पक्ष रखा था।
राज्य सरकार के विज्ञान एवं तकनीक विभाग की नोडल ऑफिसर महुआ होम चौधरी ने बताया कि रसगुल्ला का उद्भव स्थान बंगाल ही है। यह साबित करने के लिए राज्य सरकार ने कई दस्तावेज भी प्रस्तुत किए। रसगुल्ला का उल्लेख कृष्णदेव कविराज की चैतन्य चरितामृत में मिलता है और एक बार नहीं बल्कि कई बार मिलता है।
रसगुल्लों से जुड़ी सबसे प्रचलित कहानी यही है कोलकाता में 1868 में नबीनचंद्र दास ने इसे बनाने की शुरुआत की थी। कई इतिहासकारों की दलील है कि 17वीं शताब्दी से पहले भारतीय खानपान में ''छेना" का जिक्र नहीं मिलता जो रसगुल्ला बनाने के लिए सबसे जरूरी होता है। भारतीय पौराणिक आख्यानों में भी दूध, दही, मक्खन का जिक्र तो मिलता है पर छेना का नहीं मिलता।
इसको लेकर बांग्ला मिष्ठान व्यवसायी समिति के महासचिव रवींद्र कुमार पॉल ने कहा कि हम लोग पूरी तरह से आश्वस्त हैं कि रसगुल्ला का पहला आविष्कार बंगाल में ही हुआ। चैतन्य महाप्रभु का आविर्भाव 530 वर्ष पहले हुआ था और उस समय रसगुल्ला का उल्लेख है।