संघ से मिले निर्देश के बाद भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने अप्रैल महीने से बिहार में दौरों की सूची तैयार कर ली है। इसकी शुरूआत होगी डा. भीमराव आंबेडकर की जयंती 14 अप्रैल को जब पटना में कार्यकर्ता सम्मेलन को अमित शाह संबोधित करेंगे। उसके बाद चुनाव की घोषणा तक हर महीने में दो बार शाह बिहार का दौरा करेंगे। बताया जा रहा है कि इस सम्मेलन में मुख्य तौर पर दलितों को लुभाने की रणनीति पर चर्चा होगी ञ्चयोंकि यह माना जा रहा है कि प्रदेश में अभी दलितों का झुकाव भाजपा की ओर नहीं हो पा रहा है।
आबादी के हिसाब से राज्य में 16 फीसदी दलित मतदाता है जिनका कोई एक नेता नहीं है। लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी द्वारा दलित अस्मिता का सवाल उठाए जाने के बाद से माना जा रहा है कि दलित एकजुट होकर मांझी के साथ जा सकता है। मांझी ने अभी तक पत्ते नहीं खोले हैं कि वह किसके साथ जाएंगे। भाजपा से भी संपर्क बना हुआ और नए समीकरणों की संभावनाएं प्रबल हैं। मांझी के समर्थक और राष्ट्रीय जनता दल के सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव आउटलुक से बातचीत में कहते हैं कि बिहार में नए समीकरण की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता । राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि राज्य में मांझी को मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने के बाद नए सियासी समीकरणों की आहट दिखाई पड़ रही है। दलित वोट पर भाजपा की नजर गड़ी हुई है। रामविलास पासवान पहले से ही भाजपा के साथ हैं, अगर मांझी ने भी साथ दे दिया तो बिहार में कमल खिल सकता है। मांझी कहते हैं कि भाजपा ने उन्हें धोखा दिया। विश्वासमत के दौरान अगर भाजपा पहले ही समर्थन कर देती तो उनकी कुर्सी नहीं जाती। मांझी कब बदल जाएं, इसको लेकर भाजपा संशय में है। ऐसे में भाजपा की रणनीति है कि मांझी से स्वतंत्र भी दलितों के बीच में पार्टी अपनी पैठ बढ़ाए। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मंगल पांडे कहते हैं कि पार्टी हर वर्ग के बीच में अपनी पकड़ बनाना चाहती है। इसलिए वह सबका साथ, सबका विकास के नारे के साथ जनता के बीच जाएगी।
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि बिहार की सियासत इस समय दिलचस्प मोड़ पर है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए विधानसभा चुनाव किसी चुनौती से कम नहीं है। राष्ट्रीय जनता दल और जनता दल यूनाइटेड के विलय की संभावनाएं धूमिल होती जा रही हैं। ऐसे में नए सियासी समीकरण बनने की संभावनाएं प्रबल है। युवक कांग्रेस के नेता शम्स शाहनवाज का कहना है कि सामाजिक न्याय का नारा देने वाली ताकतों का असर बिहार में कम हो चुका है। जनता झूठे वायदों से ऊब चुकी है। सुशासन का नारा देकर नीतीश कुमार बिहार की जनता को कितना लुभा पाएंगे, यह तो आने वाला समय ही बताएगा।