वर्चस्व की जंग बन चुकी पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव की लड़ाई में नंदीग्राम सीट एक बार फिर चर्चा में है। करीब दो लाख मतदाताओं वाली नंदीग्राम सीट अब वो सीट बन गई है, जिस पर पूरे देश निगाहें होंगी। दरअसल ममता बनर्जी ने अपने सियासी जीवन को नंदीग्राम से ही ऊंचाई दी थी। अब वे इस सीट से चुनाव लड़ने की घोषणा कर सत्ता को बचाए रखने की कोशिशों में जुटी हैं। लेकिन नंदीग्राम में कभी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए मजबूत रणनीति तैयार करने वाले शुभेंदु अधिकारी आज 'दीदी' के विरुद्ध हैं। बीजेपी ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुकाबला करने के लिए मौजूदा विधायक शुभेंदु अधिकारी को ही टिकट दिया है। शुभेंदु अधिकारी ने तृणमूल कांग्रेस में रहते हुए 2016 में नंदीग्राम से ही जीत दर्ज की थी। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर ममता बनर्जी ने इस सीट को क्यों चुना?
नंदीग्राम अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्र है और यहां उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला अल्पसंख्यक मतदाता ही करते हैं। इसलिए ममता बनर्जी ने इस सीट को चुना है। वैसे भी वाममोर्चा के शासन को उखाड़ फेंकने में नंदीग्राम आंदोलन की अहम भूमिका रही है। पिछले दशकों की राजनीति में नंदीग्राम आंदोलन को हथियार बना कर ही वर्तमान सीएम ममता बनर्जी ने लेफ्ट को अपदस्थ करने में सफलता पाई थी। 2007 में तात्कालीन सीएम बुद्धदेव भट्टाचार्य के नेतृत्व में पश्चिम बंगाल की लेफ्ट सरकार ने सलीम ग्रूप को ‘स्पेशल इकनॉमिक जोन’ नीति के तहत नंदीग्राम में एक केमिकल हब की स्थापना करने की अनुमति प्रदान करने का फैसला किया था।
राज्य सरकार की योजना को लेकर उठे विवाद के कारण विपक्ष की पार्टियों ने भूमि अधिग्रहण के खिलाफ आवाज उठाई। टीएमसी, एसयूसीएलI,जमात उलेमा-ए-हिंद और कांग्रेस के सहयोग से भूमि उच्छेद प्रतिरोध कमिटी (बीयूपीसी) का गठन किया गया और सरकार के फैसले के खिलाफ आंदोलन शुरू किया गया। इस आंदोलन का नेतृत्व तात्कालीन विरोधी नेत्री ममता बनर्जी कर रही थीं और इसके नायक शुभेंदु अधिकारी थे।
लेकिन नंदीग्राम शुभेंदु अधिकारी का गढ़ माना जाता है, अधिकारी हाल ही में टीएमसी छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए हैं। वह पहले ममता बनर्जी सरकार में मंत्री थे। ममता बनर्जी की चुनौती स्वीकार करते हुए शुभेंदु अधिकारी ने कहा था कि यदि मुझे बीजेपी की तरफ से नंदीग्राम का टिकट दिया जाता है तो मैं ममता बनर्जी को कम से कम 50 हजार वोटों से हराऊंगा अन्यथा मैं राजनीति छोड़ दूंगा।
2007 में नंदीग्राम आंदोलन के बाद साल 2009 में हुए विधानसभा उपचुनाव में टीएमसी ने पहली बार नंदीग्राम में अपना खाता खोला। टीएमसी की फिरोजा बीबी ने यह जीत हासिल की। शुभेंदु अधिकारी 2016 में नंदीग्राम से विधायक बने और ममता सरकार में मंत्री बनाए गए। टीएमसी छोड़ बीजेपी में शामिल होने वाले शुभेंदु अधिकारी का नंदीग्राम गढ़ सूत्रधार माना जाता है। मिदनापुर में शुभेंदु के परिवार का वर्चस्व है। उनके पिता कांग्रेस से विधायक और सांसद रह चुके हैं। वे यूपीए सरकार में ग्रामीण विकास राज्य मंत्री थे और अभी तृणमूल से सांसद हैं। शुभेंदु खुद लगातार विधायक और सांसद का चुनाव जीतते आ रहे हैं। शुभेंदु के एक भाई सांसद और दूसरे नगरपालिका अध्यक्ष हैं।
अगर आंकड़ों और जीत की बात करें तो भाजपा नंदीग्राम सीट पर जीत के आसपास भी नहीं पहुंची है। नंदीग्राम से 6 बार कांग्रेस, 10 बार सीपीआई जीत चुकी है। जबकि लगातार तीन बार से टीएमसी जीतती आ रही है। ये टीएमसी का बेहद मजबूत किला माना जाता है। लेकिन हालिया समीकरण के बाद सवाल उठ रहे हैं कि क्या एक बार फिर टीएमसी की जीत का रास्ता इस नंदीग्राम से निकलेगा या शुभेंदु अधिकारी टीएमसी के रथ को रोक देंगे?