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बिहार के कोशी क्षेत्र के लिए भाजपा की नई रणनीति

बिहार का कोशी क्षेत्र लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी नीत एनडीए के लिए बुरा सपना साबित हुआ था। यहां पर एनडीए को एक भी सीट जीतने में कामयाबी नहीं मिली थी। कभी कांग्रेस का गढ़ रहा यह क्षेत्र कालांतर में पहले लालू प्रसाद और फिर जद-यू-भाजपा का दुर्ग बना मगर लोकसभा चुनाव में यहां मिली हार ने भाजपा को इस क्षेत्र में नई रणनीति बनाने के लिए मजबूर कर दिया।
बिहार के कोशी क्षेत्र के लिए भाजपा की नई रणनीति

पार्टी की नई रणनीति यहां पिछड़ी एवं अति पिछड़ी जातियों के वोट में सेंध लगाने की थी, क्योंकि पारंपरिक रूप से यह दोनों वर्ग जनता परिवार का समर्थक माना जाता है। कोशी के इस इलाके के ग्रामीण क्षेत्रों में भटकने से यह साफ हो जाता है कि भारतीय जनता पार्टी अपनी इस रणनीति में बहुत हद तक कामयाब होती दिख रही है।

 

कोशी क्षेत्र मुख्यत: किशनगंज, अररिया, कटिहार, पूर्णिया, मधेपुरा, सुपौल और सहरसा जिलों को मिलाकर बनता है। ऐतिहासिक रूप से कोशी और उसकी सहायक नदियों की बाढ़ से हर वर्ष तबाह रहने वाला यह इलाका राज्य के सबसे पिछड़े क्षेत्रों में आता है और साथ-साथ यह राज्य का सबसे अधिक मुस्लिम आबादी वाला क्षेत्र भी है। किशनगंज, अररिया, कटिहार और पूर्णिया में मुस्लिम आबादी 40 से लेकर 67 फीसदी तक है। जाहिर है यहां जनता दल यूनाइटेड, राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस महागठबंधन का दाव बहुत ऊंचा है। दूसरी ओर भाजपा की उम्मीदें यहां मुस्लिम वोट बैंक में अन्य छोटे दलों द्वारा लगाए जाने वाले सेंध पर टिकी है। हालांकि अभी तक यह तय नहीं है कि ओवैसी की पार्टी एआईएसआईएम बिहार चुनाव में उतरेगी या नहीं। वैसे करीब 45 फीसदी मुस्लिम आबादी वाले कटिहार क्षेत्र में आउटलुक संवाददाता ने मुस्लिम समुदाय के जितने भी लोगों से चुनाव पर चर्चा की उससे सिर्फ एक ही तथ्य निकल कर आया कि यह समुदाय इस बार एकजुट होकर जदयू गठबंधन के पीछे खड़ा है। यहां तक कि इसके लिए वह तारिक अनवर को झटका देने के लिए भी तैयार है। जबकि अनवर का इस इलाके में खासा प्रभाव है और उन्होंने यहां काफी काम भी किया है। मगर मुस्लिम समुदाय के लिए खतरे की घंटी दूसरी है।

 

 

कटिहार के ही कदवा प्रखंड के भ्रमण के दौरान यह जानकारी मिली कि कदवा विधानसभा क्षेत्र में कम से कम 10 मुस्लिम उम्मीदवार निर्दलीय मैदान में उतरने को तैयार है और उनका बजट भी 50 लाख रुपये से लेकर 2 करोड़ रुपये तक है। इस विधानसभा क्षेत्र में लगातार भ्रमण करने वाले स्थानीय पत्रकार संजीव मिश्रा बताते हैं कि ये निर्दलीय उम्मीदवार अगर पैसे के जोर पर अल्पसंख्यक मतों के एक छोटे से हिस्से को भी प्रभावित कर पाए तो भाजपा के लिए जीत आसान हो जाएगी। मिश्रा की बात पर मुहर लगाती है इसी विधानसभा क्षेत्र के अति पिछड़ा वर्ग में आने वाले धानुक लोगों की बस्ती में, जो पहले लालू प्रसाद यादव के कट्टर समर्थक हुआ करते थे। यह बस्ती अब भाजपा के पोस्टरों से पटी है। इस समुदाय से आने वाले मनोज कुमार मंडल भाजपा के स्थानीय युवा नेता है। पूर्णिया के स्थानीय निवासी और गरीब तबके से आने वाले जावेद अंसारी आउटलुक से बातचीत में कहते हैं कि पिछले डेढ़ साल में सब कुछ बर्बाद कर दिया है। जाहिर है जावेद भाजपा को हराने वाले किसी भी उम्मीदवार को वोट देंगे। इसी प्रकार कटिहार के ही प्राणपुर विधानसा क्षेत्र के चौलहर पंचायत के एक संपन्न मुस्लिम इब्राहिम से जब यह पूछा गया कि तारिक अनवार का कितना प्रभाव होगा तो उन्होंने साफ कहा कि तारीक साहब खुद को मुस्लिम का एक मात्र नेता समझ बैठे हैं। उनकी गलतफहमी इस बार दूर हो जाएगी।

 

लालू या नीतीश के लिए राहत की खबर यह कि कोशी के ग्रामीण इलाकों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम लोग नहीं लेते। इन इलाकों में स्थानीयता इस कदर हावी है कि लोगों का पूरा ध्यान सिर्फ इस पर लगा है कि उम्मीदवार किसे बनाया जाएगा। कदवा विधानसभा क्षेत्र में भाजपा के टिकट का प्रयास कर रहे धर्मेंद्र नाथ ठाकुर आउटलुक से कहते हैं कि इस विधानसभा क्षेत्र में स्वर्ण अल्पसंख्यक हैं फिर भी पिछली बार और उससे पहले भी भाजपा के भोला राय दो बार जीत चुके हैं जो कि ब्राह्मण समुदाय से थे। इससे साबित होता है कि यहां दूसरी जातियां भी भाजपा को वोट देती रही हैं। भोला राय के निधन के कारण यह सीट खाली है और भाजपा में यहां से टिकट के कम से कम 12 दावेदार हैं।

 

वैसे राष्ट्रीय मीडिया में जीतन राम मांझी के प्रभाव को लेकर काफी चर्चाएं है मगर कोशी में माझी के प्रभाव को लेकर खुद भाजपा नेताओं को संदेह है। यूं तो मांझी की जाति मुसहर समुदाय  के वोट इस इलाके में ठीक-ठाक है मगर पिछले चुनाव तक नीतीश के साथ रहा यह वर्ग इस बार मांझी के कारण पाला बदल ही लेगा यह तय नही है। हां यह जरूर देखा गया है कि नरेंद्र मोदी की सहरसा और भागलपुर रैलियों के इस समुदाय से कुछ युवा सिर्फ मांझी को देखने रैली स्थल तक गए। वैसे पटना के 1 अणे मार्ग स्थित मुख्यमंत्री निवास में लगे आम और लीची के फलों का मुद्दा यहां की दलित बस्तियों में स्वाभिमान के प्रतिक के रूप में चर्चा का केंद्र बना हुआ है और लोग आपसी बातचीत में यह कहते सुने जा सकते हैं, देखिये नीतीश ने तो एक महादलित को आप तक नहीं खाने दिया। हालांकि यह जुमले चुनावी वोट में बदलेगें या नहीं इसकी गारंटी नहीं है क्योंकि इस इलाके में मुसहरों का शोषण हमेशा से ही सवर्णो के हाथों होता आया है और यह समुदाय उसी का साथ देता है जो सवर्णो के खिलाफ उन्हें संरक्षण दे सके। पहले लालू और बाद मे नीतीश इस समुदाय का वोट पाते रहे हैं।

 

पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा को हार कोशी क्षेत्र में मुख्यत: तीन वजहों से हुई थी। पहला, मुस्लिम एकजुट थे, दूसरा ब्राह्मणों ने कांग्रेस का साथ दिया था और तीसरा, लोग भाजपा के स्थानीय सांसदों से खुश नहीं थे। इनमें से पहले दो कारक शायद इस बार भी पार्टी को परेशान करें क्योंकि‌ माना जा रहा है कि कांग्रेस शायद अपने हिस्से की सीटों पर ज्यादा से ज्यादा संख्या में ब्राह्मण उम्मीदवार उतारे। ऐसा इसलिए ताकि भाजपा के पाले से उसके कोर वोटर को तोड़ा जा सके। इसकी भरपाई के लिए ही भाजपा ने पिछड़े और अति पिछड़ों में सेंध लगाने की रणनीति बनाई है। इन जातियों के युवा बड़ी संख्या में मोदी की रैलियों में शिरकत कर रहे हैं। इनमें शिक्षित वर्ग ज्यादा है चूंकि अब तक जदयू गठबंधन का प्रचार पटना की एक रैली से आगे नहीं बढ़ पाया है इसलिए यह आंकलन भी मुश्किल है कि महागठबंधन किस हद तक अपने समर्थकों को एकजुट कर पाया है।

 

एक अहम बात, भाजपा के परिवर्तन रथ न सिर्फ गांव-गांव पहुंच रहे हैं बल्कि वह नीतीश और लालू के एक-दूसरे के खिलाफ अतीत में दिए गए बयानों को लोगों तक पहुंचा रहे हैं। दूसरी ओर इन  परिवर्तन रथों के जवाब में हजारों टमटम उतारने की लालू की घोषणा बस घोषणा ही रह गई है। ऐसे में जदयू गठबंधन प्रचार के मामले में भाजपा से पिछड़ता दिख रहा है।

 

बिहार चुनावों का ऊंट किस करवट बैठेगा यह तो समय बताएगा मगर कोशी क्षेत्र की इस यात्रा के दौरान एक पैसेजर ट्रेन में मिले सासाराम के एक बेरोजगार इंजीनियर की बात सामाजिक समीकरणों के उलट-पलट हो जाने का संकेत देती है। इस नवयुवक ने आउटलुक से कहा, ‘वैसे तो हम जनरल वर्ग (सामान्य या सवर्ण) से है मगर इस बार नीतीश को वोट देंगे क्योंकि राज्य का विकास वही कर सकते हैं। साफ है कि सवर्ण वर्ग का पढ़ा-लिखा तबका जहां नीतीश के पक्ष में बोल रहा है वहीं पिछले वर्ग के शिक्षित युवा मोदी-मोदी के नारे लगा रहे हैं।

 

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