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क्या मोदी के मंत्री प्रताप सारंगी ग्राहम स्टेन्स की हत्या में शामिल थे?

उन्हें कुछ लोग ‘ओडिशा का मोदी’ कहकर उनकी जीवनशैली की तारीफ कर रहे हैं। इसी दौरान अन्य लोग एक जघन्य...
क्या मोदी के मंत्री प्रताप सारंगी ग्राहम स्टेन्स की हत्या में शामिल थे?

उन्हें कुछ लोग ‘ओडिशा का मोदी’ कहकर उनकी जीवनशैली की तारीफ कर रहे हैं। इसी दौरान अन्य लोग एक जघन्य हत्या में उन्हें किसी भागीदार से कम नहीं मान रहे हैं, जिसने 1999 में देश को हिला दिया था।

ओडिशा के नवनिर्वाचित सांसद प्रताप सारंगी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केंद्रीय मंत्री के रूप में शामिल किया जिसके बाद बहस और विवादास्पद राय, उस विभाजनकारी समय की मिसाल है, जिसमें हम रह रहे हैं।

सारंगी को लेकर वैचारिक विभाजन गहरा है और सोशल मीडिया की वजह से तीखे आरोप-प्रत्यारोप से भरा हुआ है।

लेकिन सच्चाई क्या है? सारंगी संत हैं या शैतान?

पहली बार भाजपा सांसद चुने गए सारंगी, जो पहले ओडिशा विधानसभा में विधायक थे, एक साधारण जीवन जीने के लिए जाने जाते हैं और अक्सर सड़क के किनारे नहाते या साइकिल चलाते हुए फोटो खिंचवाते हैं। लम्बी दाढ़ी और बेतरतीब बालों की वजह से कई लोगों ने उन्हें एक धर्मोपदेशक माना है।

लेकिन जब से वह मंत्री बने हैं, एक बड़ा तबका यह आरोप लगाने के लिए सामने आया है कि उनकी कथित सादगी के पीछे एक भयावह अतीत छिपा था। वे कहते हैं कि उन्होंने ओडिशा में आरएसएस से जुड़े बजरंग दल का नेतृत्व तब किया था, जब 1999 में ओडिशा के मयूरभंज जिले के मनोहरपुर में एक घातक भीड़ द्वारा ऑस्ट्रेलियाई मिशनरी ग्राहम स्टेन्स को उनके दो बच्चों फिलिप और टिमोथी के साथ जिंदा जला दिया गया था। लोगों का स्पष्ट रूप से मानना है कि भीड़ का संबंध बजरंग दल से था और इसलिए सारंगी भी हत्या में भागीदार थे।

मैं सारंगी को नहीं जानता। लेकिन ओडिशा में सालों बिताने और यहां तक कि स्टेन्स परिवार की हत्याओं पर बड़े स्तर पर रिपोर्टिंग करने के बाद, मुझे शायद सारंगी को लेकर दिए जा रहे दोनों पक्षों के शातिर तर्कों से थोड़ा ज्यादा पता है।

ओडिशा के ग्रामीण भीतरी इलाकों में धार्मिक तनाव के कारण स्टेन्स मारे गए। जबकि स्टेन्स और उनकी पत्नी ग्लेडिस कुष्ठ रोगियों के लिए एक अस्पताल चलाते थे और गरीबों के बीच उन्हें बड़ी संख्या में लोग मानते थे। कई हिंदुओं को शक था कि वे आदिवासियों को जहर दे रहे हैं और उनका धर्मांतरण कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश का मूल निवासी, दारा सिंह, उनमें से एक था। ओडिशा में बसने के बाद, उसने गाय तस्करी और ईसाई धर्म में परिवर्तन को रोकने के लिए काम किया। एक रात उसने एक गिरोह के साथ स्टेन्स पर हमला किया क्योंकि वे अपनी कार में खुले में सोते थे। तीनों की दर्दनाक मौत हो गई।

क्या दारा बजरंग दल से जुड़ा था?

हालांकि पहले दिन से ही भगवा संगठन से उसके संभावित संबंधों को लेकर कयास लगाए जाते रहे हैं, लेकिन अब तक कोई ठोस सबूत नहीं मिला है। वास्तव में दारा, जो अब हत्याओं के दोषी होने के बाद जेल में आजीवन कारावास की सजा काट रहा है, ने अपने मुझे दिए एकमात्र आधिकारिक इंटरव्यू में बजरंग दल से किसी भी लिंक से इनकार किया था।

इंडिया टुडे पत्रिका में प्रकाशित उस इंटरव्यू में, दारा ने बजरंग दल या किसी अन्य संगठन का सदस्य होने से इनकार करते हुए जोर देकर कहा कि वह अपने धर्म की रक्षा करने के लिए अपने दम पर ये सब कर रहा था। हालांकि, उसने कहा कि एक नेता की तरफ वह देखता है, जिसका नाम बाल ठाकरे है और जो ‘सच्चाई’ बोलता है।

इसलिए दारा ने मुझे जो बताया उसके अनुसार, मैं उसे एक स्वतंत्र धार्मिक कट्टरपंथी कहूंगा।

तो इससे सारंगी और उनकी कथित भागीदारी के बारे में क्या कहा जा सकता है? मैं पूरे भरोसे से नहीं कह सकता। हालांकि उस समय हम आरएसएस, विहिप और बजरंग दल के बारे में बात करते थे कि वे ओडिशा के अंदरूनी इलाकों में अपना विस्तार कर रहे हैं, लेकिन कई जांचों के बाद भी हत्या में उनका सीधा हाथ होने की बात साबित नहीं हो सकी।

हालांकि इन हत्याओं से उपजे धार्मिक ध्रुवीकरण ने इन संगठनों को उस राज्य में आगे बढ़ने में मदद की जहां उनकी कम उपस्थिति थी। हत्याओं में बजरंग दल की भूमिका संदिग्ध थी। किसी भी अदालत ने कभी इसे दोषी नहीं पाया, लेकिन इसके शामिल होने की अटकलों को भी कभी खारिज नहीं किया गया। ये अटकलें अब ठीक बीस साल बाद सारंगी को सताने के लिए सामने आ गई हैं।

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