चुनाव आयोग ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषणों पर आदर्श आचार संहिता के कथित उल्लंघन के मामलों में अपने आयुक्त के असहमति नोट को सार्वजनिक करने से साफ इनकार कर दिया है। सूचना के अधिकार कानून के तहत इसकी मांग की गई थी। चुनाव आयोग ने कहा है कि ऐसी सूचना देने से छूट मिली है जिससे किसी व्यक्ति की जान या शारीरिक सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है।
लोकसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भाषणों के जरिए आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन करने का आरोप लगाने वाली शिकायतों पर किए गए फैसलों पर लवासा ने असहमति जाहिर की थी। आयोग ने पीएम मोदी को क्लीन चिट दे दी थी। तीन सदस्यों वाले पूर्ण आयोग में मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा और दो अन्य आयुक्त- अशोक लवासा और सुशील चंद्र शामिल हैं।
आरटीआई कार्यकर्ता को यह मिला जवाब
अब पुणे के आरटीआई कार्यकर्ता विहार धुर्वे ने लवासा के असहमति नोट की मांग की थी, जिसका चुनाव आयोग ने जवाब दिया है। यह मामला पीएम मोदी की 1 अप्रैल को वर्धा, 9 अप्रैल को लातूर और 21 अप्रैल को पाटन और बाड़मेर तथा 25 अप्रैल को वाराणसी में हुई रैलियों में दिए भाषणों को लेकर था। चुनाव आयोग ने आरटीआई ऐक्ट के सेक्शन 8 (1) (जी) का हवाला देते हुए कहा कि ऐसी सूचनाओं को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है जिससे किसी व्यक्ति की जान या शारीरिक सुरक्षा या सूचना के सॉर्स की पहचान या कानून प्रवर्तन एजेंसियों या सुरक्षा उद्देश्यों के लिए दी गई सहायता खतरे में पड़ सकती है।
धुर्वे ने अपनाई गई प्रक्रिया और भाषणों को लेकर आयोग के फैसले के बारे में भी जानकारी मांगी थी। इस जानकारी को भी सेक्शन 8 (1) (जी) के तहत देने से इनकार कर दिया गया।
कुल 11 फैसलों पर लवासा ने जताई थी असहमति?
लवासा ने कथित तौर पर आयोग द्वारा प्रधानमंत्री और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को उनके भाषणों पर लगातार क्लीन चिट दिए जाने पर असहमति जताई थी। बताया जाता है कि आदर्श आचार संहिता के कथित उल्लंघन के लिए मोदी और शाह के खिलाफ की गई शिकायतों में चुनाव आयोग के 11 निर्णयों पर लवासा ने कथित तौर पर असहमति जताई थी। सभी में प्रधानमंत्री मोदी और शाह को क्लीन चिट दी गई थी।
तब ऐसे मामलों से अलग हो गए थे लवासा
चुनाव आयोग के आदेशों में असहमति नोट को दर्ज करने की लवासा की मांग नहीं मानी गई तो उन्होंने आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन के मामलों से खुद को अलग कर लिया था। इसके बाद आयोग ने कहा था कि पैनल के किसी सदस्य की असहमति को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है। चुनाव आयोग ने कहा था कि ऐसे मामलों में असहमति या अल्पमत के विचारों को रेकॉर्ड में रखा जाएगा, लेकिन उन्हें फैसलों में शामिल नहीं किया जाएगा।
(एजेंसी इपुट्स के साथ)