Advertisement

विधानसभा चुनाव’24 कश्मीर: जनाना जिमखाना का बहाना

कुलगाम कम्‍युनिस्‍टों का पुराना गढ़ रहा है। यहां 18 सितंबर को पहले चरण का मतदान हुआ। जम्‍मू-कश्‍मीर...
विधानसभा चुनाव’24 कश्मीर: जनाना जिमखाना का बहाना

कुलगाम कम्‍युनिस्‍टों का पुराना गढ़ रहा है। यहां 18 सितंबर को पहले चरण का मतदान हुआ। जम्‍मू-कश्‍मीर की इस विधानसभा में घुसते ही समझ आ जाता है कि इसका सियासी चरित्र बाकी जगहों से अलग है। यहां लड़ाई वैचारिक स्‍तर पर चलती है। अकसर ही यहां बहस इस्‍लाम बनाम मार्क्सवाद पर आकर टिक जाती है। इसलिए यहां के दोनों प्रत्‍याशी- माकपा के एमवाइ तारिगामी और प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी के समर्थन वाले विपक्षी नेता सायर अहमद रेशी इंकलाब और नए कश्‍मीर की बातें करते हैं। आजकल बहस चल रही है कि औरतों को जिमखाना जाना चाहिए या नहीं।      

माकपा का दफ्तर एक मस्जिद की बगल में है। उसके भीतर फिदेल कास्‍त्रो के उद्धरणों वाले बड़े-बड़े पोस्‍टर लगे हैं। एक पोस्‍टर पर लिखा है, ‘विचारों को हथियारों की जरूरत नहीं होती।’ यहां कम्‍युनिस्‍ट घोषणापत्र पढ़ते चे ग्वेरा के पोस्‍टर भी हैं। दूसरे कमरे के दरवाजे पर माकपा का चुनावी चिह्न चिपका हुआ है और नारा लिखा है, ‘हक का हामी, तारिगामी।’

दफ्तर के बाहर समर्थकों की भीड़ अपने नेता का इंतजार कर रही है लेकिन तारिगामी पास के एक गांव में प्रचार पर निकले हुए हैं। उनके काफिले में गीत बज रहा है, कितना दिलेर है हमारा लीडर, शेरों का शेर है हमारा लीडर। यह पाकिस्‍तानी गीत है जिसे वहां के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की रैलियों में तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआइ) के कार्यकर्ता बजाया करते थे। यहां के चुनाव प्रचार में ज्‍यादातर जो नारे और गीत बजाए जा रहे हैं, सब पाकिस्‍तान में हुए पीटीआइ के प्रदर्शनों से उधार लिए हुए हैं। इससे समझ आता है कि पाकिस्‍तान के घटनाक्रम को कश्‍मीर में कितने करीब से देखा जा रहा था।

माकपा की रैलियों में हालांकि गीत बदलते रहते हैं। जैसे, आजकल बॉलीवुड की बीते जमाने की फिल्‍म मजदूर का यह गीत ‘हम मेहनतकश जगवालों से जब अपना हिस्‍सा मांगेंगे...’ बज रहा है। कभी-कभार इन रैलियों में कश्‍मीरी गीत भी बजते हैं। दो हफ्ते पहले तारिगामी ने अपना परचा भरा था। उस वक्‍त उन्‍होंने कुलगाम में अपने करवाए विकास कार्यों को गिनवाया था और अनुच्‍छेद 370 जैसे कई सियासी मसलों पर भी बात की थी। तारिगामी ने भारतीय जनता पार्टी और जम्‍मू-कश्‍मीर पर उसकी नीतियों की आलोचना करते हुए क्षेत्र में बेरोजगारी और अस्थिरता फैलाने का उस पर आरोप लगाया था। उन्‍होंने कहा था कि केंद्र शासित प्रदेश का दरजा रहते हुए मौजूदा असेंबली सभी मसलों का समाधान नहीं कर सकती, लेकिन यही एक व्‍यावहारिक विकल्‍प भी है।

जमात-ए-इस्लामी के सायर अहमद रेशी

तारिगामी 1996 से इस विधानसभा की नुमाइंदगी करते आए हैं। फलमंडी में दिए अपने भाषण में उन्‍होंने सेब व्‍यापारियों को मंडी की स्‍थापना में अपनी भूमिका की याद दिलाते हुए समर्थन मांगा और समझदारी से वोट देने का आह्वान किया। चरवाहों के एक गांव में उन्‍होंने चरवाहों के लिए आरक्षण की बात कही, जैसा आरक्षण जम्‍मू में गद्दियों को दिया जाता है।

इस बीच रेशी की सभाओं में जब ज्‍यादा भीड़ आने लगी और उनका स्‍वर राजनीतिक होता गया, तो तारिगामी को अपने प्रचार में बदलाव लाना पड़ा। उन्‍हें एहसास हो गया कि उनका विरोधी प्रत्‍याशी उतना कमजोर नहीं है। तब जाकर तारिगामी ने अपना स्‍वर और तीखा किया। उन्‍होंने सीधे जमात-ए-इस्‍लामी को निशाने पर लिया और जवाबदेही की मांग की। गौरतलब है कि पूर्व मुख्‍यमंत्रियों उमर अब्‍दुल्‍ला और महबूबा मुफ्ती ने चुनावी राजनीति में जमात-ए-इस्‍लामी के दोबारा प्रवेश का स्‍वागत किया है।

पीपुल्‍स कॉन्‍फ्रेंस के नेता सज्‍जाद लोन ने जमात-ए-इस्‍लामी को ‘पीडि़त’ बताया था लेकिन तारिगामी उसे उत्‍पीड़क मानते हैं। इसलिए उन्‍होंने एक ट्रुथ ऐंड रीकंसिलिएशन कमीशन बनाने की मांग की है, जो जमात के अतीत की कार्रवाइयों की पड़ताल करे। तारिगामी ने जमात पर बीते तीस वर्षों के दौरान चुनावों का बह‍िष्‍कार करने और मतदाताओं को प्रताडि़त करने के लिए हिंसा का प्रयोग करने का आरोप लगाया। उन्‍होंने कहा कि इतने बरस मतदान को ‘वर्जित फल’ मानने वाली जमात आज उसे स्‍वीकार्य और सही बताने की कोशिश कर रही है।    

माकपा के नेता और काडर रेशी के भाषणों को करीब से देख रहे हैं। ऐसे ही एक भाषण में रेशी ने अपने घोषणापत्र पर किए सवाल के जवाब में औरतों के लिए कुलगाम में एक अलग जिमखाना खुलवाने की बात की थी। इस बयान के तुरंत बाद वीडियो खत्‍म हो गया था। रेशी का आरोप है कि वीडियो को एक खास उद्देश्‍य के चलते एडिट किया गया था। रेशी ने कहा, ‘‘मैंने कहा था कि हम एक कैंसर अस्‍पताल खोलना चाहते हैं, जहां औरतें ही डॉक्टर हों। औरतों के लिए अलग बसें चलवाना चाहते हैं। जिले में मिट्टी के परीक्षण की लैब भी चाहते हैं। मैंने औरतें को सुबह टहलते देखा, वहीं से मुझे औरतों के लिए जिम का खयाल आया था लेकिन केवल इसी बात को काट कर चलाया गया।’’

औरतों के लिए जिम का खयाल कुलगाम जैसी जगह पर बेशक प्रगतिशील जान पड़ता हो लेकिन माकपा के लिए यह रेशी का मजाक बनाने का सबब बन गया। अब पूरा शहर इस पर बात कर रहा है। एक गांव में तारिगामी ने लोगों से कहा कि असेंबली का काम कानून बनाना है, इसलिए ऐसे किसी आदमी को वहां भेजने की जरूरत नहीं जिसके दिमाग में औरतों के लिए जिम का खयाल चल रहा हो। उन्‍होंने कहा, ‘‘आपको ध्‍यान से अपने विकल्‍पों पर सोच लेना चाहिए, ऐसे किसी को भी न चुनें जिसे कानून बनाने के बारे में कोई जानकारी ही न हो।’’ फिर उन्‍होंने जिम के सवाल पर रेशी का मजाक बनाया, ‘‘ये लोग कॉलेज और आइआइटी के बजाय औरतों के लिए जिम की बात कर रहे है। उनके दिमाग में जो है वही तो जबान पर आएगा।’’ इस बात पर लोग हंस दिए थे।

रेशी का चुनाव प्रचार भी कमजोर नहीं है। उनके प्रचारक ऊर्जा से भरे हुए हैं। रेशी अनुबंधित शिक्षक रहे हैं और 2004 में कश्‍मीर युनिवर्सि‍टी से राजनीति विज्ञान में एमए करने के बाद से ही पढ़ा रहे हैं। वे जमात के सक्रिय सदस्‍य रहे थे और 2019 में यूएपीए के तहत प्रतिबंधित होने से पहले तक कुलगाम में अपनी शैक्षणिक संस्‍थाओं का काम देखा करते थे।    

रेशी आम तौर से अपने भाषण शायरी से शुरू करते हैं, जैसे ‘‘तुम्‍हें खामोश रहने की आदत मार डालेगी।’’ फिर वे माकपा पर सीधा निशाना साधते हुए उसे गुंडों की पार्टी कहते हैं। वे कहते हैं, ‘‘आपकी चुप्‍पी ने इन गुंडों को उभरने का मौका दिया है।’’

छोटी दाढ़ी, मुस्‍कराते चेहरे और टोपी वाले रेशी शायरी के माध्‍यम से जमात के संदेश को लोगों तक पहुंचा रहे हैं। ‘रियासत अगर चानी है तो सियासत छीन लो उनसे, वरना इस रियासत को सियासत मार डालेगी।’

माकपा के नेता रेशी के भाषणों को करीब से देख रहे हैं। एक भाषण में रेशी ने औरतों के लिए कुलगाम में एक अलग जिमखाना खुलवाने की बात की थी

पोम्‍बाई चौकर पर दिए अपने भाषण में रेशी ने राजनीति में प्रवेश करने के जमात के फैसले का बचाव करते हुए दलील दी कि समाज को उनकी जरूरत है। उन्‍होंने याद दिलाया कि 1987 में यहां से अब्‍दुल रजाक मीर (बचरू) जमात के विधायक हुआ करते थे। उस वक्‍त मुस्लिम युनाइटेड फ्रंट के भीतर जमात की अच्‍छी-खासी ताकत थी। कांग्रेस और नेशनल कॉन्‍फ्रेंस ने चुनाव में धांधली करवा कर उसे हरा दिया। रेशी का कहना है कि कश्‍मीर की मौजूदा समस्‍या की जड़ 1987 के चुनाव तक जाती है। वे मानते हैं कि उसी चुनाव के बाद कश्‍मीर में हिंसा और उग्रवाद पनपा था।

उग्रवाद भड़कने के बाद बचरू ने असेंबली से इस्‍तीफा नहीं दिया था जबकि उनके साथी गीलानी, सैयद शाह और गुलाम नबी सुम्‍जी ने इस्‍तीफा दे दिया था। बचरू इस उथल-पुथल के बीच भी विधायक बने रहे। 1996 में कुलगाम के उनके घर से उन्‍हें अज्ञात बंदूकधारियों ने अगवा कर लिया और उनकी हत्‍या कर दी थी।

रेशी कहते हैं, ‘‘इन्‍होंने 37 साल राज कर लिया, अब इन्‍हें हटाने की बारी है। हमें अब हंसिया नहीं चाहिए। हमें लैपटॉप की जरूरत है।’’ वे कहते हैं कि एक इंकलाब होने वाला है, ‘‘अब यह आपकी जिम्‍मेदारी है कि हंसिया छोड़ कर लैपटॉप पर वोट दें और इंकलाब का हिस्‍सा बनें।’’ लैपटॉप रेशी का चुनाव चिह्न है। उनके इतना कहते ही उनके समर्थक जोर-जोर से नारा लगाने लगते हें, ‘‘टॉप टॉप लैपटॉप।’’

रेशी का कहना है कि अब तक माकपा को कोई कड़ी और गंभीर चुनौती मिली ही नहीं थी, लेकिन अब मैदान में गंभीर खिलाड़ी उतर चुके हैं, इसलिए माकपा डरी हुई है।’’ इसके बाद राशी माकपा की मान्‍यताओं पर निशाना साधते हुए धर्म पर उसके विचार की आलोचना करते हैं, ‘‘आप लोगों से माफ करने को कह रहे हैं, आपको तो खुदा से माफी मांगनी चाहिए लेकिन आप तो खुदा में यकीन ही नहीं रखते।’’ फिर वे भीड़ की तरफ उंगली उठाकर कहते हैं, ‘‘आप कहते हैं कि आपकी मजहब में आस्‍था है, फिर भी आप उसे वोट देते आ रहे हैं जो खुदा में यकीन ही नहीं करता। वे लोग तो बिना खुदा में यकीन के ही अब कुरान भी बांचने लगे हैं। यकीनन वक्त आ गया है कि कम्‍युनिज्म को अब हवा में उड़ा दिया जाए।’’  

घाटी के कम्‍युनिस्‍टों के लिए खुदा पर बहस अब काफी पुरानी हो चुकी। माकपा के वरिष्‍ठ नेता गुलाम नबी मलिक याद करते हैं कि सत्तर के दशक की शुरुआत में जब कम्‍युनिस्‍ट आंदोलन ने घाटी के लोगों पर असर पैदा करने लगा था, तब जमात खुदा का हवाला देकर कम्‍युनिज्‍म को मजहबी बहस तक सीमित करने की कोशिश कर रहा था। तारिगामी इस हथकंडे को अच्‍छे से समझते हैं। इसीलिए सूफी संत सैयद सिमान साहेब की दरगाह के करीब आयोजित अपनी रैली में उन्‍होंने जोर देकर कहा, ‘‘मैं हजरत सैयद सिमान साहेब की दरगाह से यह संदेश देना चाहता हूं कि हम जीना चाहते हैं।’’ सूफी संत के दिए संदेशों का हवाला देते हुए जमात के प्रत्‍याशी का नाम लिए बगैर उन्‍होंने कहा कि सूफियों ने कभी भी उनका समर्थन नहीं किया जिन्‍होंने स्‍कूल, कॉलेज और अस्‍पताल जलाए। सूफियों ने हमेशा कश्‍मीर के लोगों के लिए सम्‍मानजनक जीवन की बात की है, भाईचारे और इंसानियत की बात की है। उन्‍होंने कहा, ‘‘मैं उनमें से नहीं हूं जिन्‍होंने मतदान को कलंकित किया हो। याद करें वे दिन जब लोग वोट देने से डरते थे।’’ ऐसा कहते हुए उन्‍होंने लोगों को चेताया कि अगर किसी गिद्ध की अंतरात्‍मा बदल जाए, तो उन्‍हें उससे कोई दिक्‍कत नहीं है। प्रकारांतर से उन्‍होंने रेशी को गिद्ध कह डाला। इससे पहले रेशी ने तारिगामी को ऐसा ‘डस्‍टबिन’ कहा था जिसे फेंका जाना है।      

उसके बाद तारिगामी वापस जिम पर आ गए, ‘‘उनसे मैनिफेस्‍टो पूछा गया तो वे लेडी जिम पर बात करने लगे।’’ इस बात पर लोग हंस पड़े। फिर तारिगामी बोले, ‘‘मैंने यहां इतने स्‍टेडियम बनवाए हैं और मैं अपनी बेटियों से वादा करता हूं कि कुलगाम में एक टेक्निकल कॉलेज भी खुलेगा।’’

चुनाव का नतीजा 8 अक्‍टूबर को आना है। अगर कुलगाम से रेशी जीतते हैं तो यह जमात की वैचारिक जीत होगी और चुनावी राजनीति में उसकी धमाकेदार वापसी कराएगी। यह चुनाव जिम से बहुत आगे की चीज है, जिसमें बुनियादी विचारधाराएं दांव पर हैं। मार्क्सवादी पार्टी और जमात दोनों जानते हैं कि लेडी जिम तो बस एक बहाना है।

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोर से
Advertisement
Advertisement
Advertisement
  Close Ad