पार्टी छोड़ने वाले नेताओं का कहना है कि न केवल प्रदेश कांग्रेस में कार्यकर्ताओं की उपेक्षा हो रही है। खुद राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी भी उनकी बात सुनने को तैयार नहीं हैं। अब मजबूरी में वह कांग्रेस छोड़ने को मजबूर हैं। असल में कांग्रेस से नेताओं का पार्टी छोड़ने के पीछे वर्चस्व की लड़ाई है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय माकन भी सोची समझी रणनीति के चलते कुछ नेताओं को हाशिए पर रखना चाहता हैं और पार्टी छोड़ने वाले नेता भी यह बात बखूबी समझ रहे हैं जिसके चलते वह पार्टी छोड़ने जैसा फैसला ले रहे हैं।
उनका कहना है कि आखिर पार्टी में उनके काम को ही अहमियत नहीं दी जाएगी तब पार्टी में काम करने का क्या मतलब रह जाएगा। लवली ने तो पार्टी छोड़ने पर साफ तौर पर कहा कि हर मामले में वरिष्ठ नेताओं को नजरअंदाज किया जा रहा है और उनके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाई जा रही है। दिल्ली के पूर्व मंत्री डॉ एके वालिया और मंगतराम सिंघल जैसे वरिष्ठ नेता तक यह कह रहे हैं कि टिकटें बेची गई हैं तो समझा जा सकता है कि पार्टी को किस हालत में खड़ा कर दिया गया है।
दिल्ली में करीब डेढ़ दशक सरकार चलाने वाली कांग्रेस निगम चुनावों के बीच सबसे खराब दौर से गुजर रही है। पिछले एक पखवाड़े के दौरान कांग्रेस के बड़े व दिग्गज नेताओं ने पार्टी से नाता तोड़ा है। पूर्व मंत्री एके वालिया ने तो अपना इस्तीफा पार्टी आलाकमान को देने का एलान तक कर दिया था। दिल्ली की पूर्व सीएम शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित भी नाराज दिख रहे हैं। संदीप दीक्षित ने वरिष्ठ नेताओं के पार्टी छोड़ने पर पार्टी आलाकमान के रवैये पर सवाल खड़े किए हैं तो शीला दीक्षित सरकार में मंत्री रहे हारून युसुफ ने भी टिकट बंटवारे पर सवाल उठाया था।
उधर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय माकन का कहना है कि पार्टी से जुड़ना विचारधारा से जुड़ना है और अगर विचारधारा ही बदल जाए तब उसके बारे में सोचा जा सकता है कि यह उनका मकसद है जबकि कांग्रेस ने उन्हें इतना सब कुछ दिया और वह उसका भी सम्मान नहीं किया। पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने तो ऐसे लोगों को गद्दार व मौका परस्त तक कह दिया। कांग्रेस में जिस तरह घमासान चल रहा है उससे प्रदेश नेतृत्व पर सवाल उठना लाजमी है।