मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड में जल संकट ने विकराल रूप ले लिया है। प्राकृतिक जल स्रोत से लेकर ट्यूबवेल और हैंडपंप भी लोगों को पानी के लिए तरसा रहे हैं। ऐसे में ग्रामीणों के लिए आदिवासी महिलाओं का एक समूह मिसाल बन कर सामने आया है। गांववाले इन्हें 'हैंडपंम्प वाली चाची' भी कहते हैं।
छतरपुर के घुवारा तहसील के झिरियाझोर गांव से ताल्लुक रखने वाली ये 15 महिलाएं आस-पास के गांवों में हैंडपम्प और ट्यूबवेल की मुफ्त में मरम्मत के लिए जाती हैं।
हर साल गर्मी के मौसम में जल स्तर गिरता जा रहा है, जिसकी वजह से ट्यूबवेल मरम्मत के लिए इन्हें काफी फोन आते हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, ये महिलाएं इस सीजन में सौ से ज्यादा ट्यूबवेल की मरम्मत कर चुकी हैं। गांव वालों का कहना है कि पब्लिक हेल्थ इंजिनियरिंग विभाग के कारीगर जब तक यहां आते हैं, काफी देर हो चुकी होती है इसलिए सरकारी मदद की जगह वह हैंडपम्प वाली चाचियों को ही कॉल कर सहायता के लिए बुलाते हैं।
समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक, इन महिलाओं का कहना है कि वे भोपाल, राजस्थान और दिल्ली में भी ट्यूबवेल्स की मरम्मत कर चुकी हैं। वे पास के गांवों में पैदल जाती हैं। अधिकारियों से उन्हें अब तक कोई मदद नहीं मिली है। वे 8-9 सालों से यह काम कर रही हैं। इन महिलाओं के लिए कहा जा सकता है कि पुरुष प्रधान क्षेत्र में इन्होंने बड़ी मिसाल कायम की है।