कर्नाटक विधानसभा चुनाव के रूझान सामने आ रहे हैं। अब तक के रुझानों में भाजपा स्पष्ट बहुमत की ओर बढ़ती दिख रही है। भाजपा 111 सीटों पर आगे चल रही है। कांग्रेस 70 और जेडीएस 39 और अन्य 2 सीटों पर बढ़त बनाए हुए हैं। ऐसे में भाजपा की जीत लगभग तय मानी जा रही है।
कर्नाटक चुनाव में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों ने अपनी पूरी ताकत यहां झोंकी थी। विशेषकर कांग्रेस इस चुनाव को लेकर काफी उत्साहित और अपनी जीत तय मान रही थी। चुनावी सर्वेक्षणों में भी कांग्रेस बड़ी पार्टी के तौर पर उभरती दिखाई दे रही थी। लेकिन परिणाम काफी चौंकाने वाले आए हैं। आखिर क्या वजह है जो कांग्रेस कर्नाटक की रेस में पिछड़ गई..
नहीं चला लिंगायत कार्ड
सिद्धारमैया ने चुनाव की तारीखों की घोषणा होने से पहले राज्य में लिंगायत कार्ड चलाने का प्रयास किया। कांग्रेस ने लिंगायतों को धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्जा देने का विधानसभा में प्रस्ताव पारित कर केंद्र की अनुमति के लिए भेजा। लेकिन यह दांव अब नाकाम हो गया। माना जा रहा है कि राज्य में लिंगायतों की आबादी 17 फीसदी से घटाकर 9 फीसदी मानी गई। इस कदम से वोक्कालिगा समुदाय और लिंगायतों के एक धड़े वीराशैव में भी नाराजगी देखी गई। हो सकता है इससे उनका झुकाव भाजपा की ही ओर ही रहा।
येदियुरप्पा की वापसी हुई
2008 में कर्नाटक में भाजपा की सरकार बनी थी और येदियुरप्पा को सीएम बनाया था। लेकिन बाद में खनन घोटालों में आरोपों की वजह से येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा। येदियुरप्पा ने भाजपा से नाराज होकर दूसरी पार्टी कर्नाटक जनता पक्ष बना ली और 2013 का चुनाव अलग लड़ा। ये बड़ी वजह बनी और 2013 के चुनाव में भाजपा के हाथ से सत्ता निकल गई। इस दौरान येदियुरप्पा की पार्टी को 6 सीटें मिलीं लेकिन 9.8 फीसदी वोट मिले। लेकिन इस बार पार्टी में वापसी कर चुके येदियुरप्पा ही राज्य में पार्टी का चेहरा और सीएम उम्मीदवार हैं।
जेडीएस के पाले में बसपा और एनसीपी
ऐसे तो दलित वोटर्स को कांग्रेस के साथ माना जाता है। लेकिन इन चुनावों में बहुजन समाज पार्टी का जेडीएस के साथ मिलकर चुनाव लड़ना भी कांग्रेस के लिए नुकसानदेह रहा। कई वोटर भाजपा से मुकाबले के नाम पर कांग्रेस, एनसीपी और जेडीएस में बंट गए।
मोदी का चुनावी अभियान
पीएम मोदी और राहुल गांधी ने कर्नाटक में पूरी ताकत के साथ अपनी-अपनी पार्टी के लिए प्रचार किया। मोदी अपने प्रचार में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से लेकर सीएम सिद्धारमैया से जुबानी जंग में तीखे हमले करते दिखाई पड़े। पीएम मोदी कैबिनेट के मंत्रियों, कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ चुनाव प्रचार में उतरे। नमो ऐप के जरिए भी वे लोगों तक अपनी बात पहुंचाते रहे। यानी मोदी अपने प्रचार अभियान को जनादेश में बदलने में कामयाब रहे। जबकि राहुल द्वारा प्रचार के दौरान खुद को पीएम पद का दावेदार बताना भी पार्टी के लिए मंहगा साबित हुआ। माना जा रहा है कि कर्नाटक की जनता उनसे सूबे के मसले पर मुखातिब होना चाहती थी। राहुल के इस बयान को भाजपा ने अपने पक्ष में भूना लिया।