छत्तीसगढ़ की राजनीति में अनिश्चितता के बादल अभी तक पूरी तरह से नहीं छटे हैं। कांग्रेस शासित राज्य में फिलहाल मुख्यमंत्री के बदले जाने के संकेत भले ही ना मिले हों, लेकिन भूपेश बघेल की पूरी पारी खेलने की बात भी आलाकमान की ओर से साफ तौर पर नहीं कही गई है। शुक्रवार को कांग्रेस नेता राहुल गांधी के निवास- 12 तुगलक लेन में लंबी बैठक के बाद शाम 7: 30 बजे जब भूपेश बघेल बाहर निकले तब उन्होंने राज्य के विकास और राजनीति को लेकर चर्चा होने की बात कही। साथ ही उन्होंने इशारों-इशारों में कहा कि वे अभी पद पर बने रहेंगे। मगर पत्रकारों के कुछ सवालों पर उनकी थोड़ी झल्लाहट कुछ सियासी अटकलबाजियों के लिए जमीन भी तैयार कर गई।
राहुल से मुलाकात के बाद भूपेश बघेल ने कहा, 'मैंने राहुल जी को बतौर मुख्यमंत्री छत्तीसगढ़ आमंत्रित किया है। वह राज्य में अब तक हुए विकास कार्यों को देखेंगे।' ढाई ढाई साल मुख्यमंत्री फॉर्मूले की बात पर बघेल ने कहा कि राज्य प्रभारी पी एल पूनिया इस बारे में पहले ही साफ कर चुके हैं। इस बारे में आगे कहने की कुछ जरूरत नहीं है। इसके अलावा बघेल ने कहा कि उन्होंने अपने नेता से राजनीतिक मुद्दों के साथ-साथ राज्य के प्रशासनिक मामलों पर भी चर्चा की है।
राज्य में 'छत्तीसगढ़ डोल रहा है, बाबा-बाबा बोल रहा है' बनाम 'छत्तीसगढ़ अड़ा हुआ है दाउ संग खड़ा हुआ है' के नारे अब खुलेआम कांग्रेस के भीतर गुटबाजी की बानगी पेश कर रहे हैं। लिहाजा मुख्यमंत्री पद के लिए मंत्री टीएस सिंहदेव से टकराव के बीच बघेल आज दोपहर बाद राहुल के आधिकारिक निवास 12 तुगलक लेन गए। प्रियंका गांधी वाड्रा भी वहां पहुंचीं थीं। दोनों नेताओं के बीच लंबी बातचीत हुई। माना जा रहा है कि टीएस सिंहदेव भी अब राहुल गांधी से मुलाकात कर सकते हैं।
इससे पहले चर्चा थी कि आज आलाकमान इस विवाद का निपटारा कर सकता है। लेकिन राज्य प्रभारी पीएल पुनिया और मुख्यमंत्री बघेल के बयानों से सिर्फ इतना ही अंदाजा लगाया जा सका है कि केंद्रीय नेतृत्व ने इस मुद्दे को हल करने की बजाय टालने पर ज्यादा जोर दिया है।
'बदलाव' पर 'बगावत' भारी होने का डर
बता दें कि 17 दिसम्बर 2018 को भूपेश बघेल ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। तब से ही अंदरखाने चर्चा थी कि ढाई साल के फॉर्मूले के तहत वे इस पद पर बने रहेंगे जबकि इसके बाद सिंहदेव कमान संभालेंगे। हालांकि पार्टी की ओर से आधिकारिक तौर पर कभी भी इस बात की पुष्टि नहीं की गई। अब जब भूपेश की नेतृत्व वाली सरकार अपना ढाई बरस पूरा कर चुकी है तब सिंहदेव के गुट से बदलाव की आवाजें उठने लगीं। साथ ही कई मोर्चों पर मुख्यमंत्री बघेल और मंत्री सिंहदेव के बीच टकराव वाली स्थितियां भी निर्मित होती रही हैं। जब तनाव ज्यादा बढ़ने लगा तब दोनों नेताओं को दिल्ली तलब किया गया। भूपेश बघेल के गुट के मंत्री और 53 विधायक पहले ही दिल्ली पहुंच चुके थे। लगभग दर्जनभर से ज्यादा विधायकों ने गुरुवार की देर रात कांग्रेस के छत्तीसगढ़ प्रभारी पीएल पुनिया से मुलाकात की। बघेल समर्थक विधायकों ने बघेल के बदले जाने का विरोध किया। बघेल गुट का मानना है कि विधानसभा चुनाव से पहले अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से आने वाले मुख्यमंत्री को कुर्सी से हटाना पार्टी को भारी पड़ सकता है। राजस्थान और पंजाब का उदाहरण देते हुए बघेल गुट का कहना है कि अगर सरकार में नेतृत्व परिवर्तन होता है तब छत्तीसगढ़ कांग्रेस में भी इन राज्यों के जैसे बिखराव हो सकता है। विधायकों के दिल्ली में डेरा डालने की बात मुख्यमंत्री के शक्ति प्रदर्शन के तौर पर भी देखा जा रहा है।
क्या करेंगे सिंहदेव
वहीं मंत्री टीएस सिंहदेव के समर्थक सरकार बनने के बाद से ही ये कहते रहे हैं कि ढाई-ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री पर सहमति बनी है। अब ढाई साल पूरा होने के बाद सिंहदेव के समर्थकों ने इसके लिए मोर्चा खोल दिया है। सिंहदेव ने भी हाल ही में ये सवाल उठाया था कि टीम में खेलने वाला खिलाड़ी कप्तान बनने की नहीं सोच सकता क्या? ऐसे में टीएस सिंहदेव के गुट को आलाकमान कैसे राजी करता है यह जल्द ही पता चल जाएगा। शायद इसीलिए केंद्रीय नेतृत्व ने अपने पूरे पत्ते नहीं खोले हैं।