कोरोना संकटकाल में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बिना मंत्रिमंडल के सरकार चलाने का रिकार्ड आज अपने नाम दर्ज कर कर्नाटक के मुख्यमंत्री बी. एस. येदियुरप्पा को पीछे छोड़ दिया है। शिवराज सिंह के इस रिकार्ड के साथ कई सवाल भी खड़े हो रहे हैं और राज्य की राजनीति उफान पर आ गई है। राज्य में कोरोना संक्रमण के मामले 1400 से ज्यादा हो गए हैं और संक्रमण से मरने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही 69 तक पहुँच गई है। राज्य का व्यापारिक शहर इंदौर देश का एपिडेमिक सेंटर बन गया है। राज्य में प्रशासनिक मशीनरी फेल होने का आरोप लगते हुए कांग्रेस नेता और मध्यप्रदेश से राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र लिखकर राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की है, तो दूसरी तरफ भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बी. डी. शर्मा का कहना है - कमलनाथ सरकार की उदासीनता के चलते राज्य में ऐसे हालात पैदा हुए। शिवराज सिंह ने तो मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते ही कोरोना से निपटने के काम में लग गए।
कमलनाथ ने 20 मार्च को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। 23 मार्च की रात को शिवराज सिंह चौहान ने आनन-फानन में मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। 24 मार्च से देश में लॉकडाउन है। लॉकडाउन से शिवराज का मंत्रिपरिषद भी अटक गया और वे अकेले सारा बोझ उठाकर कोरोना के जंग से राज्य को उबारने में लगे हैं। मंत्रिमंडल नहीं बन पाने से शिवराज सिंह के नाम के आगे एक और तगमा बिना कैबिनेट के सर्वाधिक दिन ( अभी 27 दिन) सरकार चलाने वाला जुड़ गया। कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने भी 25 दिन तक बिना कैबिनेट की सरकार चलाई थी और 26वें दिन उन्होंने अपने मंत्रिमंडल का गठन किया था। येदियुरप्पा ने 26 जुलाई 2019 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी और उसके ठीक 26वें दिन 20 अगस्त 2019 को अपने मंत्रिमंडल का गठन किया था। 23 मार्च की रात को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते ही शिवराज सिंह लगातार चार बार मध्यप्रदेश मुख्यमंत्री बनने वाले पहले नेता बन गए। शिवराज सिंह राज्य में नित नए रिकार्ड बना रहे हैं तो दूसरी तरफ कोरोना राज्य में अपना पांव फैलता जा रहा है। कांग्रेस मीडिया विभाग के उपाध्यक्ष भूपेंद्र गुप्ता कहते हैं - 21 मार्च तक राज्य के केवल एक जिले में ही कोरोना संक्रमण के मरीज थे। आज 26 जिले इसकी चपेट में आ गए हैं। इंदौर में 24 दिन में कोरोना संक्रमण के मामले 200 गुना बढ़ गए। सरकार ने मेडिकल की समस्या को कानून-व्यवस्था की समस्या बना दी, जिसके कारण जनता को खामियाजा भुगतना पड़ रहा है।
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष श्री शर्मा ने आउटलुक से चर्चा करते हुए कहा कि भाजपा की प्राथमिकता मंत्रिमंडल नहीं है, उसकी पहला लक्ष्य तो कोरोना पर विजय पाना है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने अपने को कोरोना के जंग में झोंक दिया है। कोरोना से निपटने के लिए टास्क फ़ोर्स का गठन किया गया है। विशेषज्ञों की कमेटी भी बनाई है। इस लड़ाई में जीत के लिए समाज के सभी वर्गों से राय ली जा रही है। उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्रियों से भी चर्चा की। उम्मीद है कि जल्द ही इस पर काबू पा लिया जायेगा। श्री शर्मा का मानना है कि कमलनाथ की सरकार फरवरी और मार्च के पहले हफ्ते ठोस कदम उठाती तो राज्य को समस्या सामना नहीं करना पड़ता। तब मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव आईफा अवार्ड को सफल बनाने अभियान थे और इंदौर में बैठक ले रहे थे, जो आज देश कोरोना हाट स्पॉट बन गया है। श्री शर्मा का कहना है कि - जब राहुल गाँधी ने कमलनाथ को कोरोना के बारे में पहले आगाह कर दिया था तो उन्होंने कदम क्यों नहीं उठाये ? भूपेंद्र गुप्ता का कहना है केन्द्र सरकार ने 31 जनवरी को पहला पत्र भेजकर वायरस की जानकारी और सतर्क रहने के निर्देश दिए थे , कमलनाथ की सरकार के स्वास्थ्य कमिश्नर ने 28 जनवरी को ही जिलों को एडवाईजरी जारी कर चुके थे। 3 फरवरी को पीएस स्तरीय बैठक हुई, जिसमें कोरोना संबंधी निर्देश जारी किये गये।4 फरवरी को 104 काल सेंटर शुरू कर दिया गया ,जो कोरोना से संबंधित मरीजों के बारे में अपडेट करेगा और सूचना एकत्र करेगा। कांग्रेस के नेशनल मीडिया कॉर्डिनेटर अभय दुबे का कहना है कमलनाथ महामारी से युद्ध स्तर पर लड़ने की तैयारी कर रहे थे, दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी कमलनाथ सरकार को अस्थिर कर मध्यप्रदेश को महामारी की आग में झोंकने में व्यस्त थी ।
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ( एनसीपी ) के राष्ट्रीय प्रवक्ता और सचिव बृजमोहन श्रीवास्तव का मानना है कि चाहे कमलनाथ की सरकार हो या शिवराज की, दोनों की लापरवाही और गलतियों के चलते मध्यप्रदेश कोरोना संक्रमण का केंद्र बन गया है। कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए शुरूआती कदम जिस तरह उठाये जाने चाहिए थे, वह नहीं दिखा। वहीँ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह अकेले ही सरकार चला रहे हैं और कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए प्रतिदिन का जिस तरह एक्शन प्लान होना चाहिए, वह नजर नहीं आ रहा है। दिहाड़ी मजदूरों से लेकर हॉस्टल में रहने वाले बच्चे परेशान हो रहे हैं। कोई रणनीति ही नहीं दिखाई पड़ रही है।
राष्ट्रीय लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय संरक्षक रघु ठाकुर का कहना है कि मध्यप्रदेश इन दिनों दो तरह की महामारी से जूझ रहा है। एक कोरोना और दूसरी कुर्सी की महामारी। इस कारण यह राज्य कोरोना के संक्रमण से ज्यादा प्रभवित हो गया। बड़े आईएएस अफसरों की गलतियों के कारण स्थिति और बिगड़ी , लेकिन दुर्भाग्य है कि सरकार उनके खिलाफ कार्रवाई करने की बात तो दूर, उनका नाम लेने से भी डर रही है।
भाजपा और कांग्रेस कुछ भी तर्क दें , पर एक बात तो साफ़ है कि दोनों ही दल सरकार के लालच थे। कांग्रेस अपनी सरकार बचाने और भाजपा सरकार पर काबिज होने में लगी थी। ऐसा न होता तो बहुमत न होने के कारण कमलनाथ पहले ही इस्तीफा दे देते और भाजपा बागी विधायकों को बेंगलुरु में संरक्षण न देती। 21 दिन के लाकडाउन की घोषणा के एक दिन पहले 23 मार्च को फटाफट मुख्यमंत्री शपथ दिला दी गई। अगले दिन शिवराज सिंह ने विधानसभा आहूत कर विश्वास मत भी जीत लिया। ऐसे में कोरोना प्रकोप के बीच कुछ विधायकों को मंत्री पद शपथ दिला दी जाती तो कांग्रेस के पास संवैधानिक संकट की बात करने का मुद्दा नहीं होता। जानकारों का कहना है मंत्रिमंडल को लेकर भाजपा सिंधिया खेमे में सहमति नहीं बन पा रही है , लॉकडाउन तो बहाना है। ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने साथ आये 22 विधायकों में से कम से कम दस को मंत्री बनवाना चाहते हैं , जिससे वे मंत्री तौर पर उपचुनाव में जनता के सामने जायँ। भाजपा के सामने दिक्कत है कि जिन इलाकों से सिंधिया लोग मंत्री बनने कतार हैं , वहां से भाजपा दिग्गज मंत्री बनना चाहते हैं। कुछ तो पहले मंत्री रह चुके हैं। भाजपा नेता 7 - 8 लोगों का छोटा मंत्रिमंडल बनाकर काम चलाना चाहते हैं, ज्योतिरादित्य सिंधिया इसके लिए तैयार नहीं हैं। कमलनाथ मंत्रिमंडल में सिंधिया के छह समर्थक मंत्री थे और मंत्री नहीं बनाये जाने से दुखी विधायक कांग्रेस छोड़कर भाजपा आए हैं। ऐसे में तीन या चार लोगों को ही मंत्री बनने का मौका देने पर सिंधिया के सामने धर्मसंकट जैसी स्थिति होगी।
विवेक तन्खा का मानना है कि प्रदेश की साढ़े सात करोड़ जनता का एक अकेले प्रतिनिधि मुख्यमंत्री कैसे हैं। सविधान के मुताबिक कुल सदस्यों का 15 फीसदी प्रतिनिधि का मंत्रिपरिषद तो होना चाहिए। कैबिनेट से प्रशासनिक आराजकता जैसी स्थिति भी है। कुछ आईएएस अधिकारियों की लापरवाही के कारण स्वास्थ्य विभाग के करीब 90 अफसरों का कोरोना की जद में आना चिंताजनक है। भाजपा नेता कहते हैं - स्वास्थ्य विभाग लोग जान -जोखिम में डालकर काम किया , इस कारण ऐसी स्थिति हुई।
मध्यप्रदेश हालात से लग रहा है राजनीति की गीली पिच पर कोरोना फल-फूल गया। तभी तो भाजपा सरकार को कोरोना के काफी फैलाव के बाद अपने नेताओं का टास्क फ़ोर्स बनाना पड़ा और अप्रैल पखवाड़े के बाद ही वह विशेषज्ञों बना पाई। मध्यप्रदेश में कोरोना संक्रमण की भयावहता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां दो डाक्टर भी इस बीमारी से चल बसे। देश में मध्यप्रदेश के इंदौर छोड़ कहीं भी डाक्टरों मौत हुई है।