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पूर्व नौकरशाहों का पीएम को पत्र, कोरोना संकट के दौर में रोकें सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट

देश में अनेक शीर्ष पदों पर रह चुके 60 पूर्व नौकरशाहों ने कहा है कि लुटियंस जोन स्थित सेंट्रल विस्टा के...
पूर्व नौकरशाहों का पीएम को पत्र, कोरोना संकट के दौर में रोकें सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट

देश में अनेक शीर्ष पदों पर रह चुके 60 पूर्व नौकरशाहों ने कहा है कि लुटियंस जोन स्थित सेंट्रल विस्टा के रिडवलपमेंट प्रोजेक्ट को तुरंत रोका जाना चाहिए। इस प्रोजेक्ट में तमाम खामियां होने के अलावा आज जब पूरा देश कोरोना वायरस के संकट से जूझ रहा है, ऐसे में 20 हजार करोड़ रुपये के इस प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने का कोई औचित्य नहीं है। आज कोरोना संकट से आम लोगों को बचाने के लिए यह पैसा स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च किया जा सकता है। पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में आइएएस, आइपीएस सहित अखिल भारतीय सेवाओं के पूर्व अधिकारी और अन्य केंद्रीय अधिकारी शामिल हैं।

संसद भवन के पुनर्विकास पर अनेक आपत्तियां

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खुला पत्र लिखकर दिल्ली के लुटियंस जोन स्थित सेंट्रल विस्टा के रिडवलपमेंट प्रोजेक्ट पर गहती चिंता जताई है। दुनिया की सबसे बड़े लोकतंत्र की चुनी सरकार का मुख्य केंद्र इसी सेंट्रल विस्टा में होता है। पूर्व अधिकारियों ने पत्र में कहा है कि सेंट्रल विस्टा की तमाम इमारतों में पहली इमारत संसद भवन के पुनर्विकास के लिए जिस तरह से क्रियान्वयन किया गया, उस पर जनता की ओर से कड़ा विरोध किया गया। इसके लिए चयन प्रक्रिया पर अनेक आपत्तियां उठीं। संयुक्त पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले 60 अधिकारियों में केंद्र सरकार के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग की पूर्व सचिव अनिता अग्निहोत्री, डीडीए के पूर्व वाइस चेयरमैन वी. एस. ऐलावादी, नेशनल क्राइन रिकॉर्ड्स ब्यूरो के पूर्व डीजी शफी आलम, सीबीआइनके पूर्व विशेष निदेशक के. सलीम अली और शिपिंग एंड ट्रांसपोर्ट मंत्रालय के पूर्व अतिरिक्त सचिव एस. पी. एम्ब्रोसे भी शामिल हैं।

गौरवशाली इतिहास से छेड़छाड़ होगी

शहरी विकास मंत्री हरदीप सिंह पुरी को भी भेजे पत्र में पूर्व अधिकारियों ने कहा है कि ब्रिटिश राज में बने सेंट्रल विस्टा के साथ गौरवशाली इतिहास जुड़ा है। इसमें कोई भी बदलाव इसके इतिहास के साथ छेड़छाड़ होगी। दिल्ली के यूनीफाइड बिल्डिंग बायलॉज के तहत इसे ग्रेड-1 का हेरिटेज स्टेटस मिला है। सरकार की पुनर्विकास परियोजना से इसे नुकसान हो सकता है।

पत्र में कहा गया है कि पुनर्विकास की परियोजना से पर्यावरण को भी नुकसान होने की आशंका है। दिल्ली सघन आबादी वाला शहर है। इसके लिए सेंट्रल विस्टा, रिज और यमुना का क्षेत्र फेफड़ों का काम करता है। बहुमंजिला बढ़ने से पर्यावरण को नुकसान होगा और प्रदूषण बढ़ेगा।

आम लोगों से छिन जाएगी खुली हवा

सेंट्रल विस्टी समूचे दिल्ली शहर के लिए मनोरंजन क्षेत्र का भी काम करता है। पूरी दिल्ली के लोग खुली हवा में सांस लेने के लिए यहां आते हैं और गर्मियों में देर रात तक घूमते रहते हैं। सरकार की परियोजना से यह सब कुछ छिन जाएगा। इस बात का ख्याल रखा जाना चाहिए गेट बंद सरकारी इमारतों की हरियाली सार्वजनिक स्थलों की तरह नहीं होंगी, जहां आम नागरिक जा सकें। खुले स्थानों पर वे मनोरंजन कर सकते हैं और प्रदर्शन भी कर सकते हैं।

समुचित अध्ययन नहीं किया गया

लेकिन सरकार के पास विशाल सार्वजनिक जमीनें हैं। लोकतांत्रिक देश में गलत धारणाओं के आधार पर बदलाव नहीं किया जाना चाहिए। पूर्व अधिकारियों का कहना है कि इस परियोजना की अवधारणा ही गलत है। पर्यावरण और तकनीकी मानकों पर अध्ययन करके आवश्यकता के अनुसार परियोजना बनाने के बजाय अगर मीडिया रिपोर्ट पर भरोसा किया जाए तो एक अंधविश्वास के आधार पर परियोजना तैयार की गई कि संसद भवन अभागी है। यही नहीं, दिल्ली की वास्तुशिल्प पर एक सरकार और उसके नेताओं की छाप मिटाने के लिए यह प्रोजेक्ट तैयार किया गया।

जल्दबाजी में आर्किटेक्ट फर्म का चयन

पूर्व अधिकारियों ने परियोजना को लेकर सरकार की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि इस परियोजना को लेकर संसद में कोई बहस नहीं की गई। सार्वजनिक तौर पर कोई परामर्श नहीं किया गया। जल्दबाजी में सरकार ने आर्किटेक्ट फर्म का चयन रिकॉर्ड समय में कर लिया जिसे कोई भी बदलाव करने की पूरी छूट है और मंत्रालयों को उसकी आवश्यकता के अनुरूप फैसले करने को कहा गया है। इस परियोजना की डिजाइन वगैरह को जनता के सामने नहीं रखा गया है। इसके कारण कई सवाल उठना स्वाभाविक है। सरकार इनका कोई जवाब नहीं दे रही है।

मौजूदा संसद भवन की नींव कमजोर होगी

सेंट्रल विस्टा परियोजना के अनुसार मौजूदा संसद भवन के निकट नया संसद भवन बनाने का प्रस्ताव है। जबकि मौजूदा संसद का पुनरुद्धार किए जाने की जरूरत है। कहा जा रहा है कि आबादी बढ़ने के साथ ही ज्यादा सासंदों को बिठाने के लिए बड़ी इमारत की जरूरत है जबकि आर्थिक सर्वे के अनुमान के अनुसार 2061 के बाद देश की आबादी ही घटने लगेगी। मौजूदा संसद भवन के निकट नया भवन बनने से पुरानी इमारत की नींव कमजोर हो सकती है। नए संसद भवन के लिए डीडीए ने दिखावटी सुनवाई करके मंजूरी दे दी जबकि जनता की ओर से बड़ी संख्या में आपत्तियां की गई थीं। मौजूदा संसद में ही बदलाव करके इसे जरूरत के अनुसार ढाला जा सकता है। दुनिया भर में हेरिटेज बिल्डिंग के मामले में ऐसी ही होता है। भारतीय संसद भवन के मामले में भी ऐसी ही किया जाना चाहिए।

आबादी का घनत्व घटने के बजाय बढ़ेगा

सेंट्रल विस्टा रिडवलपमेंट प्रोजेक्ट में एक ही स्थान पर सभी कार्यालय आ जाएंगे जो दिल्ली से मास्टर प्लान के सिद्धांत के खिलाफ है। दिल्ली का घनत्व कम करने की आवश्यकता है, न कि बढ़ाने की। यद्यपि इस प्रोजेक्ट को पूरी गोपनीयता के साथ आगे बढ़ाया गया है। माना जा रहा है कि 1960 के दशक के चार भवन नेशनल म्यूजिम, विज्ञान भवन, हाल में ही बने आइजीएनसीए और विदेश मंत्रालय के भवन को गिराए जाने की योजना है।

काउंसिल ऑफ आर्किटेक्चर, इंस्टीट्यूट ऑफ आर्किटेक्ट्स, इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज, इंस्टीट्यूट ऑफ अर्बन डिजाइनर्स इंडिया और इंडियन सोयायटी ऑफ लैंड स्केप आर्किटेक्ट्स ने कई पत्र लिखकर उपयोगी सुझाव दिए लेकिन सरकार की ओर से इन पर कोई ध्यान नहीं दिया गया।

प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाना गैरजिम्मेदाराना

यह बेहद दुखद है कि पर्यावरण आंकलन समिति जैसी सुपरवायजरी एजेंसियों ने जल्दबाजी में मंजूरियां दे दीं और सेंट्रल विस्टा कमेटी उसी जल्दी में प्रोजेक्ट को आगे बढ़ा रही है। कोविड-19 की वजह से कमेटी के कई प्राइवेट मेंबर बैठकों में शामिल नहीं हो पा रहे हैं। लेकिन इसे जल्दी में आगे बढ़ाआ जा रहा है। यह मामला अदालत में विचाराधीन होने के बाद भी सरकार ने प्रक्रिया नहीं रोकी है। पूर्व नौकरशाहों ने कहा कि कोविड-19 के दौर में जब स्वास्थ्य प्रणाली मजबूत करने के लिए पैसा की ज्यादा आवश्यकता है, ऐसे में कम से कम 20 हजार करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाना गैरजिम्मेदाराना काम है। इस परियोजना को तत्काल रोका जाना चाहिए।

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