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परिवार की लड़ाई में अब कौन सा दांव चलेगे नेताजी

साल 2012 के विधानसभा चुनाव परिणाम आने के बाद समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने जब अपनी विरासत सौंपने का मन बनाया तो सबसे पहले उनके भाई शिवपाल सिंह यादव का नाम सामने आया। शिवपाल का नाम आते ही उनके समर्थकों के बीच एक खुशी की लहर दौड़ पड़ी कि लेकिन इस पूरे प्रकरण में सपा में थिंक टैंक कहे जाने वाले मुलायम सिंह यादव के चचेरे भाई प्रोफेसर रामगोपाल यादव ने अलग भूमिका निभाई। रामगोपाल ने अखिलेश यादव को मुख्य‍मंत्री बनाए जाने का प्रस्ताव दे दिया।
परिवार की लड़ाई में अब कौन सा दांव चलेगे नेताजी

 
बस क्या‍ था मुलायम सिंह यादव के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ी और शिवपाल के चेहरे पर मायूसी। आनन-फानन में अखिलेश यादव को युवा चेहरा करार दे मुख्य‍मंत्री बना दिया गया और शिवपाल को भतीजे के कैबिनेट में मंत्री बना दिया गया। उसी समय से इस बात की आशंका प्रबल होने लगी कि समाजवादी पार्टी में अब दो तरह की धाराएं चल रही हैं। एक धारा जो अखिलेश के साथ है तो दूसरी शिवपाल यादव के साथ। आज भी लखनऊ में मुख्य‍मंत्री आवास से कहीं ज्यादा भीड़ शिवपाल के आवास पर देखने को मिलती है। पार्टी के पुराने नेता शिवपाल यादव को नेता मानने को तैयार हुए तो नए नेताओं ने अखिलेश यादव को नेता मान लिया। यहां से मुलायम सिंह यादव की भूमिका बदलने लगी। वह अब अभिभावक बन गए। इसीलिए समय-समय मुख्य‍मंत्री के साथ-साथ पार्टी के नेताओं को नसीहत देते रहे। लेकिन अब यह लड़ाई कुछ खुलकर सामने आने लगी है। इसलिए विपक्षी दल भी चटकारे लेने लगे हैं।
भाजपा अध्यक्ष अमित शाह कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में एक नहीं, दो नहीं बल्कि साढ़े तीन मुख्य‍मंत्री हैं। जिनमें मुलायम, शिवपाल और अखिलेश के अलावा आजम खान को भी शाह आधा मुख्य‍मंत्री ही मानते हैं। विपक्ष के इन चटकारों से बेपरवाह अखिलेश यादव जब चुनावी साल में कड़े फैसले लेने लगे तब परिवार की लड़ाई सामने आने लगी। चुनाव जीतने के लिए जोड़-तोड़ में जुटी सपा ने पूर्वांचल के बाहुबली विधायक मुख्ता‍र अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल का जब पार्टी में विलय का फैसला किया तो इसमें मुख्य‍मंत्री अखिलेश यादव को विश्वास में नहीं लिया गया। आनन-फानन में मुख्य‍मंत्री ने मुलायम के करीबी मंत्री बलराम यादव को बर्खास्त कर दिया। मुख्य‍मंत्री नहीं चाहते थे कि मुख्ता‍र अंसारी समाजवादी पार्टी का हिस्सा बनें। इसलिए पहले यह होता रहा कि मुक्चतार को पार्टी में शामिल किए बिना कौमी एकता दल का विलय हो जाए। लेकिन बाद में मुख्य‍मंत्री ने विलय को लेकर नाराजगी जता दी। इस बीच प्रदेश में कैबिनेट विस्तार को लेकर तिथि तय हो गई और नए मंत्रियों को शामिल कराए जाने को लेकर चर्चा भी।
कौमी एकता दल के विलय के समय शिवपाल मंच पर मौजूद थे और बाद में उन्होने सफाई भी दी कि मुलायम सिंह यादव से चर्चा के बाद ही विलय का फैसला लिया गया। लेकिन सवाल यह है कि मुख्य‍मंत्री प्रदेश के पार्टी के अध्यक्ष भी हैं तो क्या‍ पहले उनसे नहीं पूछा गया? अगर पूछा गया तो मुख्य‍मंत्री ने पहले विरोध क्यों‍ नहीं किया और नहीं पूछा गया तो इसका आशय साफ है कि पार्टी के फैसलों से उनका कोई मतलब नहीं है। मुख्य‍मंत्री ने बलराम यादव को ठीक वैसे ही बर्खास्त किया जैसे शिवपाल ने अखिलेश के करीबियों सुनील सिंह साजन और आनंद भदौरिया को बर्खास्त किया। शिवपाल के फैसले से अखिलेश उस समय इतना नाराज हुए कि उन्होने सैफई महोत्सव से कुछ दिनों के लिए किनारा कर लिया। सैफई महोत्सव में अखिलेश तभी गए जब सुनील और आनंद की पार्टी वापसी में फैसला हो गया। उसके बाद अखिलेश ने अपने इन दोनों करीबियों को विधान परिषद का टिकट दिलवाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस फैसले से भी शिवपाल नाराज बताए जा रहे हैं। 
बहरहाल अखिलेश और शिवपाल की नाराजगी को दूर करने के लिए बलराम यादव को फिर से मंत्री बना दिया गया। कौमी एकता दल से नाता तोड़ लिया गया। लेकिन इसका पूर्वांचल में जो संदेश गया उससे सपा का नुकसान हो सकता है। कौमी एकता दल का गाजीपुर, बलिया, बनारस, आजमगढ़, मऊ में अच्छा खासा प्रभाव है। भले ही सपा नेता मानकर चल रहे हों कि साल 2012 में भी कौमी एकता दल साथ नहीं था लेकिन उस समय प्रदेश की सियासी स्थितियां अलग थी और आज अलग हैं। इस प्रकरण से परिवार की लड़ाई समाजवादी पार्टी के नेताओं की जुबान पर चर्चा का विषय बन गई। अपनी ही पार्टी के बारे में इस तरह की चर्चाएं सुनकर सपा नेताओं को खराब भी लग रहा था। पार्टी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी आउटलुक से कहते हैं कि किसी भी राजनीतिक दल में जब दो खेमा बन जाए तो दिक्क‍तें बढ़ जाती हैं। सपा नेताओं को इस बात की आशंका है कि चुनावी साल में इस तरह की चर्चाएं भी पार्टी का नुकसान करा सकती हैं।
जिस तरह मुलायम सिंह यादव ने अपने छोटे बेटे प्रतीक यादव की पत्नी अपर्णा यादव की नाराजगी को दूर करने के लिए लखनऊ से विधानसभा का टिकट दिया उसी तरह प्रतीक भी नाराज हैं कि उन्हें अभी तक कोई पद नहीं मिला। अखिलेश मुख्य‍मंत्री हैं तो उनकी पत्नी डिंपल यादव सांसद हैं। छोटे बेटे प्रतीक के पास फिलहाल कोई राजनीतिक पद नहीं है लेकिन देर-सबेर कुछ न कुछ मिल जाएगा। शिवपाल इस कदर नाराज हैं कि कैबिनेट विस्तार में ही नहीं गए। सपा सांसद अमर सिंह ने कहा कि शिवपाल के प्रतिनिधि के तौर पर वे मौजूद हैं। अब निगाहें समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव की ओर आकर टिक गई है। परिवार में दो गुट बनते साफ नजर आ रहे हैं। सपा के एक विधायक आउटलुक से कहते हैं कि संगठन के मामले में जो महारत शिवपाल के पास है वह अखिलेश के पास नहीं है। चुनावी साल है इसलिए उनके फैसले को मुख्य‍मंत्री को इस तरह से नहीं नकारना चाहिए। जो भी हो अब परिवार में वर्चस्व की लड़ाई नजर आने लगी है। देखना अब यह है कि मुलायम सिंह यादव का अब नया दांव क्या‍ होगा कि परिवार की कलह सामने न आए।  

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