हरियाणा विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के 8 मंत्रियों को जनता ने वोट की चोट से धराशायी कर दिया। इनमें भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष सुभाष बराला भी शामिल हैं। खास बात यह है कि इन मंत्रियों में सबसे भारी-भरकम महकमे वाले कैप्टन अभिमन्यु और ओ.पी. धनखड़ भी शामिल हैं,जो खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नजदीकी कहने से नहीं चूकते थे,जबकि स्वास्थ्य एवं खेल मंत्री अनिल विज और जन स्वास्थ्य राज्यमंत्री बनवारी लाल ही जनता की कसौटी पर खरे उतर पाए।
वहीं,भाजपा ने अपने 2 मंत्रियों राव नरबीर और विपुल गोयल की टिकट काटकर पहले ही उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया था। इनमें से भाजपा राव नरबीर की बादशाहपुर सीट भी नहीं बचा पाई। भाजपा के मिशन 75 को जनता ने ध्वस्त करते हुए सबसे पहले उनके 8 मंत्रियों को बाहर का रास्ता दिखाया। इन मंत्रियों में महेंद्रगढ़ से शिक्षा मंत्री रामबिलास शर्मा, नारनौंद से वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु, बादली से कृषि मंत्री ओ.पी.धनखड़,सोनीपत से स्थानीय निकाय मंत्री कविता जैन,इसराना से परिवहन मंत्री कृष्ण लाल पंवार,रादौर से खाद्य एवं आपूॢत राज्य मंत्री कर्णदेव कंबोज, शाहाबाद से समाज कल्याण राज्यमंत्री कृष्ण बेदी तथा रोहतक से सहकारिता राज्यमंत्री मनीष ग्रोवर को हार का सामना करना पड़ा है।
कैप्टन अभिमन्यु न तो पंजाब में भाजपा को जितवा पाए और न ही खुद जीते
खट्टर सरकार में वित्त,राजस्व और आबकारी एवं कराधान जैसे अहम महकमों के पावरफुल मंत्री रहे कैप्टन अभिमन्यु बीते लोकसभा चुनाव के दौरान पंजाब में प्रभारी पद पर रहने के समय न तो वहां पार्टी को जितवा पाए और न ही अब अपनी सीट बचा पाए। इन 5 वर्षों में कैप्टन की संपत्ति में इजाफा जरूर हुआ लेकिन जनता में उनका विश्वास नहीं बढ़ सका। शायद यही वजह रही कि बीते लोकसभा चुनाव में उनके नारनौंद क्षेत्र से जजपा उम्मीदवार दुष्यंत चौटाला ने जीत दर्ज की थी।
इस बार भी उनकी चुनावी यात्रा शुरू होने से पहले ही वह जनता के निशाने पर आ गए थे। कैप्टन को बीते विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री पद के दावेदार के तौर पर पेश किया गया था और शायद इन्हीं कारणों से ही उनकी नैया पार हो गई थी। कैप्टन की क्षेत्र में खराब स्थिति के कारण ही भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने रैली रद्द कर दी थी। कैप्टन को जजपा के रामकुमार गौतम से हार का सामना करना पड़ा है।
पंडित रामबिलास को ले डूबा बड़बोलापन
शिक्षा मंत्री रामबिलास शर्मा की हार की मुख्य वजह उनका बड़बोलापन रहा है। चुनाव प्रचार दौरान शर्मा को अपने व्यवहार के कारण कई जगह जनता के रोष का सामना करना पड़ा था। बीते विधानसभा चुनाव में रामबिलास शर्मा को मुख्यमंत्री पद का प्रबल दावेदार माना जा रहा था और उनके प्रदेशाध्यक्ष पद पर रहने के दौरान ही पार्टी को जीत हासिल हुई थी।
खट्टर सरकार बनने के बाद रामबिलास को कई अहम महकमे दिए गए थे लेकिन बाद में उनसे कई महकमे छीन लिए गए थे। रामबिलास शर्मा को कांग्रेस के राव दान सिंह ने हराकर अपना बदला लिया है।
जाटलैंड में धमक नहीं जमा पाए धनखड़
कृषि मंत्री ओ.पी. धनखड़ भले ही शिक्षित पंचायतों को लेकर खुद और सरकार की पीठ थपथपाते रहे हों लेकिन जाटलैंड में वह जाटों की पसंद नहीं बन सके। बीते विधानसभा चुनाव से पहले किसानों को उनकी फसल का वाजिब दाम दिलवाने को लेकर धनखड़ बड़ी-बड़ी बातें करते थे लेकिन अपनी सरकार में वह किसानों को संतुष्ट नहीं कर पाए। कैप्टन अभिमन्यु की तरह से धनखड़ भी बीते लोकसभा चुनाव में अपनी सीट से भाजपा प्रत्याशी को बढ़त नहीं दिलवा पाए थे। यही नहीं, धनखड़ की ही अगुवाई में भाजपा का चुनावी घोषणा पत्र तैयार किया गया, जो किसानों व आमजन को रास नहीं आया। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा पर सीधी बयानबाजी करने वाले धनखड़ को क्षेत्र की जनता ने कांग्रेस के कुलदीप वत्स पर विश्वास जताते हुए नकार दिया।
पार्टी की नैया पार लगाने वाले बराला खुद डूबे
भाजपा प्रदेशाध्यक्ष एवं टोहाना से विधायक सुभाष बराला को क्षेत्र की जनता ने पूरी तरह नकार दिया। नगर निगम चुनाव, जींद उपचुनाव और बीते लोकसभा चुनाव में सभी दस सीटें जितवाने वाले बराला के अपने कारनामे ही क्षेत्र में भारी पड़ गए। चुनाव शुरू होने के समय से ही बराला के हार की चर्चाएं शुरू हुई थीं, जो आज पूरी तरह सही हुईं। कई मंत्रियों की तरह से बराला को भी चुनाव प्रचार के दौरान जनता के रोष का सामना करना पड़ा था। बराला की संभावित हार के कारण ही पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं देश के गृह मंत्री अमित शाह ने रैली निरस्त की थी। उसके बाद से बराला की हार को लेकर चर्चाएं और तेज हो गई थीं। बराला को जजपा के देवेंद्र बबली ने भारी मतों से पराजित किया है।
दादूपुर नलवी नहर और लोगों का गुस्सा बेदी पर पड़ा भारी
सामाजिक कल्याण एवं अधिकारिता राज्यमंत्री कृष्ण बेदी की हार में दादूपुर नहर को डी-नोटिफाई करने में भूमिका निभाना अहम रहा है। यहां के किसानों ने एकतरफा बेदी के खिलाफ वोट किया। बेदी के व्यवहार में बदलाव भी उनकी हार का मुख्य कारण रहा है। मुख्यमंत्री से नजदीकियों के कारण जनता से दूरी बनाना और उनके ठीक व्यवहार नहीं करने की चर्चाएं क्षेत्र में तैर रही थीं। चुनाव की वोट की चोट से जनता ने उन्हें नकार दिया। बीते चुनाव में बेदी एक हजार से कम वोटों से ही जीते थे, जहां जजपा के रामकरण काला ने इस बार भारी मतों से बेदी को हराकर अपना बदला दिया।