न्यूज़ एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, इस मामले को लेकर आम आदमी पार्टी ने अपील की थी कि जब दिल्ली हाई कोर्ट ने नियुक्तियां ही रद्द कर दी तो अब आयोग को सुनवाई करने का ना कोई औचित्य है और न ही जरूरत। आयोग ने इस दलील और अपील को दरकिनार कर दिया है। अब इस मामले में राष्ट्रपति को भेजे जाने वाली राय के लिए सुनवाई होगी, जिसके बाद आयोग राष्ट्रपति को अपना मत भेजेगा।
गौरतलब है कि आम आदमी पार्टी ने 13 मार्च 2015 को अपने 21 विधायकों को संसदीय सचिव बनाया था। इसके बाद 19 जून को एडवोकेट प्रशांत पटेल ने राष्ट्रपति के पास इन सचिवों की सदस्यता रद्द करने के लिए आवेदन किया। राष्ट्रपति की ओर से 22 जून को यह शिकायत चुनाव आयोग में भेज दी गई, जिसमें कहा गया था कि यह ‘लाभ का पद’ है इसलिए ‘आप’ विधायकों की सदस्यता रद्द की जानी चाहिए। इससे पहले मई 2015 में चुनाव आयोग के पास एक जनहित याचिका भी डाली गई थी।
इस मामले को लेकर पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि विधायकों को संसदीय सचिव बनकर कोई ‘आर्थिक लाभ’ नहीं मिल रहा। इस मामले को रद्द करने के लिए ‘आप’ विधायकों ने चुनाव आयोग में याचिका डाली थी। वहीं, राष्ट्रपति ने दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार के संसदीय सचिव विधेयक को मंजूरी देने से इनकार कर दिया था। इस विधेयक में संसदीय सचिव के पद को लाभ के पद के दायरे से बाहर रखने का प्रावधान था।