दरअसल पूर्वांचल के मुस्लिम मतदाताओं के बीच मुख्तार अंसारी और पूर्व सांसद अफजाल अंसारी की खासी पकड़ है। अफजाल अंसारी कभी सपा के करीबी रहे लेकिन सियासी कारणों से उन्हें अलग पार्टी बनानी पड़ी। कौमी एकता दल के नाम से पिछले विधानसभ्ाा चुनाव में उन्होने उम्मीदवार भी उतारे थे। लेकिन बाद में उन्होने अपनी पार्टी का सपा में विलय करा दिया। जिसका मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कड़ा विरोध किया था। बाद में जब अखिलेश यादव पार्टी के अध्यक्ष बने तो उन्होने कौमी एकता दल का विलय रद़द कर दिया। उसके बाद से ही सियासी समीकरण बदलने लगा।
हालांकि बसपा प्रमुख मायावती जब मुख्यमंत्री थी तब मुख्तार अंसारी को सलाखों के पीछे रहना पड़ा। उस समय मुख्तार और बसपा के बीच छत्तीस का आंकड़ा था। लेकिन कहते हैं कि सियासत में कुछ भी संभव है। आज वही मुख्तार अंसारी मायावती के लिए खास हो गए। मायावती ने मुख्तार के अलावा उनके भाई और बेटे को भी बसपा से टिकट दिया है। मुख्तार के बसपा में जाने से अब पूर्वांचल के मुस्लिम मतदाताओं का झुुकाव बसपा की ओर हो सकता है। वहीं सपा के बीच अगर मुस्लिम मतदाताओं का बंटवारा हुआ तो इसका लाभ भाजपा को हो सकता है। ऐसे में मुख्तार के बसपा में जाने से जहां भाजपा फायदे में नजर आ रही है वहीं सपा के लिए मुश्किल हो सकती है।