शमशेर सिंह
मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह और पूर्व मुख्यमंत्री कांग्रेस नेता कमलनाथ की नजदीकियां बढ़ती जा रही है। हालात यहां तक पहुंच चुके है कि शिवराज सिंह अपने फैसलों पर कमलनाथ की हां करा ले रहे है। दूसरी ओर कमलनाथ के इस रुख से कांग्रेस में नाराजगी बढ़ती जा रही है। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह कई वरिष्ठ नेता सार्वजनिक रूप से कमलनाथ के फैसले का विरोध कर रहे है।
ताजा मामला विधान सभा सत्र को स्थगित करने को लेकर है। लंबे समय बाद विधान सभा का सत्र बुलाया गया था। इसमें लव जिहाद के खिलाफ बनाया गया धर्म स्वातंत्र विधेयक सहित कई महत्वपूर्ण विधेयकों को पेश किया जाना था। इसके अलावा विधान सभा अध्यक्ष का भी चुनाव किया जाना था। शिवराज सरकार इन दोनों ही कामों से बचना चाह रही थी। इसके लिए सरकार ने तय किया कि विधान सभा सत्र न बुलाया जाये, जबकि उपचुनाव में चुनकर आये विधायकों की शपथ कराने को लेकर सहमति बनी। बाद में इन विधायकों की शपथ भी कराई गई।
सत्र न बुलाने का फैसला सर्वदलीय बैठक में लिया गया। इसकी वजह कोरोना के बढ़ते संक्रमण को बताया गया। इस बैठक में कमलनाथ भी मौजूद थे। उन्होंने भी सहमति जताई, जबकि पार्टी सत्र बुलाये जाने के पक्ष में थी। वरिष्ठ नेता व पूर्व मंत्री गोविंद सिंह ने बैठक में सत्र न बुलाये जाने के सरकार के फैसले का विरोध भी किया , किन्तु कमलनाथ की ओर से उनको समर्थन नहीं मिला।
इसके पहले लोकसभा चुनाव से पहले आयकर के छापों में भी कमलनाथ के कई करीबी निशाने पर थे। इसके बाद चुनाव आयोग ने भी छापे के बाद कार्रवाई करने का दबाव बनाया था। लेकिन आज तक उन पर शिवराज सरकार की तरफ से कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। जिसके बाद से कांग्रेस में दोनों नेताओं के बीच बनते नए समीकरण की बात उठने लगी है।
पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह सार्वजनिक रूप से कह चुके है कि जब विधान सभा में विधायकों को शपथ दिलाई जा सकती है और चुनावी रैलियां की जा सकती है तो विधान सभा सत्र क्यों नहीं बुलाया जा सकता है। इसी तरह कांग्रेस पार्टी का एक धड़ा कमलनाथ द्वारा शिवराज सिंह के पक्ष में लिये जा रहे फैसलों से काफी नाराज है। इस बात को कांग्रेस आलाकमान तक भी पहुंचाया गया है। यही वजह है कि कमलनाथ को विधान सभा के नेता प्रतिपक्ष के पद से हटाने की कवायद शुरू हो गई है।