महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण से संबंधित कानून को खारिज करने के उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद भाजपा और शिवसेना की नेतृत्व वाली सरकार के बीच आरोप प्रत्यारोप शुरू हो गया है। भाजपा ने आरोप लगाया कि महा विकास अघाड़ी सरकार की अक्षमता के कारण मराठा आरक्षण के मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय में विफलता मिली। वहीं इसे ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ करार देते हुए मुख्मयंत्री उद्धव ठाकरे ने बुधवार को कहा कि वह केंद्र से 'हाथ जोड़कर' अनुरोध कर रहे हैं कि जिस तत्परता के साथ उसने अनुच्छेद 370 एवं अन्य विषयों पर कदम उठाया उसी तत्परता के साथ वह इस संबंध में भी दखल दे। सीएम उद्धव के द्वारा गेंद को केंद्र के पाले में डालने के बाद अब निगाहें मोदी सरकार के रुख की ओर है।
शीर्ष अदालत के फैसले के बाद एक बयान में ठाकरे ने कहा, ‘‘ हम हाथ जोड़कर प्रधानमंत्री एवं राष्ट्रपति से मराठा आरक्षण पर तत्काल निर्णय लेने का अनुरोध करते हैं। उन्होंने कहा कि अतीत में केंद्र सरकार ने अपने फैसलों को मजबूती प्रदान करने के लिए संविधान में संशोधन किया , वैसी ही तत्परता मराठा समुदाय को आरक्षण देने के लिए दिखायी जानी चाहिए।
उन्होंने राज्य में लोगों से शांति बनाये की अपील भी की। उन्होंने कहा कि इस समुदाय को आरक्षण का निर्णय महाराष्ट्र विधानमंडल के दोनों सदनों में सर्वसम्मति से लिया गया था और यह गायकवाड़ आयोग की सिफारिश पर आधारित था लेकिन, शीर्ष अदालत ने उसे इस आधार पर निरस्त कर दिया कि राज्य को इस तरह के आरक्षण देने का हक नहीं है।
ठाकरे ने कहा कि केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 , ‘‘शाहबानो प्रकरण’’ , उत्पीड़न कानून के संदर्भ में जैसी तत्परता दिखायी थी, उसे इस समुदाय को मदद प्रदान करने में वैसी ही तत्परता दिखानी चाहिए।
उनका इशारा अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी बनाने के लिए , तीन तलाक को दंडनीय बनाने नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा लाये गये कानून या संवैधानिक संशोधन तथा अनुसूचित जाति एवं जनजाति (उत्पीड़न रोकथाम) अधिनियम को शीर्ष अदालत द्वारा शिथिल बनाये जाने के बाद उसमें कड़े प्रावधान बनाये रखने के लिए केंद्र द्वारा उठाये गये कदम की ओर था।
ठाकरे ने यह भी कहा कि महाराष्ट्र से राज्यसभा सदस्य छत्रपति संभाजीराजे एक साल से इस विषय पर प्रधानमंत्री से मिलने का समय मांग रहे हैं लेकिन यह व्यर्थ गया। उन्होंने सवाल किया, ‘‘ उन्हें प्रधानमंत्री ने क्यों समय नहीं दिया। ’’ उन्होंने यह भी कहा , ‘‘उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत नहीं किया जा सकता, मगर किसी को भी लोगों को नहीं भड़काना चाहिए। जब तब हम आरक्षण मामला जीत नहीं जाते, प्रयास जारी रहना चाहिए।’’
इस बीच, मराठा क्रांति मोर्चा (एमकेएम) के संयोजक विनोद पाटिल ने मराठा आरक्षण कानून के उच्चतम न्यायालय के निरस्त हो जाने को लेकर महाराष्ट्र सरकार को जिम्मेदार ठहराया और दावा किया कि उसने समय से कानूनी रणनीति नहीं बनायी। उन्होंने औरंगाबाद में कहा कि भाजपा को भी बताना चाहिए कि वह मराठा समुदाय के लिए क्या कर सकती है। पाटिल का संगठन आरक्षण से जुड़े मराठा आंदोलन में अग्रणी रहा था।
वहीं, केंद्रीय मंत्री राम दास अठावले ने कहा कि केंद्र को मराठा, जाट, राजपूत एवं रेड्डी जैसे ‘क्षत्रिय समुदायों’ को अलग से आरक्षण देना चाहिए। मराठा आरक्षण कानून को उच्चतम न्यायालय द्वारा खारिज किये जाने पर उन्होंने आरोप लगाया कि शिवसेना की अगुवाई वाली राज्य सरकार ने इस मामले को ढंग से पेश नहीं किया। उन्होंने कहा, ‘‘ मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर उनसे मराठा और जाटों, राजपूतों एवं रेड्डी जैसे अन्य क्षत्रिय समुदायों के उन सदस्यों के लिए आरक्षण का अनुरोध करने जा रहा हूं जिनकी आय आठ लाख रूपये तक है।’’
महाराष्ट्र भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल ने बुधवार को आरोप लगाया कि महा विकास अघाड़ी सरकार की अक्षमता के कारण मराठा आरक्षण के मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय में विफलता मिली। पाटिल ने यहां एक संवाददाता सम्मेलन में राज्य विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने की मांग की और कहा कि इस मसले पर मिली विफलता पर चर्चा की जाए। पाटिल ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने राज्य सरकार के मराठा समुदाय को आरक्षण देने के सरकार के निर्णय को निरस्त कर दिया है। न्यायालय ने टिप्पणी करते हुए राज्य सरकार की ओर से गठित गायकवाड आयोग के मराठा समुदाय को सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़ा बताये जाने को पूरी तरह से गलत ठहराया है।
उन्होंने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडनवीस ने उच्च न्यायालय में मराठा आरक्षण के मसले को उचित तरीके से प्रस्तुत किया था लेकिन वर्तमान महा विकास अघाडी सरकार ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। इस वजह मराठा समुदाय को महा विकास अघाडी सरकार की अक्षमता का खामियाजा भुगतना पड़ेगा। यह सरकार न्यायालय को 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण देने में विफल रही है।
बता दें कि शीर्ष अदालत ने इस कानून को ‘असंवैधानिक’ करार देते हुए खारिज कर दिया और कहा कि 1992 में मंडल फैसले के तहत निर्धारित 50 प्रतिशत आरक्षण सीमा के उल्लंघन के लिए कोई असाधारण परिस्थिति नहीं है। नौकरियों एवं दाखिले में मराठों को आरक्षण देने के लिए 2018 में राज्य की तत्कालीन भाजपा नीत सरकार ने एसईबीसी (सामाजिक एवं शैक्षणिक पिछड़ा समुदाय) अधिनियम पारित किया था।