केंद्र सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक में बढ़ते मतभेदों की खबरों के बीच वित्त मंत्रालय ने एक बार फिर अपना पक्ष रखा है। वित्त मंत्रालय ने कहा है कि केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता आरबीआई एक्ट के तहत जरूरी है और सरकार ने हमेशा इसका सम्मान किया है। यह सफाई तब सामने आई है, जब आरबीआई के डिप्टी गवर्नर और कर्मचारियों द्वारा स्वायत्तता का मुद्दा उठाए जाने पर वित्त मंत्री अरुण जेटली ने उनकी आलोचना की थी। सरकार ने सेक्शन- 7 के तहत आरबीआई को तीन पत्र भेजे थे। इस सेक्शन के तहत सरकार आरबीआई को लोकहित के मुद्दे पर निर्देश दे सकती है।
वित्त मंत्रालय ने कहा, ‘कई मुद्दों पर सरकार और आरबीआई के बीच समय-समय पर काफी सलाह-मशविरा होता है। यह हर नियामक पर लागू होता है। सरकार ने इन सलाहों को कभी सार्वजनिक नहीं किया। केवल आखिरी निर्णयों पर बात की जाती है।‘ वित्त मंत्रालय ने कहा, 'केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता आरबीआई एक्ट के दायरे में जरूरी और स्वीकार्य है। सरकार ने हमेशा इसे बढ़ावा दिया है और इसका सम्मान किया है। सरकार और केंद्रीय बैंक दोनों को लोकहित और अर्थव्यवस्था की जरूरतों के हिसाब से चलना होता है।‘
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आरबीआई पर क्या कहा था
वित्त मंत्री अरूण जेटली ने मंगलवार को कहा कि शीर्ष बैंक 2008 से 2014 के बीच अंधाधुंध कर्ज देने वाले बैंकों पर अंकुश लगाने में नाकाम रहा। उन्होंने कहा कि बैंकों में फंसे कर्ज (एनपीए) की मौजूदा समस्या का यही कारण है।
जेटली ने अमेरिका-भारत रणनीतिक भागीदारी मंच द्वारा आयोजित ‘इंडिया लीडरशिप सम्मिट’ में कहा, ‘वैश्विक आर्थिक संकट के बाद आप देखें 2008 से 2014 के बीच अर्थव्यवस्था को कृत्रिम रूप से आगे बढ़ाने के लिये बैंकों को अपना दरवाजा खोलने तथा अंधाधुंध तरीके से कर्ज देने को कहा गया।’ उन्होंने कहा, ‘एक तरफ अंधाधुंध कर्ज बांटे जा रहे थे, दूसरी केंद्रीय बैंक कहीं और देख रहा था। मुझे अचंभा होता है कि उस समय सरकार एक तरफ देख रही थी और रिजर्व बैंक की नजर दूसरी तरफ देख रहा था। मुझे नहीं पता कि केंद्रीय बैंक क्या कर रहा था जबकि वह इन सब बातों का नियामक था। वे सच्चाई पर पर्दा डालते रहे।’ वित्त मंत्री ने कहा कि तत्कालीन सरकार बैंकों पर कर्ज देने के लिये जोर दे रही थी जिससे एक साल में कर्ज में 31 प्रतिशत तक वृद्धि हुई जबकि औसत वृद्धि 14 प्रतिशत थी।
डिप्टी गवर्नर ने उठाए थे सवाल
शुक्रवार को आरबीआई के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने कहा था कि अगर सरकार केंद्रीय बैंक की आजादी का सम्मान नहीं करेगी तो उसे जल्द या बाद में आर्थिक बाजारों की नाराजगी का शिकार होना पड़ेगा। उन्होंने कहा था कि आरबीआई की नीतियां नियमों पर आधारित होनी चाहिए। विरल ने कहा कि सरकार के केंद्रीय बैंक के कामकाज में ज्यादा दखल देने से उसकी स्वायत्ता प्रभावित हो रही है।