गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि के तौर पर भारत आने वाले पहले अमेरिकी राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कुर्ते का स्टाइल तो बहुत पसंद आया और कई प्रोटोकॉल दोनों तरफ से टूटे लेकिन जिन अहम मुद्दों पर दोनों देशों के और करीब आने की संभावना थी, उसमें बात पूरी बन नहीं पाई। बातें, वादें और सकारात्मक रवैया...और इनके बीच एक नजर अहम मसलों पर
भारत-अमेरिका परमाणु संधिः पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में हुए भारत-अमेरिका परमाणु करार पर छाए गतिरोध को तोड़ने के दावे हुए। हालांकि अभी तक स्थिति स्पष्ट नहीं है। परमाणु संयंत्र बनाने वाली कंपनियां भारत के आपूर्तिकर्ता उत्तरदायित्व कानून में परिवर्तन चाहती हैं ताकि दुर्घटना होने की स्थिति में उन पर मुआवजा देने का बोझ न आए। भारत ने इस दिशा में एक मुआवजे की राशि जमा करने का प्रावधान किया है। इसमें जनरल इंश्योरेंस कंपनी के साथ मिलाकर चार अन्य बीमा कंपनियां 750 करोड़ रुपये जमा करेंगी और 1,500 करोड़ रुपये की कुल जवाददेही में शेष 750 करोड़ रुपये भारत सरकार दे देगी। लेकिन इससे अमेरिकी कंपनियां संतुष्ट नहीं बताई जाती क्योंकि वे कानून की धारा 17 में परिवर्तन के लिए दबाव बना रही थी।
रक्षा सौदेः दोनो देशों ने संवर्धित डिफेंस फ्रेमवर्क एग्रीमेंट को अगले दस वर्ष के लिए बढ़ा दिया है। चार प्रमुख ‘पथखोजी परियोजनाओं’ की पहचान की, जिनके अंतर्गत अगली पीढ़ी के रावेन लघु यूएवी और सी 130 सैन्य परिवहन विमानों के लिए विशेषज्ञ किट्स के संयुक्त विकास और उत्पादन की बात शामिल है। दोनो देश जेट इंजन प्रौद्योगिकी की डिजाइनिंग और विकास के साथ ही विमान वाहक प्रौद्योगिकी का पता लगाने के लिए एक कार्य दल बनाने पर भी सहमत हुए।
सामाजिक सुरक्षाः इस पर कोई ठोस पहल नहीं हुई, सिर्फ आश्वासन रहा कि भारत सामाजिक सुरक्षा समझौते पर अमेरिका के साथ चर्चा शुरू करेगा। यह अमेरिका में कार्यरत हजारों भारतीयों के लिए महत्वपूर्ण है।
सुरक्षा परिषदः अमेरिका ने आश्वासन दिया कि वह चाहते हैं कि भारत को सुरक्षा परिषद में जगह मिले।
द्विपक्षीय निवेश समझौतेः इस पर वार्ता बहाल करने का वादा, कोई समझौते की घोषणा नहीं। इंटिलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स और सामाजिक सुरक्षा समझौतों पर कोई ठोस पहल नहीं।