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डाक टिकट पर भाजपा की ‘तस्वीर’ भी साफ नहीं

केंद्रीय संचार एवं प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने इंदिरा गांधी और राजीव गांधी पर नियत डाक टिकट निकले जाने का मुद्दा उठाकर एक नया विवाद खड़ा कर दिया है। उनके आरोपों में एक तरफ आंशिक सच्चाई है तो दूसरी तरफ राजनीति की गंध भी है।
डाक टिकट पर भाजपा की ‘तस्वीर’ भी साफ नहीं

रविशंकर प्रसाद कई महीनों से यह मुद्दा उठा रहें हैं। उन्होंने यह मुद्दा खुद उठाया और कांग्रेस को जवाब देने के लिए उन्होंने मंत्रीमंडल के फैसलों की जानकारी देने के लिए बुलाई गई प्रेस कॉन्फ्रेंस का भी इस्तेमाल किया जबकि नेता अक्सर ऐसी प्रेस कॉन्फ्रेंस में मंत्री मंडल के फैसलों से बाहर के सवालों का जवाब नहीं देते। लेकिन उन्होंने यह तथ्य नहीं बताया कि डेफिनेटिव स्टाम्प निकलने की जो पहली श्रृंखला 1949 में  शुरू हुई थी उसके 59 साल बाद आधुनिक भारत के निर्माता श्रृंखला शुरू हुई। इस से पहले नौ श्रृंखलाओं में व्यक्तियों पर डेफिनेटिव स्टाम्प नहीं निकलते थे।

अलबत्ता 1976 से विशेष डेफिनेटिव स्टाम्प की श्रृंखला में महात्मा गांधी और नेहरू जी पर क्रमशः छह-सात बार डाक टिकट जरूर निकले थे। सन 2008 के अप्रैल में तत्कालीन डाक टिकट सलाहकार समिति ने गांधी और नेहरू के अलावा सरदार पटेल, भीमराव आंबेडकर, जयप्रकाश नारायण, सी राजगोपालाचारी, के कामराज, पेरियार, इ वी रामास्वामी, बिस्मिल्लाह खान, मुंशी प्रेमचंद, शिवराम कारंत, विश्वेसरैय्या, होमी जहांगीर भाभा, मेघनाथ साहा, सी वी रमन, सतीश धवन, मदर टेरेसा और आचार्य विनोबा भावे जैसे लोगों पर डेफिनेटिव स्टाम्प निकलने का निर्णय किया लेकिन इस सूची में इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के भी नाम थे।

भाजपा को इन दो  नामों पर आपति है लेकिन क्या रविशंकर प्रसाद को यह मालूम नहीं कि अगर कांग्रेस विचारधारा से परहेज करती तो वह श्यामा प्रसाद मुखर्जी और वीर सावरकर के नाम पर स्मारक डाक टिकट नहीं निकलती। लेकिन यह भी सच है कि कांग्रेस ने अपने कार्यकाल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हेडगवार पर डाक टिकट नहीं निकलने दिया। भाजपा की सरकार आते ही वाजपेयी जी के कार्यकाल में हेडगवार पर डाक टिकट निकाले गए। यह भी सच है कि उसी भाजपा सरकार ने हिंदी के प्रखर समाजवादी नेता, स्वंत्रता सेनानी, पत्रकार और कलम के जादूगर रामबृक्ष बेनीपुरी की जन्मशताब्दी के लिए राष्ट्रीय समिति गठित करने की मांग ठुकरा दी थी, जबकि तीन पूर्व प्रधानमंत्रियों चंद्रशेखर,  देवेगौड़ा और गुजराल ने वाजपेयी जी को पत्र लिखे और तो और निराला के लिए भी उस सरकार ने प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में समिति का गठन नहीं किया जबकि काजी नजरुल इस्लाम के लिए किया। क्या रविशंकर प्रसाद के पास इसका जवाब है?

रविशंकर प्रसाद पत्रकारों को यह तो बतातें हैं कि राजेंद्र बाबू पर डेफिनेटिव स्टाम्प न निकालकर कांग्रेस ने अन्याय किया पर यह नहीं बताते कि भारतीय डाक विभाग की वेबसाइट के अनुसार  1962 में ही राजेंद्र बाबू पर जीते जी डाक टिकट निकला जो विरला सम्मान है। मदर टेरेसा को ही केवल जीते जी यह गौरव प्राप्त हुआ है। रविशंकर प्रसाद यह भी नहीं बताते कि वह महंत अवैद्यनाथ पर किस दृष्टि से डाक टिकट निकल रहे हैं। क्या डाक टिकटों को समावेशी या विविधतापूर्ण बनाने के लिए? उन्हें यह भी बताना चाहिए कि उन्होंने भीष्म साहनी जैसे यादगार लेखक पर डाक टिकट क्यों नहीं निकला जबकि उनकी जन्मशती इसी वर्ष है। अनिल बिस्वास जैसे महान संगीतकार पर अब तक डाक टिकट नहीं निकला जबकि उनकी जन्मशती बीत गई। वह तो आजादी की लडाई में एक क्रांतिकारी के रूप में कई बार जेल भी गए लेकिन उनकी आपत्ति इंदिरा गांधी और राजीव गांधी पर है जो इस देश के निर्वाचित प्रधानमंत्री थे और राजीव गांधी ने तो मोदी से कहीं अधिक सीटें पाई थीं। दोनों शहीद भी हुए थे लेकिन कांग्रेस ने डाक टिकट निकलने में बहुत गड़बड़ियां भी की हैं। 

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