कांग्रेस की गाड़ी फंसती ही जा रही है। आने वाले दिन भी परेशानी से भरे नजर आ रहे हैं। पार्टी के भीतर असंतोष बढ़ता जा रहा है और इससे पार्टी के लंबे समय तक संगठित रह पाने पर भी प्रश्नचिन्ह लग रहा है। महाराष्ट्र के बड़े नेता गुरुदास कामत के पार्टी से इस्तीफे के बाद यह अंदेशा है कि कई राज्यों से ऐसे विरोधी स्वर मुखर होंगे। उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब और हरियाणा से भी अच्छे संकेत नहीं मिल रहे हैं।
हरियाणा और उत्तर प्रदेश के कई नेता पार्टी में कामकाज के तौर तरीकों और निर्णय-अनिर्णय के बीच झूलते नेतृत्व पर अपनी नाराजगी जता चुके हैं। जानकारों का मानना है कि गुरदास कामत ने मुंबई में जिस तरह से संजय निरूपम को प्रमोट किया जा रहा था, उससे अपनी नाराजगी वह शीर्ष नेतृत्व से जता चुके थे। लेकिन मामला ठंडे बस्ते में पड़ा रहा और दूरियां बढ़ती गई। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के करीबी नेताओं का मानना है कि राहुल अपनी नई टीम को हर राज्य में लाना चाहते हैं और इसलिए पुराने लोगों को ज्यादा तव्वजो नहीं दे रहे हैं। हालांकि इसका अच्छा खासा नुकसान असम में कांग्रेस उठा चुकी है। छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी की नई पार्टी बना लेने से भी कांग्रेस नेतृत्व की राजनीतिक दूरदर्शिता पर सवाल उठ रहे हैं। इसकी वजह भी यह है कि लंबे समय से कांग्रेस का एक हिस्सा अजीत जोगी को पार्टी से बाहर कर नए नेतृत्व के साथ पार्टी को खड़ा करने के पक्ष में था। इस सुझाव की अनदेखी की गई।