नई पीढ़ी और पुरानी पीढ़ी के तौर-तरीकों में अंतर के अलावा यह सोशल मीडिया को लेकर रुख और उसके इस्तेमाल को लेकर सोच में अंतर का भी परिणाम है। राहुल गांधी के दफ्तर का जिम्मा जिन कंधों पर है, वे अभी तक इस बात से आश्वस्त नहीं है कि सोशल मीडिया पर राहुल गांधी के उतरने से फायदा हो सकता है। अभी ट्विटर, फेसबुक के इस्तेमाल को लेकर तमाम दिग्गज कांग्रेसी नेताओं में हिचकिचाहट है। कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला भी सोशल मीडिया में सक्रिय नहीं है। बहुत डरते-डरते राहुल गांधी के दफ्तर का ट्विटर अकाउंट खोला गया है। इसी तरह से किसान रैली से पहले वेबसाइट शुरू की गई थी। दिक्कत यह है कि सोशल मीडिया पर जितनी तेज गति से खबरों और विचारों की बौछार की जाती है, उसमें कांग्रेस अभी बहुत पीछे है। इसलिए इन छिटपुट प्रयासों से सोशल मीडिया में उसकी कोई ठोस उपस्थिति दर्ज नहीं हो पाएगी।
कांग्रेसी नेताओं का कहना है कि चूंकि पार्टी और खासतौर पर राहुल गांधी किस मुद्दे पर क्या रुख अख्तियार करेंगे, इसे लेकर कोई वृहद जानकारी नहीं होती है, लिहाजा बाकी नेताओं के लिए तमाम सवालों पर स्टैंड लेना मुश्किल हो जाता है। वैसे भी लोकसभा चुनावों में पार्टी की बुरी हार के बाद कांग्रेसी नेताओं का मनोबल जिस कदर टूटा है और ढांचा धाराशाही हुआ है, उसमें कांग्रेस फूंक-फूंक के कदम रख रही है।