दिल्ली के रामलीला मैदान का अपना अलग इतिहास रहा है। यहां होने वाले राजनीतिक और धार्मिक आयोजन इसे विशेष पहचान देते हैं। यह मैदान हर साल होने वाले रामलीला और रावण दहन का गवाह तो बनता ही है यह कई राजनीतिक परिवर्तनों का भी साक्षी रहा है। कुल मिलाकर कहें तो रामलीला मैदान देश के इतिहास के बदलने का गवाह रहा है।
बांग्लादेश निर्माण के बाद विजय रैली हो या लोकनायक नायक जयप्रकाश की सभा में लगा ‘सिंहासन खाली करो कि जनता आती है’ का नारा आज भी इसकी प्रासंगिकता को बढ़ाता है। बाद में अण्णा आंदोलन और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के शपथ ग्रहण का भी यह मैदान गवाह बना। मगर आज यह मैदान नाम बदलने के प्रस्ताव को लेकर चर्चा में है। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर इस मैदान का नाम रखे जाने की बात उठी है। अटलजी ने इमरजेंसी के बाद यहां अपना ऐतिहासिक भाषण भी दिया था। जानिए क्यों विख्यात है रामलीला मैदान-
यहां हर साल होता है रावण दहन, पहुंचते हैं प्रधानमंत्री
रामलीला मैदान हर साल उस समय चर्चा में आता है जब दशहरे के मौके पर रामलीला का मंचन होता है और उसके बाद रावण दहन होता है। रावण दहन के मौके पर देश के प्रधानमंत्री यहां पहुंचते हैं और राम की आरती करने के बाद रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतले को आग के हवाले करते हैं। अजमेरी गेट और तुर्कमान गेट के बीच लगभा 10 एकड़ क्षेत्रफल में फैले इस मैदान में एक लाख लोग खड़े हो सकते हैं पर पुलिस के मुताबिक यहां सिर्फ 25 से 30 हजार लोगों की क्षमता है। इस मैदान को अंग्रेजों ने 1883 में ब्रिटिश सैनिकों के शिविर के लिए तैयार करवाया था। मगर बाद में पुरानी दिल्ली के कई संगठनों ने इस मैदान में रामलीलाओं का आयोजन करना शुरु कर दिया, जिसके चलते इसकी पहचान रामलीला मैदान के रूप में हो गई।
इमरजेंसी के बाद अटलजी का भाषण
1977 में देश से इमरजेंसी खत्म हो चुकी थी। इसके बाद यहां एक सभा का आयोजन किया गया था। सभा में जुटे लोग अटल बिहारी वाजपेयी को सुनने के लिए जुटे थे। हर ओर से उनके जिंदाबाद का नारा लग रहा था। ऐसे में वाजपेयी बोलने के लिए खड़े होते हैं और भीड़ को शांत रहने का इशारा करते हैं। इसके बाद अपने खास अंदाज में थोड़ी देर शांत रहने के बाद कहा-.'बाद मुद्दत मिले हैं दीवाने । इसके बाद वे फिर से शांत हो गए और अपनी आंखें मूंद ली। पूरे वातावरण में जिंदाबाद का नारा गूंजायमान हो रहा था। इसके बाद वाजपेयी ने आंखें खोली और भीड़ को शांत रहने का इशारा किया और कहा, 'कहने सुनने को बहुत हैं अफसाने।भीड़ फिर से नारे लगाने लगी.। तब वाजपेयी ने कहा, 'खुली हवा में जरा सांस तो ले लें, कब तक रहेगी आजादी भला कौन जाने।'
यहीं मना था पाक से युद्ध की जीत का जश्न
1971 में पाकिस्तान के खिलाफ हुई जंग में भारत ने जीत हासिल की थी। इतना ही नहीं इस युद्ध में भारत के पाकिस्तान के दो टुकड़े भी करवा दिए थे और बांग्लादेश नाम के एक नए देश का जन्म हुआ। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में पाकिस्तान से युद्ध की जीत का जश्न इसी मैदान पर मनाया था। यहां भारी संख्या में आकर लोगों ने इंदिरा गांधी को समर्थन दिया था।
गांधी, नेहरू और पटेल ने भी किया था यहां अंग्रेजों का विरोध
आजादी की लड़ाई के दौरान महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, सरदार पटेल और दूसरे नेताओं के लिए विरोध जताने का ये सबसे पसंदीदा मैदान बन गया था। इसी मैदान पर मोहम्मद अली जिन्ना से जवाहर लाल नेहरू तक क्रांति की शुरुआत करते रहे हैं। कहा तो ये भी जाता है कि यही वो मैदान है जहां 1945 में हुई एक रैली में भीड़ ने जिन्ना को मौलाना की उपाधि दे दी थी। लेकिन मोहम्मद अली जिन्ना ने मौलाना की इस उपाधि पर भीड़ से नाराजगी जताई और कहा कि वो राजनीतिक नेता है न कि धार्मिक मौलाना। दिसंबर 1952 में रामलीला मैदान में जम्मू-कश्मीर के मुद्दे को लेकर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने सत्याग्रह किया था। इससे सरकार हिल गई थी। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने 1956 और 57 में मैदान में विशाल जनसभाए की।
यहीं गूंजा था 'सिंहासन खाली करो कि जनता आती है' का नारा
1975 में लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने इसी मैदान से कांग्रेस सरकार के खिलाफ हुंकार भरी थी। ओजस्वी कवि रामधारी सिंह दिनकर की प्रसिद्ध पंक्तिंया 'सिंहासन खाली करो कि जनता आती है नारा' यहीं गूंजा था। यह नारा इमरजेंसी के खिलाफ संघर्ष का प्रतीक बन गया था।
पंडित नेहरू की मौजूदगी में लता ने यहीं पेश किया था कार्यक्रम
26 जनवरी, 1963 में प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की उपस्थिति में स्वर साम्राज्ञी लता मंगेश्कर ने यहीं एक कार्यक्रम पेश किया। यह कार्यक्रम चीन के खिलाफ युद्ध में बलिदान देने वाले सैनिकों की याद में किया गया था। 1965 में पाकिस्तान के खिलाफ लड़ाई में तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने इसी मैदान पर एक विशाल जनसभा में जय जवान, जय किसान का नारा एक बार फिर दोहराया था। इससे पहले 28 जनवरी, 1961 को ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ ने रामलीला मैदान में ही एक बड़ी जनसभा को संबोधित किया था।
अण्णा, रामदेव का आंदोलन और केजरीवाल का शपथ ग्रहण
ये वही रामलीला मैदान है समाजसेवी अण्णा हजारे ने 2011 और 2018 में लोकपाल के गठन की मांग और भ्रष्टाचार के खिलाफ अनशन किया था। दोनों बार उनके आंदोलन ने देश के जनमानस को झकझोर कर रख दिया था। इसी आंदोलन की उपज अरविंद केजरीवाल भी हैं। पहले आंदोलन के बाद उन्होंने आम आदमी पार्टी का गठन किया और दिल्ली की सत्ता हासिल की। उन्होंने इस ऐतिहासिक मैदान में ही मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। इसके अलावा बाबा रामदेव ने काले धन और भ्रष्टाचार के खिलाफ अपना अनशन किया था लेकिन 5 जून 2011 उनके अनशन पर दिल्ली पुलिस ने लाठियां बरसा कर उन्हें वहां से हरिद्वार भेज दिया था।