रामनाथ कोविंद का जन्म 1 अक्टूबर 1945 को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात जिले की तहसील डेरापुर के परौंख गांव में हुआ था। वह कोरी समुदाय से हैं जो उत्तर प्रदेश की एक अनुसूचित जाति है। सन 1977 में वह पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के विशेष कार्यकारी अधिकारी थे और वकालत के क्षेत्र में करीब 16 साल सक्रिय रहे हैं।
रामनाथ कोविंद ने कानपुर यूनिवर्सिटी से बीकॉम और एलएलबी करने के बाद सन 1971 से दिल्ली में वकालत शुरू की थी। इस दौरान उन्होंंने भारतीय प्रशासनिक सेवा में जाने की तैयारी भी की। जनता पार्टी की सरकार के दौरान सन 1977 से 1979 तक वह दिल्ली हाईकोर्ट में केंद्र सरकार के अधिवक्ता थे। 1980 से 1993 के दौरान भी वह सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार के स्टैंडिंग काउंसल रहे। सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट में लगभग 16 साल वकालत करने के बाद 1990 के दशक की शुरुआत में वह सक्रिय राजनीति में आए और भाजपा में शामिल हो गए। हालांंकि, लोकसभा चुनाव में उन्हें सफलता नहीं मिली, लेकिन राज्य सभा सांसद के तौर पर वह अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रहे।
राष्ट्रपति बनने के करीब पहुंच चुके रामनाथ कोविंद को कभी चुनावी राजनीति में कामयाबी नहीं मिली। उन्होंने एक बार लोकसभा और एक बार विधानसभा का चुनाव लड़ा, लेकिन दोनाेेंं ही बार हार का मुंह देखना पड़ा। कोविंद ने सन 1990 में घाटमपुर लोकसभा सीट से चुनावी मैदान में रखा कदम लेकिन कामयाबी नहीं मिली। इसके बाद 2007 में भोगनीपुर विधानसभा सीट से भी चुनाव लड़ा, लेकिन यहां भी वह जीत हासिल नहीं कर पाए।
चुनावी राजनीति में असफलताओं के बावजूद रामनाथ कोविंद ने राज्य सभा सांसद के तौर पर अपनी छाप छोड़ी और अब देश के राष्ट्रपति पद की दहलीज तक पहुंच गए हैैं। माना जा रहा है कि दलित समुदाय से ताल्लुक रखने की वजह से एनडीए से बाहर के दल भी उनकी उम्मीदवारी का समर्थन कर सकते हैं।
2015 में बिहार का राज्यपाल बनने से पहले रामनाथ कोविंद की पहचान दलित व पिछड़े वर्ग के अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले नेता की रही है। कोविंद ने 70 और 80 के दशक के दौरान दिल्ली में वकालत करते हुए पिछड़ों गरीबों को कानूनी सहायता मुहैया कराकर अपनी पहचान बनाई। बाद में वह भारतीय जनता पार्टी से जुड़ गए और 1994 से लगातार दो बार राज्यसभा सांसद रहे। वह भाजपा अनुसूचित मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता भी रह चुके हैं। लेकिन उन्होंने हमेशा विवादों और टीवी से दूरी बनाकर रखी। हालांकि, विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने राज्यपाल पद पर उनकी नियुक्ति को दलित कार्ड के तौर पर इस्तेमाल किया था।