मोदी सरकार ने लोकसभा चुनाव से पहले बड़ा दांव चला है। कैबिनेट ने सामान्य वर्ग को आर्थिक आधार पर दस फीसदी आरक्षण देने का फैसला किया है। आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग को सरकारी नौकरियों और शिक्षा में 10 फीसदी आरक्षण दिया जाएगा। माना जा रहा है कि एससी-एसटी एक्ट और दलित आंदोलन के बाद कथित तौर पर सामान्य भाजपा से नाराज था, जिसे साधने के लिए यह कदम उठाया गया है। लेकिन संविधान के वर्तमान नियमों के अनुसार आर्थिक आधार पर आरक्षण देने की राह काफी मुश्किल है।
वैसे यह पहली बार नहीं है जब किसी सरकार ने सामान्य वर्ग को आरक्षण देने की पहल की हो। इससे पहले केंद्र की नरसिम्हा राव सरकार और कई राज्य सरकारें ऐसा कर चुकी हैं लेकिन कोर्ट की तरफ से इनमें रोक लगा दी गई।
नरसिम्हा राव सरकार
1991 में मंडल कमीशन रिपोर्ट लागू होने के ठीक बाद पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया था और 10 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की थी हालांकि 1992 में कोर्ट ने उसे निरस्त कर दिया था।
गुजरात सरकार
अप्रैल, 2016 में गुजरात सरकार ने सामान्य वर्ग में आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने की घोषणा की थी। सरकार के इस फैसले के अनुसार 6 लाख रुपये से कम वार्षिक आय वाले परिवारों को इस आरक्षण के अधीन लाने की बात कही गई थी। हालांकि अगस्त 2016 में हाईकोर्ट ने इसे गैरकानूनी और असंवैधानिक बताया था।
राजस्थान सरकार
सितंबर 2015 में राजस्थान सरकार ने अनारक्षित वर्ग के आर्थिक पिछड़ों को शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में 14 फीसदी आरक्षण देने का वादा किया था। हालांकि दिसंबर, 2016 में राजस्थान हाईकोर्ट ने इस आरक्षण बिल को रद्द कर दिया था। ऐसा ही हरियाणा में भी हुआ था।
बिहार सरकार
1978 में बिहार में पिछड़ों को 27 प्रतिशत आरक्षण देने के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर ने आर्थिक आधार पर सवर्णों को तीन फीसदी आरक्षण दिया था। हालांकि बाद में कोर्ट ने इस व्यवस्था को खत्म कर दिया।
मोदी सरकार के सामने क्या है चुनौती?
मोदी सरकार के सामने सामान्य वर्ग को 10 फीसदी आरक्षण लागू करने में कई चुनौतियां हैं, जिन्हें संविधान में संशोधन कर दूर करना होगा। पहली यह कि सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत तय कर रखी है और संविधान में आर्थिक आधार पर आरक्षण देने का प्रावधान नहीं है। दूसरा यह है कि संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में केवल सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े होने की बात है।
हालांकि संविधान में कोई परिवर्तन करने के लिए भी सरकार के लिए दोनों सदनों से बहुमत प्राप्त करना भी मुश्किल का काम होगा। माना जा रहा है कि सरकार संसद में आर्थिक आधार पर आरक्षण की नई श्रेणी के प्रावधान वाला विधेयक ला सकती है।
अभी किसको कितना आरक्षण?
साल 1963 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आमतौर पर 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जा सकता है। पिछड़े वर्गों को तीन कैटेगरी अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में बांटा गया है।
अनुसूचित जाति (SC)- 15 %
अनुसूचित जनजाति (ST)- 7.5 %
अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC)- 27 %
कुल आरक्षण- 49.5 %
क्या कहता है संविधान?
संविधान के अनुसार, आरक्षण का पैमाना सामाजिक असमानता है और किसी की आय और संपत्ति के आधार पर आरक्षण नहीं दिया जाता है। संविधान के अनुच्छेद 16(4) के अनुसार, आरक्षण किसी समूह को दिया जाता है और किसी व्यक्ति को नहीं। इस आधार पर पहले भी सुप्रीम कोर्ट कई बार आर्थिक आधार पर आरक्षण देने के फैसलों पर रोक लगा चुका है। अपने फैसलों में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जाना समानता के मूल अधिकार का उल्लंघन है।