ऐसा लगता है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार गुप्तेश्वर पांडेय को हमेशा के लिए इंतजार में रख दिया हैं। यहां तक कि जब पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे एनडीए सरकार में शामिल होने के लिए धैर्यपूर्वक के साथ इंतजार में थे, तभी एक अन्य पूर्व शीर्ष पुलिस अधिकारी को चुपचाप राज्य में कैबिनेट मंत्री के रूप में शपथ दिला दी गई। 1987 बैच के आईपीएस अधिकारी सुनील कुमार को उनकी सेवानिवृत्ति के बमुश्किल कुछ महीनों बाद ही उत्पाद और निषेध मंत्री बनाया गया है। सुनील कुमार अपने करियर के दौरान एसएसपी पटना सहित प्रमुख पदों पर रहे। पिछले साल अगस्त में सेवानिवृत्त होने के तुरंत बाद उन्होंने सत्तारूढ़ जनता दल-यूनाइटेड में शामिल हो गए थे।
बाद में सुनील को आरक्षित भोरे निर्वाचन क्षेत्र से मैदान में उतारा गया था, जहाँ से वे कुछ अंतर से जीत दर्ज करने में कामयाब रहें। 9 फरवरी को वो नीतीश मंत्रालय के लंबे समय से हो विस्तार के दौरान राजभवन में शपथ ग्रहण करने के लिए जेडी-यू के आठ मंत्रियों समेत कुल 17 मंत्रियों में शामिल थे।
लेकिन, गुप्तेश्वर पांडे को ये नसीब नहीं हुआ। पांडे पिछले साल के अंत में अपने पद से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने के बाद जेडीयू में शामिल हो गए थे। वो स्पष्ट रूप से बक्सर निर्वाचन क्षेत्र से पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ना चाहते थे। लेकिन, दुर्भाग्य से ये सीट एनडीए के भीतर सीट-बंटवारे के समझौते के तहत भाजपा कोटे में चली गई। जिसके बाद उन्हें किसी अन्य विधानसभा क्षेत्र से भी टिकट नहीं मिला।
गुप्तेश्वर पांडे के समय से सेवानिवृत्त होने के बाद ये अनुमान लगाए जा रहे थे कि उन्हें वाल्मीकि लोकसभा सीट से उपचुनाव लड़ सकते हैं। ये सीट जेडीयू सांसद बैद्यनाथ प्रसाद महतो की मृत्यु के बाद से खाली थी। लेकिन, वो भी नहीं हुआ। स्पष्ट रूप से निराशा हाथ लगने के बाद उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि वह समाज की सेवा करने के लिए राजनीति में शामिल हुआ हूं।
बहरहाल, तब से ये कयास लगाए जा रहे थे कि उन्हें नीतीश मंत्रालय में अभी या बाद में शामिल किया जाएगा। लेकिन, कल मंगलवार को हुए नीतीश मंत्रिमंडल विस्तार में फिर उन्हें जगह नहीं मिली। पांडे के लिए इससे भी अधिक निराशाजनक बात है कि उन्हें अभी तक एमएलसी भी नहीं बनाया गया है।
हालांकि, अभी भी कुछ उम्मीदे दिख रही है। नामित सदस्यों के लिए राज्य विधान परिषद में वर्तमान में 12 रिक्तियां हैं, जिन्हें जल्द भरा जाना है। पांडे समर्थकों को उम्मीद है कि उन्हें जल्द ही परिषद में नामित किया जाएगा। साथ ही, समर्थकों का कहना है कि नीतीश सरकार में अभी भी पांच पद खाली हैं।
गुप्तेश्वर पांडे अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत मौत मामले की उच्च स्तरीय जांच के दौरान काफी सुर्खियों में रहे थे। जांच के दौरान मुंबई पुलिस और बिहार पुलिस आमने-सामने आ गई थी। उन्होंने सुशांत की प्रेमिका अभिनेत्री रिया चक्रवर्ती पर “औकात” शब्द का इस्तेमाल करते हुए विवादास्पद टिप्पणी की थी। रिया लंबे समय इस दौरान मीडिया के निशाने पर रही हैं।
अपने समय में रहे तेजतर्रार अधिकारी गुप्तेश्वर पांडे का अक्सर अपने समर्थकों द्वारा "बिहार के रॉबिन हुड" के रूप में स्वागत किया जाता था। पिछले साल राज्य विधानसभा चुनावों से पहले उनकी जीवनी और उनके द्वारा किए गए अच्छे कामों का गुनगान करते हुए एक वीडियो जारी किया गया था। जाहिर तौर पर चुनावों में उनकी संभावनाओं को बढ़ाने के लिए ये वीडियो लाया गया था। लेकिन, विवाद के बाद इस वीडियो को हटा लिया गया। हालांकि, कुछ भी करने के बावजूद भी नीतीश प्रभावित नहीं हुए। नीतीश ने सुनील को जेडीयू का टिकट दिया।
संयोग से, ये गुप्तेश्वर पांडे के राजनीति में प्रवेश करने के बाद दूसरी सबसे बड़ी निराशा रही। 2009 के लोकसभा चुनावों से पहले,उन्होंने बक्सर सीट से भाजपा का टिकट पाने की उम्मीद में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली थी। लेकिन पार्टी के शीर्ष आलाकमानों ने उस समय अपने मौजूदा सांसद लालमुनी चौबे को चुना। अच्छा हुआ कि नीतीश सरकार ने उन्हें कुछ महीनों के बाद ही आईपीएस से अपना इस्तीफा वापस लेने की अनुमति दे दी। बाद में उन्हें राज्य के पुलिस प्रमुख के पद पर नियुक्त किया गया।
बिहार सदनों या नीतीश मंत्रिमंडल में, दोनों में से किसी में, एक सीट रहस्यमयी बनी हुई है। पांडे के साथ रहे सुनील अब अपनी नई पारी की शुरुआत कर रहे हैं। लेकिन, सत्ता की राजनीति के साथ गुप्तेश्वर पांडे की कोशिश अभी भी जारी है।