शुक्रवार को राफेल मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार को क्लीनचिट देते हुए कहा है कि डील पर कोई संदेह नहीं है। इसके साथ ही कोर्ट ने डील को लेकर दायर की गई सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया है।
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस केएम जोसेफ की पीठ ने कहा कि प्राइस और ऑफसेट पार्टनर की समीक्षा करना कोर्ट का काम नहीं। कोर्ट ने कहा कि करोड़ों डॉलर की इस डील के फैसले पर संदेह करने का कोई कारण नहीं है। भारतीय वायुसेना को चौथी और पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमानों की जरूरत है। देश लड़ाकू विमानों के बगैर नहीं रह सकता है।
कोर्ट ने कहा कि सितंबर 2016 में जब राफेल सौदे को अंतिम रूप दिया गया था, उस वक्त किसी ने खरीद पर सवाल नहीं उठाया था। हमें फ्रांस से 36 राफेल विमानों की खरीद की प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नजर नहीं आता है। फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति के बयान के बाद याचिकाएं दायर की गई जो विचारणीय नहीं हैं।
'नही मिला निजी फर्म को लाभ पहुंचाने का सबूत'
ऑफसेट पार्टनर के चयन पर सवाल उठता रहा है कि रिलायंस की इस कंपनी को गलत ठेका दिया गया जबकि उसे कोई अनुभव नहीं था और उसे व्यावसायिक तौर पर फायदा फहुंचाया गया। इस पर बेंच ने कहा कि किसी भी निजी फर्म को व्यावसायिक लाभ पहुंचाने का कोई ठोस सबूत नहीं मिला है।
'कीमत तय करना कोर्ट का काम नहीं'
कोर्ट ने कहा कि राफेल लड़ाकू विमानों की कीमत पर निर्णय लेना उसका काम नहीं है। इससे पहले सुनवाई में केंद्र सरकार ने कीमत बताने से इनकार करते हुए दलील थी कि इसे सार्वजनिक करने से देश के दुश्मनों को लाभ मिल सकता है। तब सरकार के इस जवाब पर कोर्ट ने कहा था कि राफेल विमान की कीमतों के बारे में तभी चर्चा हो सकेगी जब वह फैसला कर लेगा कि क्या इन्हें सार्वजनिक किया जाना चाहिए।
वहीं, कांग्रेस भी कीमत पर सवाल उठाती रही है कि सरकार प्रत्येक विमान 1,670 करोड़ रुपये में खरीद रही है जबकि यूपीए सरकार ने प्रति विमान 526 करोड़ रुपये कीमत तय की थी। साथ ही सरकारी एयरोस्पेस कंपनी एचएएल को डील में शामिल नहीं करने को लेकर सवाल भी उठाया था।
याचिकाओं में लगाया था अनियमितताओं का आरोप
सुप्रीम कोर्ट में राफेल डील को लेकर दायर याचिकाओं में कोर्ट की निगरानी में सीबीआई जांच कराने की मांग की गई थी। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की बेंच ने याचिकाओं पर 14 नवंबर को सुनवाई की थी और फैसला सुरक्षित रख लिया था।
कथित अनियमितताओं का आरोप लगाते हुए सबसे पहले एडवोकेट मनोहरलाल शर्मा ने जनहित याचिका दायर की थी। इसके बाद एडवोकेट विनीत ढांडा, आप नेता संजय सिंह ने ऐसी मांग करते हुए अर्जी डाली थी। इसके बाद दो पूर्व मंत्रियों यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी के साथ एडवोकेट प्रशांत भूषण ने भी एक अलग याचिका दायर की।