बिहार में एक बार फिर से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुवाई वाली सरकार का गठन हो गया है। इस बार 14 सदस्यों के कैबिनेट का गठन किया गया है। लेकिन, इसमें कुछ हीं पुराने चेहरे हैं बाकी नए चेहरे को मौका दिया गया है। बीजेपी से मंगल पांडे के रूप सिर्फ एक पुराने चेहरे हैं। वहीं, प्रेम कुमार, नंद किशोर यादव और सुशील कुमार मोदी को बीजेपी ने किनारे किया है। यानी बीजेपी ने बिहार की राजनीति को लेकर अपनी रणनीति में बड़े बदलाव किए हैं। लेकिन, ऐसा क्यों?
बिहार विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले तक राज्य के चुनाव को एकतरफा देखा जा रहा था। लेकिन, कुछ हीं महीने में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता और महागठबंधन की अगुवाई करने वाले तेजस्वी यादव के तेवर ने बिहार की सियासी फिजाओं को हीं बदल दिया। इतना हीं नहीं जिस तरह से चुनाव में आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। वैसे में बीजेपी ने अपने नेताओं के फेरबदल से परहेज नहीं किया। नंद किशोर यादव पटना साहिब विधानसभा क्षेत्र से सात बार चुनाव जीत चुके हैं, फिर भी उन्हें मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली है। वो नीतीश सरकार में मंत्री रह चुके हैं। हालांकि, उनके स्पीकर बनाए जाने की चर्चा जोरो पर है। यही परिस्थिति भाजपा के कद्दावर नेता प्रेम कुमार की है। वो गया टाउन से आठ बार विधायक बन चुके हैं। शपथ ग्रहण समारोह के दिन तक वो मंत्री पद की रेस में थे लेकिन उन्हें पार्टी ने मौका नहीं दिया।
इस विधानसभा को भाजपा ने एक फायदे के तौर पर भी देखा। दरअसल, राजद सुप्रीमों लालू यादव जेल में बंद हैं। वहीं, चुनाव से ठीक पहले लोक जनशक्ति पार्टी प्रमुख राम विलास पासवान बीमार चल रहे थे। अब उनकी मौत हो चुकी है। भाजपा इस बात को भी भांप चूकी थी कि जेडीयू भाजपा या आरजेडी के बिना समर्थन के आगे नहीं बढ़ सकती है। लेकिन, तेजस्वी यादव ने जिस तरह से प्रदर्शन किया उसने भाजपा के आगे की रणनीति को बदलने पर मजबूर कर दिया। जिस तरह से पार्टी के वरिष्ठ आलाकमानों ने भविष्यवाणी की थी उस पर तेज
इस बार के विधानसभा चुनाव में एनडीए को 125 सीटें मिली है। जबकि महागठबंधन के खाते में 110 सीटें आई है। 75 सीट के साथ आरजेडी इस चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। वहीं, बीजेपी को 74 सीटें मिली है। जेडीयू को सिर्फ 43 सीटें हीं मिल पाई जबकि इसने 115 सीटों पर किस्मत आजमां थे।