Advertisement

मनमोहन ने लौटाया हरियाणा साहित्य अकादमी का सम्मान

देश में लेखकों पर बढ़ते हमले और असहमति की आवाजों को दबाने के विरोध में हिंदी के वरिष्ठ कवि-चिंतक मनमोहन ने हरियाणा साहित्य अकादमी की ओर से मिला सम्मान लौटा दिया है। उन्होंने सम्मान के साथ मिली 1 लाख रुपये की राशि भी अकादमी को वापसभेज दी है।
मनमोहन ने लौटाया हरियाणा साहित्य अकादमी का सम्मान

मनमोहन को हरियाणा साहित्य अकादमी की ओर से 2007-08 का`महाकवि सूरदास सम्मान` दिया गया था। इस सम्मान के साथ मिली एक लाख रुपये की धनराशि उन्होंने वैचारिक नवजागरण मूल्यों के लिए काम कर रही स्वैच्छिक सामाजिक-सांस्कृतिक संस्था हरियाणा ज्ञान-विज्ञान समिति को भेंट कर दी थी। लेकिन, अब सम्मान लौटाते हुए उन्होंने 1 लाख रुपये की यह राशि अपने पास से अकादमी को चैक के जरिये भेज दी है।

 

उन्होंने हरियाणा साहित्य अकादमी को भेजे पत्र में देश में असहमति के अधिकार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को हिंसक तरीके से दबाने के तेज हुए चलन और बुद्धिजीवियों-लेखकों की हत्याओं पर चिंता जाहिर की है। उन्होंने दुख जताया है कि जिम्मेदार संवैधानिक पदों पर बैठे अनेक लोग और राजनेता ऐसी घटनाओं का औचित्यीकरण कर रहे हैं या उन्हें सीधे प्रोत्साहित करते दिखाई दे रहे हैं।

 

पुरस्कार लौटाने की घोषणा के साथ एक बयान जारी कर मनमोहन ने कहा, देश के हालात अच्छे नहीं हैं। जिन्हें अभी नहीं लगता, शायद कुछ दिन बाद सोचें। जिन लोगों ने नागरिक समाज का ख्याल छोड़ा नहीं है और जिनके लिए मानवीय गरिमा और न्याय के प्रश्न बिल्कुल व्यर्थ नहीं हो गए हैं, उन्हें यह समझने में ज्यादा कठिनाई नहीं होगी कि परिस्थिति असामान्य रूप से चिन्ताजनक है। अब यह स्पष्ट है कि बौद्धिक रचनात्मक बिरादरी की नियति उत्पीड़ित आबादियों, स्त्रियों, दलितों, अल्पसंख्यकों इन सभी के साथ एक ही सूत्र में बंधी है। लड़ाई लंबी और कठिन है। पुरुस्कार लौटाना प्रतीकात्मक कार्रवाई सही, पर इससे प्रतिरोध की ताकतों का मनोबल बढ़ा है। यह दुखद और शर्मनाक है कि जाने-माने रचनाकारों और बुद्धिजीवियों के इस देशव्यापी प्रतिवाद के गंभीर अर्थ को समझने के बजाय सत्ताधारी लोग इसका मजाक उड़ाने और इसे टुच्ची दलीय राजनीति में घसीट कर इसकी गरिमा को कम करने की व्यर्थ कोशिशें कर रहे हैं। अब जरूरत है कि हम और करीब आएं, मौजूदा चुनौतियों को मिलकर समझें और ज्यादा सारभूत बड़े वैचारिक हस्तक्षेप की तैयारी करें। अगर हमने यह न किया तो इसकी भारी कीमत इस मुल्क को अदा करनी होगी।

 

अपनी पीढ़ी के बड़े कवियों में शुमार मनमोहन वैचारिक प्रतिबद्धता के लिए जाने जाते हैं। आपातकाल के दौरान वे जेएनयू के छात्र थे और उस समय भी आपातकाल के विरोध में `आ राजा का बाजा` जैसी उनकी कई कविताएं बेहद चर्चित हुई थीं। हरियाणा में नवजागरण आंदोलन में भी उनकी प्रभावी नेतृत्वकारी उपस्थिति रही है।       

 

 

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोर से
Advertisement
Advertisement
Advertisement
  Close Ad