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वह सिर्फ जूता तो नहीं बनाता

घर-घर घूमा, रात-बिरात, मगर एक आवाज, ये बदमस्ती तो होगी, देखा-अदेखा, लिखे में दुक्‍ख, एक बहुत कोमल तान, मनवा बेपरवाह, अंदमान-निकोबार की लोक कथाएं, पहाड़ और परी का सपना (लोक कथाएं), चांद पर धब्बा, पेड़ बोलते हैं (बाल कहानी संग्रह)। चेखव की कथा पर फिल्म एवं प्रख्यात कथाकार ज्ञानरंजन पर वृत्तचित्र का निर्देशन। घर-घर घूमा कविता संग्रह पर मध्यप्रदेश साहित्य परिषद के रामविलास शर्मा सम्मान से पुरस्कृत, रात-बिरात कविता संग्रह मध्य प्रदेश साहित्य सम्मेलन के वागेश्वरी पुरस्कार तथा मध्य प्रदेश कला परिषद के रजा सम्मान से सम्मानित।
वह सिर्फ जूता तो नहीं बनाता

वह निर्जीव शिल्प में जूते नहीं गांठता

वह कारखाने से बाहर आदिम कला को भाषा-परिभाषा देता है

 

अपनी खाल की तरह वह संवारता है चमड़े को भोर से

स्निग्ध कोमल खालों के बीच रहता हुआ

वह उसकी सुगंध में डूब जाता है बगैर जिसके जीना कठिन

 

वह सूखते-कुम्हलाते बालों को दुख में कहता है अलविदा

कोई मशीन नहीं है उसके पास

वह अपने औजारों को बच्चों की तरह पालकर बरतता है

 

पूरे नाप-जोख के साथ काटता है चमड़ा सलीके से

वह उसका एक-एक टुकड़ा संभालकर रखता है

न जाने किस गरीब की पनइया के जीवन पर उसे आना है

 

तरह-तरह के लकड़ी के नापों पर करीने से मंडाता चमड़ा, वह स्वप्न में डूब जाता है

उन आकारों के बारे में सोचता है रात गए जिनका बनना शेष है

वह पैरों के नाप के बारे में, हो सकने वाले दर्द के साथ सोचता है

 

वह जानता है उस चुभन को जो किसानों को होती है खेत में काम करते हुए

वह मजूरों के पांवों को आंखों में बैठाकर जूते के चित्र बनाता है

उसके बनाए जूतों को होना चाहिए कलाकारों की प्रदर्शनी में

 

वह कोमल चमड़े को गंध सहित सहेजता है जूतों में

पैतृक कला से वह गढ़ता है ऐसा सजीव जूता, जिसमें उसकी अपनी गंध भी होती है

 

कोई कलाकार ऐसा चित्र किस विधि से बना पाएगा, वह सोचता है

वह सिर्फ जूता तो नहीं बनाता, यह सोचता फिर काम में जुट जाता है

वह इसके आगे दुनिया के बारे में सब जानता हुआ भी, कुछ और सोच नहीं पाता

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