नीतीश ने इस बात पर भी जोर दिया कि इसके लिए विपक्ष की राजनीतिक विमर्श की मौजूदा पटकथा को भी पूरी तरह बदला जाना जरूरी है। उनका कहना है कि सरकार की ओर से तय एजेंडे के ईद-गिर्द प्रतिक्रिया की राजनीति से बचते हुए विपक्ष को अपना एजेंडा सेट करना होगा।
2019 के लिए विपक्षी एकता के नीतीश के इस सुर का माकपा नेता सीताराम येचुरी और कांग्रेस नेता पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने भी समर्थन किया है। नीतीश कुमार ने हाल के दिनों में राजग और भाजपा के साथ उनकी कथित बढ़ रही नजदीकियों की अटकलों को भी पूरी तरह खारिज कर दिया।
राजधानी दिल्ली में पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम की पुस्तक ‘फियरलेस इन अपोजिशन’ के लोकार्पण के लिए हुई परिचर्चा में शिरकत करते हुए नीतीश ने यह बात कही। नीतीश ने कहा कि मौजूदा सत्ता के भय से डरने की बात करना बेमानी है और वह तो कतई किसी से नहीं डरते। उनका कहना था कि सरकार के सेट किए जा रहे एजेंडे के बीच विपक्ष की आवाज को सम्मान मिलना चाहिए। मगर इसके लिए जरूरी है कि विपक्ष के बीच अधिकतम एकता हो और इसके लिए वह विपक्ष की सभी पार्टियों से सार्वजनिक अपील करते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शासन के दौर में राजनीति शख्सियत केंद्रित होने और मुकाबले में विपक्ष का मजबूत चेहरा नहीं होने की चुनौती पर नीतीश ने कहा कि चेहरे से ज्यादा राजनीतिक विमर्श में चुनौती पेश करना अहम है। उन्होंने कहा कि सरकार के एजेंडे पर ही हम क्यों प्रतिक्रिया का विमर्श आगे बढ़ाएं? क्यों नहीं, राहुल गांधी विपक्ष का एजेंडा सेट करें और लोगों के बीच हम अपने मुद्दों के साथ जाएं और मौजूदा हालात को बदलें। नीतीश की बात का येचुरी ने समर्थन करते हुए कहा कि 1996 में भी 13 दिन की वाजपेयी सरकार बनी तो विपक्ष के लिए यह चुनौती थी मगर पहले देवेगौड़ा और फिर इंद्रकुमार गुजराल प्रधानमंत्री बने। यही सवाल नेहरू के निधन के समय भी उठा था मगर तब भी आशंकाएं निर्मूल साबित हुईं। येचुरी का मानना था कि एक सर्वमान्य नेता की अगुवाई में ही विपक्ष की गोलबंदी होगी ऐसा होना जरूरी नहीं क्योंकि हमारे लोकतंत्र में ‘शख्सियत’ अंतर्निहित नहीं है।
नीतीश ने विपक्षी एकता की आवाज तब बुलंद की जब चिदंबरम ने कहा कि मौजूदा सरकार के दौर में विरोध, असंतोष और प्रतिवाद के स्वरों को राष्ट्रवाद या देशद्रोह के नाम पर डराया जा रहा है। इसलिए जरूरी है कि सत्ता के इस डर का मुकाबला किया जाए। परिचर्चा में शामिल कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने भी इससे सहमति जाहिर करते हुए कहा कि एक राष्ट्र के रूप में हम भयमुक्त नहीं हैं। क्योंकि नौकरशाही से लेकर मीडिया तक कोई भी सरकार की नाराजगी का जोखिम मोल लेकर सच कहने का साहस नहीं कर रही। मगर नीतीश ने इन दोनों से असहमति जताते हुए कहा कि आपातकाल में जब उनके जैसे लोग नहीं डरे तो दिल्ली की सत्ता में आज जो बैठे हैं उनसे डरने का सवाल ही नहीं है और न हीं राष्ट्रवाद का उनसे कोई सर्टिफिकेट चाहिए।
इस लोकार्पण समारोह के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के साथ उत्तर प्रदेश चुनाव अभियान से ब्रेक लेकर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी पूरी बहस में गहरी दिलचस्पी दिखाते नजर आए।