एशियाटिक सोसायटी के महासचिव डॉ. सत्यब्रत चक्रवर्ती ने कहा कि गत वर्ष दिसंबर में शुरू हुई डिजिटीकरण की प्रक्रिया तीन चरणों में पूरी की जाएगी। उन्होंने कहा, पहले चरण में केवल पुरानी पांडुलिपियों का डिजिटीकरण किया जाएगा।
चक्रवर्ती ने कहा कि पहले चरण के डिजिटीकरण के जून में समाप्त होने की संभावना है और दूसरे चरण का काम जुलाई के अंत तक शुरू होगा।
कोलकाता की इस प्रमुख संस्था ने किताबों और पांडुलिपियों का डिजिटीकरण करने में देरी कर दी। यहां तक कि मुंबई की 211 वर्ष पुरानी एशियाटिक सोसायटी ने 2015 में ही एक लाख किताबों और 2,500 पांडुलिपियों का डिजिटीकरण शुरू कर दिया था।
गौरतलब है कि एशियाटिक सोसायटी की स्थापना सर विलियम जोन्स ने 15 जनवरी 1784 को थी। इसके पास 100 साल से भी ज्यादा पुरानी करीब 52,000 पांडुलिपियां है जिनका पहले चरण में डिजिटीकरण किया जाएगा। इन पांडुलिपियों में कुरान की पांडुलिपि और पादशानामा पांडुलिपि भी शामिल हैं, जिस पर शहंशाह शाहजहां के हस्ताक्षर है।
एशियाटिक सोसायटी के पास ऐतिहासिक और भारत से संबंधित अन्य कामों का बड़ा संग्रह है जिसमें संस्कृत, अरबी, पर्शियन और उर्दू की पांडुलिपियां भी शामिल हैं।
गौरतलब है कि एशियाटिक सोसायटी में लगभग 1 लाख 75 हज़ार पुस्तकों का संग्रह है जिनमें तमाम पुस्तकें तथा वस्तुएं अन्यंत दुर्लभ हैं। मार्च 1984 में संसद के एक अधिनियम के द्वारा इस सोसायटी को राष्ट्रीय महत्व का संस्थान घोषित किया गया। इसमें एशिया का प्रथम आधुनिक संग्रहालय भी था, जिसके संग्रहालय की स्थापना 1814 ई. में हुई थी। लेकिन इसके संग्रह की अधिकांश वस्तुएं अब 'इंडियन म्युज़ियम' में रख दी गई हैं। यहाँ अब देखने योग्य वस्तुओं का छोटा संग्रह ही है। इन्हीं वस्तुओं में तिब्बतियन थंगस तथा अशोक का प्रसिद्ध शिलास्तंभ भी है।