आगामी लोकसभा चुनाव से पहले मोदी सरकार के मास्टरस्ट्रोक सामान्य वर्ग आरक्षण के लिए मंगलवार का दिन बेहद अहम है। सरकार ने आज लोकसभा में विधेयक पेश कर दिया है। भाजपा ने अपने सभी सांसदों को लोकसभा में मौजूद रहने के लिए व्हिप जारी किया। वहीं, कांग्रेस ने भी अपने सांसदों को व्हिप जारी कर सदन में पेश होने के लिए कहा है।
इस बिल को पास कराने के लिए राज्यसभा का सत्र भी एक दिन बढ़ा दिया गया है। हालांकि आर्थिक रुप से कमजोर सामान्य वर्ग को 10 फीसदी आरक्षण देने के मोदी सरकार के फैसले की राह इतनी आसान नहीं है। राज्यसभा में बिल पास कराने के लिए सरकार के पास बहुमत का आंकड़ा नहीं है और कुछ पार्टियां खुलकर इसके विरोध में उतर आई हैं। संविधान संशोधन विधेयक को पारित करने के लिए सरकार को लोकसभा और राज्यसभा में पूर्ण बहुमत (50 फीसदी से अधिक) के अलावा विशेष बहुमत (उपस्थित और वोट देने वाले सदस्यों का दो तिहाई) की जरूरत होगी। लोकसभा में पारित होने के बाद इसे राज्यसभा भेजा जाएगा।
सरकार को दोनों सदनों में जुटाना होगा दो तिहाई बहुमत
इस प्रस्ताव पर अमल करने के लिए संविधान संशोधन विधेयक संसद से पारित कराने की जरुरत पड़ेगी, क्योंकि संविधान में आर्थिक आधार पर आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है और सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत तय कर रखी है। इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में जरूरी संशोधन करने होंगे। संसद में संविधान संशोधन विधेयक पारित कराने के लिए सरकार को दोनों सदनों में दो तिहाई बहुमत जुटाना होगा।
क्या कहता है लोकसभा का गणित
लोकसभा में दो तिहाई बहुमत नहीं होने के बाद भी सरकार की राह आसान है, क्योंकि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने बिल को समर्थन देने की बात कही है। लोकसभा में कुल 543 सीटें हैं, बिल पास करवाने के लिए 349 वोटों की जरूरत है। एनडीए के पास लोकसभा में 303 सांसद हैं, इसमें कांग्रेस के 45 और आम आदमी पार्टी के 4 सांसदों को जोड़ दें तो ये आंकड़ा 352 पर पहुंच जाता है।
राज्यसभा में फंस सकता है संशोधन बिल
राज्यसभा में सरकार को दो तिहाई बहुमत पास करवाना थोड़ा मुश्किल है। राज्यसभा में कुल सीटें 244 हैं। बिल पास करवाने के लिए जरूरी नंबर 163 है। राज्यसभा में एनडीए के पास 92 सीटें हैं, कांग्रेस की 50 और ‘आप’ की 3 सीटें जोड़ लें तो यह नंबर सिर्फ 145 तक ही पहुंचता है। राज्यसभा में 18 सीटें कम पड़ रही हैं। हालांकि इस लेकर जिस तरह से विपक्ष के बयान सामने आ रहे हैं उससे ये संभावना है कि यहां भी ये बिल पास हो सकता है।
चुनावों में कितना असर डालता है सामान्य वर्ग
लोकसभा चुनाव के मद्देनजर भाजपा की नजर सामान्य वर्ग के वोट बैंक पर है। एससी-एसटी एक्ट और दलित आंदोलन के बाद माना जा रहा था कि यह वर्ग भाजपा से नाराज है। ऐसे में यह देखना जरूरी है कि सामान्य वर्ग चुनावी गणित में कितना असर डालता है।
2007 में कराए गए एक सर्वे के मुताबिक, देश की हिंदू आबादी में पिछड़े वर्ग की संख्या 41 फीसदी और सामान्य वर्ग की संख्या 30 प्रतिशत है। 2014 के एक अनुमान के मुताबिक, 125 लोकसभा सीटें ऐसी हैं, जहां हर जातिगत समीकरणों पर सामान्य वर्ग के उम्मीदवार भारी पड़ते हैं और जीतते हैं।
उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, दिल्ली, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, हिमाचल, उत्तराखंड और राजस्थान में सामान्य वर्ग की जातियों का असर वोट बैंक पर दिखता है। अब भी देश में 55 प्रतिशत वोटर उम्मीदवार की जाति देखकर वोट करते हैं। 2004 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को सामान्य वर्ग के 35.3 फीसदी और कांग्रेस को 25.5 फीसदी वोट मिले थे। 2014 में भाजपा के पक्ष में सबसे ज्यादा 47.8 फीसदी सामान्य वर्ग के वोट पड़े थे। वहीं, कांग्रेस को महज 13.8 प्रतिशत वोट मिले थे, जिसका असर लोकसभा की सीटों पर दिखा।
राज्यवार सामान्य वर्ग का प्रतिशत
उत्तर प्रदेश- 10 फीसदी
बिहार- 11.60 फीसदी
मध्य प्रदेश- 15.00 फीसदी
राजस्थान- 18.00 फीसदी
छत्तीसगढ़- 8.00 फीसदी
महाराष्ट्र- 15.90 फीसदी
गुजरात- 27.53 फीसदी
कर्नाटक- 17.00 फीसदी
बिहार- 11.60 फीसदी
मध्य प्रदेश- 15.00 फीसदी
राजस्थान- 18.00 फीसदी
छत्तीसगढ़- 8.00 फीसदी
महाराष्ट्र- 15.90 फीसदी
गुजरात- 27.53 फीसदी
कर्नाटक- 17.00 फीसदी
14 राज्यों की विधानसभा की मंजूरी भी जरूरी
अगर मोदी सरकार ने संसद के दोनों सदनों से विधेयक पास करा भी लिया, तो उसे इस विधेयक पर 14 राज्यों की विधानसभाओं की मंजूरी लेनी होगी। अगर इस विधेयक को देश के 14 राज्यों की विधानसभाओं ने मंजूरी दे दी, तो इसे राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए भेजा जाएगा। राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद ही ये बिल कानून बन पाएगा।
अभी किसको कितना आरक्षण?
साल 1963 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आमतौर पर 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जा सकता है। पिछड़े वर्गों को तीन कैटेगरी अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में बांटा गया है।
अनुसूचित जाति (SC)- 15 %
अनुसूचित जनजाति (ST)- 7.5 %
अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC)- 27 %
कुल आरक्षण- 49.5 %
क्या कहता है संविधान?
संविधान के अनुसार, आरक्षण का पैमाना सामाजिक असमानता है और किसी की आय और संपत्ति के आधार पर आरक्षण नहीं दिया जाता है। संविधान के अनुच्छेद 16(4) के अनुसार, आरक्षण किसी समूह को दिया जाता है और किसी व्यक्ति को नहीं। इस आधार पर पहले भी सुप्रीम कोर्ट कई बार आर्थिक आधार पर आरक्षण देने के फैसलों पर रोक लगा चुका है। अपने फैसलों में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जाना समानता के मूल अधिकार का उल्लंघन है।
ये है कैबिनेट का फैसला
लोकसभा चुनावों से पहले बड़ा कदम उठाते हुए केंद्रीय कैबिनेट ने सोमवार को आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लिए सरकारी नौकरियों एवं शिक्षा में 10% आरक्षण देने के फैसले को मंजूरी दे दी। कैबिनेट ने ईसाइयों व मुस्लिमों सहित 'अनारक्षित श्रेणी' के लोगों को नौकरियों व शिक्षा में 10% आरक्षण देने का फैसला लिया। इसका फायदा 8 लाख रुपये वार्षिक आय सीमा और करीब 5 एकड़ भूमि की जोत वाले गरीब सवर्णो को मिलेगा।
भाजपा के समर्थन का आधार मानी जाने वाली अगड़ी जातियों की लंबे समय से मांग थी कि उनके गरीब तबकों को भी आरक्षण दिया जाए। प्रस्तावित आरक्षण अनुसूचित जातियों (एससी), अनुसूचित जनजातियों (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्गों (ओबीसी) को मिल रहे आरक्षण की 50% सीमा के अतिरिक्त होगा यानी आर्थिक रूप से कमजोर तबकों के लिए आरक्षण लागू हो जाने पर यह आंकड़ा बढ़कर 60 फीसदी हो जाएगा।