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दिल्ली के लिए दिली ख्वाहिश

दो काव्य-संग्रह, नदी के पार नदी (2002), नेशनल पब्लिशिंग हाउस, नई दिल्ली, मैं सड़क हूं (2011), बोधि प्रकाशन, जयपुर से प्रकाशित। देश की सभी महत्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं में कविताएं,आलेख,समीक्षाएं प्रकाशित। कुछ संपादित संग्रहों में कविताओं का चयन। हिंदी समय, (महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा) पर काव्य संग्रह' मैं सड़क हूं' की ई पुस्तक सहित कई कविताएं शामिल। कुछ कहानियां/लघु-कथाएं प्रकाशित। दूरदर्शन/आकाशवाणी से कविताओं/कहानियों का प्रसारण।
दिल्ली के लिए दिली ख्वाहिश

एक

पिक्चर-पोस्टकार्ड पर

रोशनी से जगमगाते

किसी शहर के

कुछ अंधेरे हिस्से भी होते हैं।

हो सके अगर तो

उजाले से निकल बाहर

कभी उधर भी जाकर

आओ जरा।

दो

मैं चाहता हूं 

दिल्ली में

कुछ दिनों के लिए

'ब्लैक-आउट’ हो जाए

मैं देखना चाहता हूं 

रोशनी से जगमगाते

रहने के बावजूद

अपराध-राजधानी बना

यह शहर

सचमुच के अंधेरे में

क्या गुल खिलाता है!

तीन

रोशनी में जो दिखता है

वह हमें अक्सर 

चकाचौंध और गुमराह

ही करता है आखिर 

मैं अंधेरे में

भारत की राजधानी का

फक्क पड़ता और

सफेद होता चेहरा

देखना चाहता हूं।

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