सुनवाई से ठीक पहले शिवराज सिंह चौहान ने जो अर्जी लगाई है उसके भी सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। क्योंकि इस बात की संभावना ज्यादा है कि सुप्रीम कोर्ट यह कह सकता है कि जब मामला हाईकोर्ट में है तो याचिकाओं की सुनवाई बाद में होगी। अगर ऐसा हुआ तो फिर शिवराज सिंह चौहान को समय मिल जाएगा और मामला देर तक खिच जाएगा। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट में जो याचिकाएं दायर हैं वह सीबीआई जांच के लिए ही है। ऐसे में एक ही मामले को लेकर दो जगह सुनवाई शायद ही हो।
कानून के जानकारों की माने तो शिवराज सिंह चौहान ने हाईकोर्ट में सीबीआई जांच की अर्जी लगाकर यह जताने की कोशिश की है कि वह किसी भी जांच के लिए तैयार हैं। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट में सीबीआई जांच की अर्जी के केस की सुनवाई नहीं भी कर सकता है। शिवराज की अर्जी पर सियासत गरम है। विरोधियों का मानना है कि अगर हाईकोर्ट सीबीआई जांच का आदेश देगा तो निगरानी भी हाईकोर्ट ही करेगा। हाईकोर्ट की निगरानी में गठित विशेष जांच दल का जो रूख रहा है वह मध्य प्रदेश सरकार के अनुकूल रहा है।
कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला का कहना है कि सीबीआई जांच के लिए उच्च न्यायालय को लिखने का शिवराज का फैसला सच को दबाने की एक और कोशिश है। कांग्रेस इसे पूरी तरह खारिज करती है। निष्पक्ष जांच और पीडि़तों को न्याय के लिए उच्चतम न्यायालय की निगरानी में सीबीआई जांच ही विकल्प है। गौरतलब है कि कांग्रेस लगातार व्यापमं घोटाले की जांच सीबीआई से कराने की मांग करती रही है लेकिन भाजपा में भी सीबीआई जांच की मांग उठने से शिवराज सिंह चौहान मुश्किल में पड़ते जा रहे थे। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट निर्देश देता उससे पहले ही हाईकोर्ट में अर्जी लगाकर चौहान ने एक सियासी दांव चला है। अब देखना यह है कि सुप्रीम कोर्ट का इस मामले में क्या निर्णय होता है।