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मंत्री पद छिनने के बाद अब क्या बाबुल सुप्रियो राजनीति से भी लेंगे संन्यास?

केंद्र सरकार में मंत्री पद जाने के बाद क्या बाबुल सुप्रियो राजनीति से भी संन्यास लेंगे? इन दिनों...
मंत्री पद छिनने के बाद अब क्या बाबुल सुप्रियो राजनीति से भी लेंगे संन्यास?

केंद्र सरकार में मंत्री पद जाने के बाद क्या बाबुल सुप्रियो राजनीति से भी संन्यास लेंगे? इन दिनों पश्चिम बंगाल की राजनीति में इस बात की काफी चर्चा चल रही है। पिछले कुछ दिनों में प्रदेश पार्टी नेतृत्व के खिलाफ सोशल मीडिया पर उनके पोस्ट और उनके करीबी लोग कुछ इसी तरह के संकेत दे रहे हैं।

दिलीप घोष के साथ सोशल मीडिया पर तकरार

बाबुल अभी आसनसोल लोकसभा सीट से सांसद हैं। उनके करीबी लोगों का कहना है कि वैसी स्थिति आई तो सांसद पद छोड़ने से भी वे नहीं झिझकेंगे। पिछले दिनों प्रदेश भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष और बाबुल के बीच थोड़ी तकरार हुई थी।

लिखा था, मुझे इस्तीफा देने के लिए कहा गया

दरअसल, मंत्री पद छोड़ने के बाद बाबुल ने फेसबुक पर लिखा था कि उनसे इस्तीफा देने के लिए कहा गया था। यह भी लिखा कि अगर कहीं धुआं है तो आग भी होगी ही। इस पर दिलीप घोष ने कटाक्ष किया कि उन्होंने उनसे (बाबुल से) इस्तीफा देने को कहा ताकि किसी और को जिम्मेदारी दी जा सके। उन्होंने यह भी कहा कि सुप्रियो काफी सक्रिय मंत्री थे, लेकिन मुख्यमंत्री उन्हें बहुत भला-बुरा कहती थीं। अब के काफी राहत महसूस कर रहे होंगे।

ममता ने बाबुल के प्रति जताई थी सहानुभूति

जब बाबुल सुप्रियो और देवश्री चौधरी ने केंद्र में मंत्रिपरिषद के विस्तार से पहले मंत्री पद से इस्तीफा दिया, तब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने टिप्पणी की थी, “इन लोगों ने क्या गलती की?” इसके बाद यह चर्चा भी होने लगी कि क्या ममता और बाबुल के बीच दूरियां कम हो रही हैं।

आसनसोल से दो बार जीते, पर विधानसभा चुनाव हारे

राजनीति में बाबुल सुप्रियो का प्रवेश अचानक हुआ था। कहा जाता है कि एक फ्लाइट में उनके साथ बाबा रामदेव सफर कर रहे थे। तब बाबुल ने उन्हें भाजपा का टिकट दिलवाने का अनुरोध किया था। उन्हें आसनसोल से टिकट दिया गया। पांच साल मंत्री रहने के बाद पिछले लोकसभा चुनाव में और अधिक वोटों से आसनसोल से जीते तो उन्हें दोबारा मंत्री बनाया गया।

लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें टॉलीगंज से लड़ने के लिए कहा, जहां वे अरूप विश्वास से हार गए। माना जा रहा है कि विधानसभा चुनाव हारने के बाद ही पश्चिम बंगाल भाजपा में उनके विरोधी सक्रिय हो गए। उनके करीबियों का कहना है कि इसी वजह से वे राजनीति से दूर होना चाहते हैं।

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