"अगर पढ़ना चाहते हो तो अपने बाप से पूछो अपनी माता से पूछो कि कहीं कोई स्कूल था, कहीं कोई स्कूल बन रहा था, कहीं कोई कॉलेज बन रहा था? जरा पूछ लो, राज करने का मौका मिला तो ग्रहण करते रहे और जब अंदर चले गए, तो पत्नी को बैठा दिया गद्दी पर।" बीते साल बिहार विधानसभा चुनाव 2020 के दौरान हो रहे चुनाव प्रचार के बीच बेगुसराय के तेघड़ा विधानसभा में झल्लाते हुए इन शब्दों और भाषाओं के साथ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने रैली में एनडीए के खिलाफ नारा लगा रहे लोगों से कहा था और आरजेडी का बिना नाम लिये निशाना साधा था। इससे आगे नीतीश उन लोगों को बोल पड़े थे, "... तुम मत देना वोट, सिर्फ 15-20 लोग हो। यहां हजारों लोग हैं।... अरे देखो न पीछे। देख लो... देख लो।" लेकिन, चुनाव खत्म होने के बाद और एक बार फिर से खुद की अगुवाई में एनडीए की सरकार बनने के बाद भी नीतीश का गुस्सा लगातार देखने को मिल रहा है। कभी वो विधानसभा में विपक्ष पर भड़क रहे हैं तो कभी बातचीत करते पत्रकारों पर। अब फिर से नीतीश के गुस्से को लेकर राज्य की राजनीति और लोगों के बीच चर्चाएं शुरू हो गई है। विपक्ष इसे जेडीयू के कमजोर होने का कारण मान रही है और नीतीश के बढ़ते उम्र की बात कह रही है।
सोमवार को बिहार विधानपरिषद की कार्यवाही के दौरान मुख्यमंत्री (राष्ट्रीय जनता दल) आरजेडी के एमएलसी सुबोध राय पर आग बबूला हो गए। नीतीश ने राय को अंगूली दिखाते हुए और क्रोधित होकर बोला, "बैठिए, नियम जानिए... अरे भाइ हम बोल रहे हैं, बीच में बोलिएगा क्या? ये भी कोई तरीका है। आप सुनोगे नहीं कोई। जब मैं खड़ा हूं तो आप बैठ जाइए।" दरअसल, सीएम नीतीश कुमार इसलिए गुस्सा हुए क्योंकि ग्रामीण कार्य मंत्री तारांकित प्रश्न का जवाब दे रहे थे तभी आरजेडी के एमएलसी सुबोध राय ने बीच में खड़े होकर अपना पूरक प्रश्न पूछने की कोशिश की।
आरजेडी प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी इस गुस्से की वजह बीजेपी और जेडीयू के बीच चल रही खींचातानी को मानते हैं। आउटलुक से बातचीत में तिवारी कहते हैं, "नीतीश कुमार को इन दिनों बहुत गुस्सा आ रहा है। उन्हें अब अपनी कमजोरी दिखाई देने लगी है। इसीलिए वो विधानसभा से लेकर जनसभा में आग-बबूला और खींजते रहते हैं।" तिवारी कहना है कि नीतीश कुमार पहले सौम्य एवं विनम्र विचार के रहे हैं। गठबंधन के भीतर अब उनका दर्द छलक रहा है जो गुस्से के रूप में बाहर आ रहा है। वो कहते हैं, "बहुत जल्द बिहार की राजनीति में बड़ा होने वाला है। जिस तरह से जेडीयू के विधायक पार्टी में असंतुष्ट चल रहे हैं, उससे होली या पश्चिम बंगाल चुनाव के बाद सत्ता का परिवर्तन हो जाएगा। ये सरकार अब अधिक दिन नहीं चलने वाली है।" तिवारी का दावा है कि एनडीए और जेडीयू के कई नेता आरजेडी के संपर्क में है और सही वक्त का इंतजार कर रही है।
ये कोई पहला या दूसरा मौका नहीं है जब इन छह महीने में नीतीश गुस्सा में दिखे हैं। इससे पहले जब नीतीश की अगुवाई में फिर से एनडीए सरकार का गठन हुआ था तो उसके बाद विश्वास मत के लिए रखे गए विशेष एकदिवसीय सेशन के दौरान भी नीतीश कुमार नेता प्रतिपक्ष और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव पर आगबबूला हो गए थे। वो अपनी जगह से आगे बढ़कर तेजस्वी पर पलटवार करने लगें।
उन्होंने कहा था, " आरोप सच है तो आप जांच करवाइए। इसके खिलाफ कार्रवाई होगी। ये झूठ बोल रहा है। मैंने छोड़ दिया था। मेरे भाई समान दोस्त का बेटा है ये इसलिए हम सुनते रहते हैं, हम कुछ नहीं बोलते हैं, बर्दाश्त करते रहते हैं। इसके पिता को किसने बनवाया था, लोकदल में विधायक दल का नेता। इसको मालूम नहीं है। इसको डिप्टी सीएम किसने बनाया था। जब आरोप लगा तो हमने कहा जवाब दो। नहीं दिया तब हमने छोड़ दिया। ये चार्जशीटेड है, इसपर अब कार्रवाई होगी। ये झूठ बोल रहा है।"
बातचीत में मृत्युंजय तिवारी कहते हैं, "नीतीश कुमार की उम्र 70 वर्ष से अधिक हो चली है। वो इस बात को लेकर भी परेशना हैं कि जेडीयू का भविष्य क्या होगा। उनके बाद कौन पार्टी का नेतृत्व करेगा। वो संपन्न हुए विधानसभा चुनाव को अपना आखिरी चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुके हैं। अहम बात ये है कि नीतीश लोजपा और भाजपा की वजह से भंवर में फंस चुके हैं। वो तीसरे नंबर की पार्टी बनकर रह गए हैं जबकि तेजस्वी यादव की अगुवाई में महागठबंधन को 110 सीटें और आरजेडी को सबसे अधिक 75 सीटें मिली है। जेडीयू को महज 43 सीटें मिली है। लगातार जेडीयू भाजपा की वजह से कमजोर होती जा रही है।"
मृत्युंजय तिवारी दावा करते हैं कि एनडीए की सरकार बहुत जल्द गिर जाएगी। हालांकि, आरजेडी के राष्ट्रीय प्रवक्ता मनोज झा ने भी चुनाव परिणाम के बाद कहा था कि छह महीने में एनडीए सरकार गिर जाएगी। नीतीश और भाजपा के बीच दरार की बातें उस वक्त भी आई थी जब अरूणाचल प्रदेश जेडीयू इकाई के 6 विधायक भाजपा में शामिल हो गए। जिसको लेकर पार्टी की तरफ से गहरी प्रतिक्रिया दी गई थी। पार्टी के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष आरपीसी सिंह ने इशारों हीं इशारों में बीजेपी को चेतावनी दे डाली थी। उन्होंने कहा था, "हम जिनके साथ रहते हैं, पूरी इमानदारी से रहते हैं। साजिश नहीं रचते और किसी को धोखा नहीं देते हैं। हम सहयोगी के प्रति ईमानदार रहते हैं लेकिन कोई हमारे संस्कारों को कमजोरी न समझे।" उन्होंने यहां तक कहा कि वो ये कोशिश करेंगे कि भविष्य में इस तरह का अवसर नहीं आए। इसके बाद नीतीश भी सामने आए थे। उन्होंने भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा था कि उन्हें पद का कोई लोभ नहीं था। वो सीएम नहीं बनना चाह रहे थे। तेजस्वी ने भी इस पर पलटवार किया था और कहा था कि सीएम नीतीश एक थके हुए नेता हो चले हैं। उन्हें अब कुर्सी छोड़ देनी चाहिए।
वहीं, बिहार की राजनीति में भाजपा अब अपना कुनबा मजबूत करने में लगी हुई है। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि नीतीश के जनाधार को कम करने के लिए ही नीतीश-सुशील मोदी जोड़ी को तोड़ा गया है और दो उपमुख्यमंत्री के रूप में तारकिशोर प्रसाद और रेणु देवी को कमान सौंपी गई है। साथ ही अब बीते दिनों मंत्रिमंडल विस्तार के बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री शाहनवाज हुसैन को उद्योग मंत्री बनाकर राज्य की राजनीति में एंट्री कराई गई है। हालांकि, आउटलुक से बातचीत में बीते दिनों वरिष्ठ पत्रकार मणिकांत ठाकुर ने कहा था कि इससे भी बीजेपी को खास फायदा नहीं मिलने वाला है। लेकिन, नीतीश के लिए चिंता बढ़ गई है। मृत्युंजय तिवारी कहते हैं कि यदि नीतीश एनडीए छोड़ महागठबंधन में आते हैं तो इस पर पार्टी नेतृत्व विचार करेगी। नीतीश एक गंभीर नेता माने जाते रहे हैं। लेकिन, एनडीए की सरकार में राज्य का बंटाधार हो गया।
नीतीश कुमार राजनीतिक दलों के नेताओं के अलावा पत्रकारों पर भी कई बार भड़क चुके हैं। बीते महीने रूपेश हत्याकांड मामले और राज्य में बढ़ते आपराधिक मामले पर जब उनसे सवाल पूछा गया था तो वो आगबबूला हो गए थे। उन्होंने पत्रकार को किसी विशेष पार्टी दल का समर्थक होने की बात कह दी। उन्होंने क्रोधित होते हुए कहा था, "अरे मैं आपसे कोई बात कर सकता हूं। आप तो ज्ञानी हैं। आप इतने महान व्यक्ति हैं... और-और आप किसके समर्थक हैं। मैं पूछ रहा हूं। 2005 से पहले क्या स्थिति थी जाकर पूछिए। 15 साल में राज्य का क्या हुआ पूछिए उनसे।"
अब ये पार्टी के भीतर चल रहे कलह का तकाजा है या उम्र का। लेकिन, नीतीश यदि इसी तरह से वर्ताव करते रहेंगे तो ये पार्टी के लिए सोचनीय होगा। हालांकि, विपक्ष का दावा है कि बीजेपी अभी तक अपनी पहुंच बिहार की राजनीति में नहीं बना पाई है और बिना मुख्यमंत्री नीतीश के नेतृत्व में वो चुनाव नहीं लड़ सकती है। यही बात राजनीतिक विश्लेषक भी मानते हैं। उनका कहना है कि नीतीश को अभी भाजपा नजरअंदाज नहीं कर सकती है।