उत्तराखंड की राजनीति में उथल-पुथल के बीच मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने राज्यपाल को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने की पेशकश की है। तीरथ सिंह रावत ने इस साल की शुरुआत में त्रिवेंद्र सिंह रावत की जगह ली थी। यह दूसरी बार है जब उत्तराखंड में एक साल में मुख्यमंत्री का बदलाव देखने को मिलेगा। तीरथ सिंह रावत ने कथित तौर पर राज्य के राज्यपाल से मिलने का समय मांगा है।
उन्होंने इस्तीफे में जनप्रतिधि कानून का हवाला देते हुए कहा है कि वो अगले 6 महीने में चुनकर दोबारा नहीं आ सकते। जेपी नड्डा को भेजे अपने पत्र में तीरथ सिंह रावत ने कहा, "मैं 6 महीने के अंदर दोबारा नहीं चुना जा सकता। ये एक संवैधानिक बाध्यता है इसलिए अब पार्टी के सामने मैं अब कोई संकट नहीं पैदा करना चाहता और मैं अपने पद से इस्ताफा दे रहा हूं। आप मेरी जगह किसी नए नेता का चुनाव कर लें।"
रावत को बुधवार को दिल्ली में अचानक बुलाए जाने से राज्य में बदलाव की अटकलें तेज हो गईं, जहां उन्होंने पार्टी अध्यक्ष जे पी नड्डा और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह सहित भाजपा के शीर्ष नेताओं से मुलाकात की। उन्हें गुरुवार को यहां लौटना था, लेकिन दिल्ली में रूक गए।
शुक्रवार को नड्डा से मुलाकात के बाद रावत ने संवाददाताओं से कहा कि उपचुनाव कराना या न कराना चुनाव आयोग का विशेषाधिकार है और पार्टी उसी के मुताबिक आगे बढ़ेगी।
संविधान के अनुसार, पौड़ी गढ़वाल सांसद रावत ने 10 मार्च को सीएम के रूप में शपथ ली थी। उन्हें पद पर बने रहने के लिए 10 सितंबर से पहले राज्य विधानसभा का सदस्य बनना जरूरी था।
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 151ए चुनाव आयोग को संसद और राज्य विधानसभाओं में रिक्त पदों को भरने की तारीख से छह महीने के भीतर उपचुनाव के माध्यम से भरने का आदेश देती है, बशर्ते कि नए सदस्य का शेष कार्यकाल एक वर्ष या अधिक हो।