गुजरात विधानसभा चुनाव के दिन करीब आ गए हैं। राजनीतिक पार्टियों के द्वारा सिलसिलेवार सभा, रैलियां वगैरह आयोजित की जा रही हैं। जहां सत्तासीन भारतीय जनता पार्टी अपनी कुर्सी बचाए रखना चाह रही है। वहीं प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस हर हाल में जनादेश हासिल करने की कोशिशों में लगी है। लेकिन इस दौरान भाजपा और कांग्रेस के अलावा गुजरात के तीन युवाओं की चर्चा भी बड़े जोरशोर से हो रही है। ये हैं पाटीदार नेता हार्दिक पटेल, दलित नेता जिग्नेश मेवाणी और ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर। कहा जा रहा है कि ये तीन युवा इस सूबे में ‘परिवर्तन के कर्णधार’ साबित हो सकते हैं।
ये तीनों युवा गुजरात और केन्द्र सरकार के विरोधी होने की वजह से जहां भाजपा के लिए चुनौती पैदा कर रहे हैं, वहीं कांग्रेस के लिए उर्वर जमीन तैयार करते दिखाई दे रहे हैं। लिहाजा कांग्रेस ने इन तीनों युवाओं को साधने के लिए न्योता भी दे दिया। नतीजतन अल्पेश ठाकोर ने तो कांग्रेस प्रवेश भी कर लिया है। वहीं हार्दिक पटेल ने चुनाव लड़ने से तो इनकार किया लेकिन भाजपा विरोध के लिए कांग्रेस को समर्थन देने का भी संकेत दिया। इधर जिग्नेश मेवाणी भी भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं।
अब सवाल उठता है कि आखिर ये तीन युवा कैसे इस बार के चुनाव को प्रभावित कर सकते हैं? आखिर क्या वजह है कि कांग्रेस किसी भी तरह इन तीनों युवा नेताओं को अपनी तरफ करने के लिए एड़ी-चोटी एक कर रही है? इन प्रश्नों के उत्तर पाने के लिए हमें इन तीनों युवाओं की पृष्ठभूमि और ताकत पर गौर करने की जरूरत है।
हार्दिक पटेल
पाटीदार आरक्षण का मुद्दा गुजरात के बड़े तबके को प्रभावित करने वाला है। साल 2015 में पटेल आरक्षण की मांग के दौरान हार्दिक पटेल एक बड़े सामाजिक नेता के तौर पर उभरे। 12 प्रतिशत का वोट शेयर रखने वाले पाटीदार अपनी आर्थिक ताकत के बूते बड़ी सियासी दखल रखते हैं। पाटीदार अनामत आंदोलन समिति के संयोजक हार्दिक पटेल ने भाजपा को आरक्षण न देने के लिए दोषी करार दिया है। पाटीदार समाज की ओर से कई बार गुजरात की भाजपा सरकार और मोदी सरकार का विरोध किया जाता रहा है।
वहीं हार्दिक पटेल कांग्रेस को भाजपा से कई गुना बेहतर भी बताते हैं। हाल-फिलहाल कांग्रेस के साथ उनकी बातचीत में भी तेजी देखी जा सकती है।
भले ही हार्दिक पटेल के करीबी रहे वरुण पटेल और रेशमा पटेल भाजपा में शामिल हो गए हों लेकिन पाटीदार समाज में बड़ा दबदबा रखने वाले हार्दिक इस चुनाव में भाजपा विरोध का ऐलान कर चुके हैं।
जिग्नेश मेवाणी
गुजरात के उना में हुए दलित आंदोलन से सुर्खियों में आए राष्ट्रीय दलित अधिकार मंच के संयोजक जिग्नेश मेवाणी भाजपा के लिए मुसीबत माने जा रहे हैं। दरअसल राज्य में दलितों पर हो रहे हमलों के लिए जिग्नेश गुजरात सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। ऐसे में भाजपा पर इसका विपरीत असर पड़ना स्वाभाविक भी है।
पेशे से वकील और सामाजिक कार्यकर्ता जिग्नेश ने गोरक्षा के नाम पर दलितों की पिटाई के विरुद्ध हुए आंदोलन की अगुवाई की थी। 'आज़ादी कूच आंदोलन' में जिग्नेश ने 20 हजार से अधिक दलितों को एक साथ मरे जानवर न उठाने और मैला न ढोने की शपथ दिलाई थी।
राज्य में दलितों का वोट लगभग सात फीसदी है। 6 करोड़ 38 लाख जनसंख्या वाले गुजरात में दलित लगभग 35 लाख 92 हजार हैं।
मेवाणी सीधे तौर पर कहते हैं कि इस बार बीजेपी को हर कीमत पर हराया जाना चाहिए।
अल्पेश ठाकोर
हाल ही में दोबारा कांग्रेस प्रवेश किए अल्पेश ठाकोर एक बड़े ओबीसी नेता के तौर पर जाने जाते हैं। शराबबंदी के पक्षधर और पाटीदारों को आरक्षण देने का विरोध करने वाले अल्पेश ओबीसी, एससी और एसटी एकता मंच के संयोजक हैं।
बेरोजगारी को लेकर भाजपा सरकार को घेरने वाले अल्पेश ने कांग्रेस प्रवेश के दौरान कहा, “मुझे तख्तो-ताज नहीं चाहिए, मैंने कांग्रेस से सिर्फ अपने लोगों के लिए सम्मान मांगा है। गुजरात आए राहुल गांधी से हमारी यही मांग है कि किसानों का कर्ज माफ हो जाए, बेरोजगारों को रोजगार मिले, शराबबंदी पूरी तरह लागू हो।”
अल्पेश ठाकोर भाजपा के खिलाफ मुखर होकर हमला करते रहे हैं। अब कांग्रेस प्रवेश के बाद इसमें और भी तेजी आ सकती है।
गुजरात में ओबीसी का वोट प्रतिशत 40 है ऐसे में एक ओबीसी नेता के तौर पर सियासी दखल रखने वाले ये नेता भाजपा के लिए टेढ़ी खीर और कांग्रेस के लिए वरदान साबित हो सकते हैं।
पार लगेगी नैया?
22 साल से गुजरात की सत्ता से बाहर चल रही कांग्रेस इस बार मौका नहीं चूकना चाहती। राहुल गांधी भी जहां अपने भाषणों में युवाओं को केन्द्र में रखकर राज्य की 65 फीसदी युवा आबादी को रिझाने में लगे हैं, वहीं कांग्रेस हार्दिक पटेल, मेवाणी और ठाकोर जैसे युवा नेताओं के दम पर अपनी नौका पार लगाना चाह रही है। अब तो यह वक्त ही बताएगा कि सामाजिक आंदोलन के चेहरे रहे ये युवा नेता किस तरह अपने प्रभाव को कांग्रेस के लिए जनादेश में तब्दील करा पाएंगे।