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SC ने खारिज की फडणवीस की याचिका, नागपुर कोर्ट में चलता रहेगा आपराधिक मामलों को छुपाने का केस

सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेता देवेंद्र फडणवीस...
SC ने खारिज की फडणवीस की याचिका, नागपुर कोर्ट में चलता रहेगा आपराधिक मामलों को छुपाने का केस

सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेता देवेंद्र फडणवीस की पुर्नविचार याचिका को खारिज कर दिया है। मंगलवार को कोर्ट ने उनके खिलाफ 2014 के चुनावी हलफनामे में दो लंबित आपराधिक मामलों का खुलासा नहीं करने के लिए मुकदमा चलाने का निर्देश दिया है। जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने कहा कि पिछले साल के फैसले की समीक्षा करने का कोई आधार नहीं है। याचिका में पूर्व सीएम ने कोर्ट के पहले के आदेश को संशोधित करने की मांग की थी जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने याचिका पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था।

बीते साल कोर्ट ने  2014 के चुनावी हलफनामे में फडणवीस द्वारा अपने खिलाफ दो लंबित आपराधिक मामलों का खुलासा नहीं करने के लिए मुकदमा चलाने का निर्देश दिया था।

नागपुर की अदालत ने दी थी जमानत

इससे पहले 20 फरवरी को नागपुर की एक अदालत ने  अधिवक्ता सतीश उके द्वारा देवेंद्र फडणवीस के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने चुनावी हलफनामे के मामले में जमानत दे दी थी। उन्हें यह जमानत 15 हजार रुपए के निजी मुचलके पर दी गई थी। 2014 के चुनावी हलफनामे में उनके खिलाफ दो आपराधिक मामलों की जानकारी छिपाने का आरोप है जब उन्होंने दक्षिण-पश्चिम नागपुर निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ा।

हाई कोर्ट के पलटे थे आदेश

अधिवक्ता सतीश उके ने इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था जिसके बाद कोर्ट ने बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश को पलट दिया था और निचली अदालत को मामले की सुनवाई जारी रखने का निर्देश दिया। वकील उके ने आरोप लगाया था कि फडणवीस ने नामांकन के दौरान दिए गए शपथ पत्र में इन दोनों ही मामलों का जिक्र नहीं किया है। उके की याचिका पर निचली अदालत ने 4 नवंबर को भी नोटिस जारी किया था लेकिन हाईकोर्ट ने निचली अदालत के आदेश पर रोक लगा दी थी।

रद्द किए थे आदेश

बता दें, उस वक्त के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने पिछले साल एक अक्टूबर को अपने 2014 के चुनावी पत्रों में फडणवीस के खिलाफ आपराधिक मामलों को छिपाने के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया था।

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