अतुल बरतरिया
मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले तीरथ सिंह रावत ने सियासत के दांव-पेच अपने गुरु पूर्व मुख्यमंत्री बीसी खंडूड़ी की शार्गिदी में ही सीखे हैं। अहम बात यह है कि गुरु और शिष्य के मिजाज में खासा फर्क है। गुरु खंडूड़ी जहां अपने कड़क मिजाज के लिए जाने जाते हैं तो शिष्य तीरथ का अंदाज खासा नरम ही रहता है। अब देखने वाली बात यह होगी कि तीरथ सिंह सीएम बनने के बाद अपने अंदाज में काम करते हैं या फिर अपने गुरु के कुछ तेवर भी दिखाएंगे।
बुधवार को सांसद तीरथ को एक प्रत्याशित घटनाक्रम में उत्तराखंड विधानमंडल दल का नेता चुना गया। इसके बाद उन्होंने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पद की शपथ भी ले ली है। आज तीरथ के सियासी गुरु पूर्व मुख्यमंत्री बीसी खंडूड़ी को भी गर्व हो रहा होगा कि उनका सियासी शिष्य उत्तराखंड की सर्वोच्च कुर्सी पर बैठा है। दरअसल, सीएम तीरथ ने सियासत के दांव-पेच अपने गुरु खंडूड़ी से ही सीखे हैं।
उत्तराखंड के सियासी जानकार बताते हैं कि खंडूड़ी और उनके राजनीतिक शिष्य तीरथ सिंह रावत के रिश्तों की कहानी 1996 के लोकसभा चुनाव से जुड़ी है। उस दौर में उत्तराखंड राज्य नहीं, तो चुनाव नहीं का मुद्दा अहम था। उस समय भाजपा के उम्मीदवार बीसी खंडूड़ी का विरोध हुआ तो तीरथ सिंह रावत ने अपने साथ संभावित बदसलूकी की परवाह नहीं की और आंदोलनकारियों से भिड़ से गए। उस वक्त राज्य आंदोलनकारी चुनाव प्रक्रिया में भाग लेने वाले हर नेता का विरोध कर रहे थे। खंडूड़ी को नामांकन के दौरान आंदोलनकारियों ने घेरने की कोशिश की तो तीरथ उनकी ढाल बन गए। तीरथ इस पूरे चुनाव में खंडूड़ी के साथ साये की तरह मौजूद रहे। गुरु-शिष्य के अटूट रिश्ते की पटकथा यहीं से तैयार हुई। अपने राजनीतिक करियर में खंडूड़ी पांच बार सांसद रहे। तो चार चुनाव में खंडूड़ी के चुनाव संयोजक तीरथ सिंह रावत ही रहे। 1991 में खंडूड़ी के पहले चुनाव में तीरथ के पास अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय मंत्री की जिम्मेदारी थी। तीरथ ने खंडूड़ी के लिए इस चुनाव में भी मेहनत की। लेकिन वे 196 में खंडूड़ी के ज्यादा करीब आए और भाजपा में शामिल हो गए।
तीरथ के सियासी जीवन पर खंडूड़ी की खासी छाप है। उनके सियासी करियर को खंडूड़ी ने ही आगे बढ़ाया है तो तीरथ भी उनके साथ हर स्थिति में चट्टान की तरह खडे़ रहे हैं। खंडूड़ी के लिए तीरथ की अहमियत का एक बड़ा उदाहरण 1997 का है। लोकसभा चुनाव घोषित हो चुके थे और गढ़वाल सीट से भाजपा ने खंडूड़ी को प्रत्याशी बनाया था। उसी समय यूपी विधान परिषद के स्थानीय निकाय, पंचायतों से जुड़ी सीट के चुनाव भी हो रहे थे। खंडूड़ी ने तीरथ के टिकट के लिए पैरवी की तो दूसरा धड़ा सुरेंद्र सिंह नेगी के पक्ष में था। जीत खंडूड़ी की हुई और तीरथ को टिकट मिल गया। बताया जा रहा है कि उस समय खंडूड़ी ने साफ कहा कि वे भले ही हार जाएं। पर तीरथ को जीतना चाहिए। तीरथ एमएलसी बने और अलग राज्य बनने के बाद अंतरिम सरकार में मंत्री भी बने।
अब तीरथ उत्तराखंड के सीएम है। उनके सियासी गुरु खंडूड़ी का मिजाज बेहद कड़क है तो तीरथ उतने ही नरम है। अब देखने वाली बात यह होगी कि उत्तराखंड के मौजूदा हालात में वे अपने गुरु की कड़क शैली अपनाते हैं या फिर अपने नरम अंदाज से ही बेकाबू ब्यूरोक्रेसी और बेकाबू सियासी हालात पर काबू पाते हैं।