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बिलकिस मामला: जनहित याचिकाकर्ताओं के ‘हस्तक्षेप के अधिकार’ पर आज दलीलें सुनेगा सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार और उसके...
बिलकिस मामला: जनहित याचिकाकर्ताओं के ‘हस्तक्षेप के अधिकार’ पर आज दलीलें सुनेगा सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार और उसके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में जनहित याचिका दायर करने वाले कई लोगों के ‘हस्तक्षेप के अधिकार (लोकस स्टैंडाई)’ पर नौ अगस्त को यानी आज दलीलें सुनेगा।

बिलकिस बानो की ओर से दायर याचिका के अलावा, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा)की नेता सुभाषिनी अली, स्वतंत्र पत्रकार रेवती लाल और लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूप रेखा वर्मा सहित कई अन्य ने जनहित याचिका दायर करके दोषियों की सजा में छूट को चुनौती दी है। तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) सांसद महुआ मोइत्रा ने भी सजा में छूट के खिलाफ जनहित याचिका दायर की है।

दोषियों में से एक की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ को बताया कि इस प्रकार के मामलों में जब एक बार पीड़ित खुद अदालत पहुंच जाता है, तो दूसरों के पास हस्तक्षेप करने यानी अदालत में मुकदमा दायर करने का अधिकार नहीं हो सकता है।

पीठ ने कहा, ‘‘हमने संबंधित पक्षों के वकीलों को सुना है। अन्य रिट याचिकाएं जनहित याचिकाओं की प्रकृति की हैं। जनहित याचिकाओं की विचारणीयता के सवाल पर एक प्रारंभिक आपत्ति दर्ज कराई गई है। प्रारंभिक आपत्तियों पर सुनवाई के लिए मामले को कल भोजनावकाश के बाद तीन बजे सूचीबद्ध किया जाए।’’

एक जनहित याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने कहा कि वह मामले के तथ्यों पर बहस नहीं करेंगी, बल्कि पूरी तरह से कानूनी पक्ष पर दलील रखेंगी।

शीर्ष अदालत को सोमवार को सुनवाई के दौरान बताया गया था कि बिलकिस बानो सामूहिक बलात्कार मामले और उसके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के दोषियों के सिर पर मुसलमानों को शिकार बनाने और उन्हें मारने के लिए “खून सवार” था। इस मामले के सभी 11 दोषियों की सजा में पिछले साल छूट दे दी गई थी, जिसे न्यायालय में चुनौती दी गयी है और इसी के तहत सोमवार को अंतिम सुनवाई शुरू हुई थी।

शीर्ष अदालत ने 18 अप्रैल को 11 दोषियों को दी गई छूट पर गुजरात सरकार से सवाल किया था और कहा था कि नरमी दिखाने से पहले अपराध की गंभीरता पर विचार किया जाना चाहिए था। न्यायालय ने आश्चर्य भी जताया था कि क्या इस मामले में विवेक का इस्तेमाल किया गया था। ये सभी दोषी 15 अगस्त, 2022 को जेल से रिहा कर दिये गये थे।

शीर्ष अदालत ने दोषियों की समय से पहले रिहाई का कारण पूछते हुए जेल में बंद रहने के दौरान उन्हें बार-बार दी जाने वाली पैरोल पर भी सवाल उठाया था।

बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार और उसके परिवार के सदस्यों की हत्या को ‘भयावह’ कृत्य करार देते हुए शीर्ष अदालत ने 27 मार्च को गुजरात सरकार से पूछा था कि क्या दोषियों को सजा में छूट देते समय हत्या के अन्य मामलों की तरह समान मानक इस्तेमाल किये गये थे।

इस घटना के वक्त बिलकिस बानो 21 साल की थी और पांच महीने की गर्भवती भी थी। उसकी तीन साल की बेटी भी दंगों में मारे गए उसके परिवार के सात सदस्यों में से एक थी।

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